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Saturday, July 26, 2014

एकलव्य री-विजिटेड




पाठशाला में सारी तैयारी हो चुकी थी. गुरु द्रोणाचार्य अपने चेलों की नेट-प्रैक्टिस के लिए चिड़िया को पेड़ पर टंगवा चुके थे. उन्हें पता था कि केवल अर्जुन को ही चिड़िया की आँख दिखाई देगी और उनके बाकी चेले निशाना लगाने के बावजूद पेड़ से लेकर मैदान तक सबकुछ देखेंगे. फिर भी उन्होंने खानापूर्ति के लिए युधिष्ठिर से पूछा; "युधिष्ठिर, तुमने चिड़िया पर निशाना लगा लिया हो तो बताओ कि तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"

युधिष्ठिर बोले; "हे गुरुदेव, मुझे डाल से लटकाई गई चिड़िया दिखाई दे रही है. जिस डोरी से उसे लटकाया गया है, वह डोरी दिखाई दे रही है. पेड़ दिखाई दे रहा है. पेड़ की डालें दिखाई दे रही हैं. पत्ते दिखाई दे रहे हैं. आप दिखाई दे रहे हैं. और हे गुरुदेव, मुझे संसार में चारों तरफ फैला अधर्म दिखाई दे रहा है. अधर्म से पीड़ित धर्म दिखाई दे रहा है. मुझे दुशासन के कान में कुछ कहता दुर्योधन दिखाई...."

गुरु द्रोणाचार्य बोले; "ए बेटा, तुमसे नहीं होगा. तुम एक तरफ खड़े हो जाओ."

उसके बाद उन्होंने भीमसेन को निशाना लगाने के लिए कहा. जब भीम ने निशाना लगा लिया तब उन्होंने उनसे पूछा; "वत्स भीमसेन, तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"

भीमसेन बोले; "गुरुदेव मुझे वह सबकुछ दिखाई तो दे ही रहा है जो भ्राताश्री युधिष्ठिर को दिखाई दे रहा था, उसके अलावा मुझे नेट प्रैक्टिस के बाद खाए जानेवाले जलपान दिखाई दे रहे हैं. मुझे बगीचे में आम के पेड़ के नीचे रखे टेबल पर रखा खीर का पात्र और लड्डुओं से भरा परात दिखाई दे रहा है. साथ ही मुझे उस बदमाश दुर्योधन का माथा दिखाई दे रहा है और हे गुरुदेव, इच्छा तो हो रही है कि पहले मैं इस दुर्योधन का माथा फोड़ आऊँ, निशाना वगैरह बाद में लगाउँगा"

भीमसेन की बात सुनकर गुरु द्रोण बोले; "तुम भी अपना धनुष-वाण लेकर हट जाओ और युधिष्ठिर के पास खड़े हो जाओ. तुम्हें मेरी आज्ञा है कि दुर्योधन के पास मत जाना"

भीमसेन जाकर युधिष्ठिर के पास खड़े हो गए.

इसी तरह गुरु द्रोण ने सभी चेलों से एक ही प्रश्न कर और उनके जवाब सुनकर भगा दिया. उन्होंने अंत में अर्जुन को बुलाया. अर्जुन ने धनुष पर वाण रखकर निशाना लगाया. गुरु द्रोण ने उनसे पूछा; "अर्जुन, तुम बताओ कि तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"

अर्जुन बोले; "हे गुरुदेव, आपको यह नहीं पूछना चाहिए कि मुझे क्या-क्या दिखाई दे रहा है? आप मात्र यह पूछें कि मुझे क्या दिखाई दे रहा है"

द्रोण बोले; "ऑब्जेक्शन सस्टेंड. अच्छा मैं फिर से प्रश्न करता हूँ; तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?"

अर्जुन बोले; "हे गुरुदेव, मुझे उस चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है और आँख के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा"

यह सुनकर गुरु द्रोण की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने अर्जुन को गले से लगा लिया. इस दृश्य को देखकर आकाश में बैठे इंद्र के प्रभारी देवताओं के मन में आया कि तुरंत पुष्पवर्षा कर दी जाय लेकिन वे ऐसा न कर पाये. जल्दी-जल्दी में वे पुष्प लाना भूल गए थे.

खैर, गुरुवर देशबंधु … क्षमा करें, गुरुवर द्रोण ने अर्जुन को गले से लगाया. उन्हें शाबाशी प्रदान की और बोले; "हे पांडुनंदन अर्जुन, मैं आज तुम्हें वचन देता हूँ कि इस संसार में तुमसे बड़ा धनुर्धर कोई नहीं होगा"

उसदिन के लिए नेट प्रैक्टिस खत्म हुई और सारे राजकुमार जलपान पर टूट पड़े.

कुछ दिन बीते. एकदिन सारे राजकुमार पाठशाला में पड़े-पड़े बोर हो रहे थे तो उन्होंने सोचा कि क्यों न जंगल में घूम लिया जाय. घूमने का फैसला कर वे निकल पड़े. अब राजकुमार हैं तो उनके कुत्ते भी होंगे ही. हस्तिनापुर महाराज भरत के जमाने से आगे बढ़ चुका था इसलिए बाघों की जगह अब कुत्तों ने ले ली थी.

तो सारे राजकुमार एक कुत्ता लेकर जंगल भ्रमण पर निकल गए. अपने धर्म का पालन करते हुए कुत्ता राजकुमारों के पीछे-पीछे चल रहा था. कुछ दूर जाने के बाद राजकुमारों पीछे मुड़कर देखा तो कुत्ता उनके साथ नहीं था. अब वे जंगल भ्रमण भूल कुत्ते की खोज में निकल गए. खैर, थोड़ी देर बाद कुत्ता मिला. कुत्ते अक्सर मिल ही जाते हैं.

लेकिन राजकुमारों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि कुत्ते के मुँह में सात वाण ठूंस दिए गए हैं और इस तरह ठूंसे गए हैं कि कुत्ते के मुंह में खून भी नहीं लगा था. बाकी राजकुमारों के लिए तो बात आई-गई हो गई लेकिन अर्जुन चिंतित थे. उन्हें तुरंत गुरु द्रोण का वचन याद आया. कुत्ते को लिए वे गुरु द्रोण के पास पहुंचे और छूटते ही प्रणाम कर बोले; "हे गुरुवर, आपने तो वचन दिया था कि मुझसे बड़ा धनुर्धर पूरे संसार में नहीं होगा फिर यह कौन है जिसने वाण चलाकर कुत्ते के मुंह बंद कर दिया? इसका अर्थ यह है कि कोई न कोई है जो मुझसे बड़ा धनुर्धर है"

गुरु द्रोण भी आश्चर्यचकित थे. इतने बड़े धनुर्धर की जानकारी मिलने के बावजूद वे खुश होने की जगह दुखी थे. उन्हें लगा कि उनका वचन तो असत्य साबित हो जाएगा. वे अर्जुन और बाकी राजकुमारों को लिए उस धनुर्धर की खोज में निकल गए जिसके अंदर धनुर्धरी की ऐसा प्रतिभा थी. कुछ दूर चलने के पश्चात उन्हें एक स्थान पर वाण चलकर प्रैक्टिस करता हुआ एक योद्धा मिला. कुत्ते ने भी योद्धा को पहचान लिया और वहीँ रुक गया. सब जान चुके थे कि यही वह धनुर्धर है जिसने कुत्ते की यह दशा की थी.

गुरु द्रोण को देखकर वह धनुर्धर रुक गया. उसने गुरु द्रोण को प्रणाम किया. कुछ ही क्षणों में उन्होंने उसे पहचान लिया. वह एकलव्य था. उसने गुरु द्रोण को सारी बात बताई कि कैसे पाठशाला से वापस किये जाने के बाद उसने गुरु द्रोण की मूर्ति बनाई और उसे ही प्रणाम करके धनुर्विद्या सीखने लगा. उधर वह सारी बात बता रहा था और इधर गुरुवर मन ही मन सोच रहे थे कि वे कैसे अपने वचन की लाज रखें.

अंत में उन्होंने दुविधा और शर्म का त्याग कर एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अँगूठा मांग डाला. उनके अपने वचन के आगे एकलव्य की प्रतिभा के लिए कोई स्थान नहीं था.

गुरुदक्षिणा में अंगूठा काटकर देने की उनकी मांग सुनकर एकलव्य जरा भी विचलित नहीं हुआ. उसने कहा; "हे गुरुश्रेष्ठ, मैं गुरुदक्षिणा में आपको अपना अँगूठा देने में जरा भी पीछे नहीं हटूँगा. परंतु हे गुरुदेव, आपसे धनुर्विद्या सीखने चक्कर में मैंने महीनों से स्नान नहीं किया है. अब मैं कोई राजकुमार तो हूँ नहीं, जो विद्या ग्रहण करते समय भी ठाट से रहता. ऐसे में हे गुरुदेव, आपको गुरुदक्षिणा में अंगूठा देने से पहले मैं शुद्ध होना चाहता हूँ. मैं कल स्नान करूँगा और उसके बाद आपको अँगूठा काटकर दे दूँगा. आप मुझे कल सुबह तक का समय दें"

गुरु द्रोण खुश हो गए. वे तो खुश थे ही, धनुर्धर अर्जुन यह सोचकर उनसे भी ज्यादा खुश थे कि संसार के सबसे बड़े धनुर्धर के उनके पद पर अब कोई संकट नहीं था. दोनों वापस पाठशाला आ गए.

दूसरे दिन गुरु द्रोण नींद से जाग, नित्यक्रिया कर एकलव्य की प्रतीक्षा करने लगे. सारे राजकुमार उनके साथ थे. पाण्डु राजकुमार यह सोचकर फूले नहीं समा रहे थे कि गुरुवर द्वारा एकलव्य से अँगूठा लेने के कारण अर्जुन महान बने रहेंगे. वे एकलव्य की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी हस्तिनापुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति का चारण एक नोटिस लिए उपस्थित हुआ. उसने गुरु द्रोण के हाथ में नोटिस थमा दिया. उन्होंने नोटिस खोला.

यह उपकुलपति की तरफ से एक कारण बताओ नोटिस था जिसमें लिखा था; "एकलव्य नामक छात्र से मिली शिकायत के अनुसार यह प्रकाश में आया है कि आप गुरुदक्षिणा में शिष्यों से उनका अँगूठा कटवा लेते हैं. अगर यह सच है तो आप यह बतायें कि क्यों न उपकुलपति द्वारा आपके पाठशाला को दी गई मान्यता को रद्द कर दिया जाय और आपके ऊपर मानवाधिकार को नष्ट करने का मुकदमा क्यों न चलाया जाय?"

अभी वे यह नोटिस पढ़ ही रहे थे कि अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्यालय से एक नोटिस......

परेशान गुरुवर के माथे पर पसीने की बूँदें पड़ने लगी. वे पोछना शुरू ही करने वाले थे कि अचानक नींद से उठकर बैठ गए. देखा तो सामने उनका पुत्र अस्वथामा खड़ा था. उसने गुरु द्रोण पर दृष्टि डाली मानो कोई प्रश्न कर रहा हो.

गुरु द्रोण बोले; "अपराध बोध अब जीवनपर्यन्त साथ नहीं छोड़ेगा पुत्र"

Saturday, July 19, 2014

ट्वीट महिमा




इन्द्र परेशान बैठे थे. माथे पर 'तिरशूल' के जैसे तीन-तीन बल पड़े हुए थे. बहुत कोशिश करने के बाद भी विश्वामित्र की तपस्या इस बार भंग नहीं हो रही थी. मेनका लगातार बहत्तर घंटे डांस करके अब तक गिनीज बुक में नाम भी दर्ज करवा चुकी थी लेकिन विश्वामित्र टस से मस नहीं हुए. मेनका के हार जाने के बाद उर्वशी ने भी ट्राई मारा लेकिन विश्वामित्र तपस्या में ठीक वैसे ही जमे रहे जैसे राहुल द्रविड़ बिना रन बनाए पिच पर जमे रहते हैं. उधर मेनका और उर्वशी से खार खाई रम्भा खुश थी.

इन्द्र को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाय. दरबारियों और चापलूसों की मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग बहुत देर तक चली. बीच में लंच ब्रेक भी हुआ. आधे से ज्यादा दरबारी केवल सोचने की एक्टिंग करते रहे जिससे लगे कि वे सचमुच इन्द्र के लिए बहुत चिंतित हैं. काफी बात-चीत के बाद एक बात पर सहमति हुई कि इन्द्र को उनके मजबूत पहलू को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए. दरबारियों ने सुझाव दिया कि चूंकि इन्द्र का मजबूत पहलू डांस है सो एक बार फिर से डांस का सहारा लेना ही उचित होगा.

डांस परफार्मेंस के लिए इस बार रम्भा को चुना गया. मेनका और उर्वशी इस चुनाव से जल-भुन गई. लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था. रम्भा ने तरह तरह के शास्त्रीय और पश्चिमी डांस किए लेकिन विश्वामित्र जमे रहे. उन्होंने रम्भा की तरफ़ देखा भी नहीं. हीन भावना में डूबी रम्भा ने एक लास्ट ट्राई मारा. मशहूर डांसर पाखी सावंत का रूप धारण किया और तीन दिनों तक फिल्मी गानों पर डांस करती रही लेकिन नतीजा वही, ढाक के तीन पात.

रम्भा को वापस लौटना पडा. रो-रो कर उसका बुरा हाल था. उसे अपनी असफलता का उतना दुख नहीं था जितना इस बात का था कि उर्वशी और मेनका अब उठते-बैठते उसे ताने देंगी.

प्लान फेल होने से इन्द्र दुखी रहने लग गए. सप्ताह में तीन चार दिन तो सोमरस चलता ही था, अब सुबह-शाम धुत रहने लगे. लेकिन उनके प्रमुख सलाहकार को अभी तक नशे की लत नहीं लगी थी. काफी सोच-विचार के बाद वो एक दिन चंद्र देवता के पास गया. वहाँ पहुँच कर उसने पूरी कहानी सुनाई और साथ में चंद्र देवता से सहायता की मांग की.चंद्र देवता की गिनती वैसे ही इन्द्र के पुराने साथियों में होती थी. सभी जानते थे कि चन्द्र देवता इन्द्र के कहने पर एक बार मुर्गा तक बन चुके थे. वे इन्द्र के लिए एक बार फिर से पाप करने पर राजी हो गए.

चंद्र देवता रात की ड्यूटी करते-करते परेशान रहते थे, सो वे बाकी का समय सोने में बिताते थे. लेकिन इन्द्र की सहायता की जिम्मेदारी जो कन्धों पर पड़ी तो नीद और चैन जाते रहे. दिन में भी बैठ कर सोचते रहते थे कि 'इस विश्वामित्र का क्या किया जाय. इन्द्र के सलाहकार को वचन दे चुका हूँ. इन्द्र को भी दारू से छुटकारा दिलाना है नहीं तो आने वाले दिनों में पार्टियों का आयोजन ही बंद हो जायेगा.'

एक दिन बेहद गंभीर मुद्रा में चिंतन करते चंद्र देवता को नारद ने देख लिया. देखते ही नारद ने अपना विश्व प्रसिद्ध डायलाग दे मारा; "नारायण नारायण, किस सोच में डूबे हैं देव?"

"हे देवर्षि, बड़ी गंभीर समस्या है. वही देवराज और विश्वामित्र वाला मामला है. इसी सोच में डूबा हूँ कि देवराज की मदद कैसे की जाए. वैसे, हे देवर्षि, आप तो देवलोक, पृथ्वीलोक, ये लोक, वो लोक सब जगह घूमते रहते हैं. आप ही कोई रास्ता सुझायें. इस विश्वामित्र की क्या कोई कमजोरी नहीं है?"; चंद्र देवता ने लगभग गिडगिडाते हुए पूछा.

"नारायण नारायण. ऐसा कौन है जिसकी कोई कमजोरी नहीं है. वैसे आप तो रात भर जागते हैं, लेकिन आप भी नहीं देख सके, जो मैंने देखा"; नारद ने चंद्र देवता से पूछा.

"हो सकता है, आपने जो देखा वो मुझे इतनी दूर से न दिखाई दिया हो. वैसे भी आजकल जागते-जागते आँख लग जाती है. लेकिन हे देवर्षि, आपने क्या देखा जो मुझे दिखाई नहीं दिया?"; चंद्र देवता ने पूछा.

"मैंने जो देखा वो बताकर देवराज की समस्या का समाधान कर मैं ख़ुद क्रेडिट ले सकता हूँ, लेकिन फिर भी आपको एक चांस देता हूँ. आज रात को ध्यान से देखियेगा, ये विश्वामित्र एक से तीन के बीच में क्या करते हैं"; नारद ने चंद्र देवता को बताया.

रात को ड्यूटी देते-देते चंद्र देवता विश्वामित्र की कुटिया के पास आकर ध्यान से देखने लगे. उन्हें जो दिखाई दिया उसे देखकर दंग रह गए. उन्होंने देखा कि विश्वामित्र ट्विटर पर लगे हैं और ट्वीट किये जा रहे हैं. ट्वीट पोस्ट करते और बार-बार चेक करते कि किसी ने आर टी और फेवरिट किया या नहीं?

चंद्र देवता को समझ में आ गया कि नारद का इशारा क्या था.

दूसरे ही दिन इन्द्र के सलाहकार ने इन्द्र का एक ट्विटर अकाउंट बनाया. ट्विटर पर पहले ही दिन विश्वामित्र की निंदा करते हुए इन्द्र ने दर्जन भर ट्वीट कर दिया. साथ में विश्वामित्र की ट्वीट के जवाब देने के लिए अपने दरबारियों का अकाउंट भी खुलवा दिया. दरबारी उनकी ट्वीट आर टी करने लगे. साथ ही विश्वामित्र को ट्रॉल करने लगे. ट्वीट, आर टी और फेवरिट का सिलसिला शुरू हुआ तो विश्वामित्र का सारा समय अब ट्वीट लिखने, इन्द्र के गाली भरे ट्वीट का जवाब देने और इन्द्र और उनके दरबारियों से लड़ने झगड़ने में जाता रहा. उनके पास तपस्या के लिए समय ही नहीं बचा.

विश्वामित्र की तपस्या भंग हो चुकी थी. इन्द्र खुश रहने लगे.

Friday, May 23, 2014

महाभारत के बाद




लड़ाई ख़त्म चुकी थी. कौरव हार चुके थे. पितामह भी धर्मराज युधिष्ठिर को समझा-बुझा कर शासन करने के लिए राजी कर चुके थे. धर्मराज के पास भी राज करने के सिवा और कुछ भी करने के लिए बचा नहीं था. उन्होंने फैसला किया कि खुद को व्यस्त रखने के लिए राज करना जरूरी है. भगवान श्रीकृष्ण भी भविष्य के हस्तिनापुर की नीव कैसी हो, इसपर चिंतन कर रहे थे. अर्जुन गांडीव को धो-पोंछ कर रखने की तैयारी कर रहे थे. बात भी सही थी. जब कोई शत्रु बचा ही नहीं तो फिर गांडीव धो-पोंछ कर रखना ही श्रेयस्कर था. सहदेव भविष्यवाणियां करने में व्यस्त थे. भीम सुबह के नाश्ते के बाद दोपहर के भोजन का मेन्यू और शाम के नाश्ते के बाद रात के भोजन का मेन्यू फाइनल करने में व्यस्त रहने लगे थे. द्रौपदी ने अपने केश बाँधने की तैयारी कर ली थी. हेयर स्टाइलिस्ट उन्हें तरह-तरह के हेयर स्टाइल वाले ब्रॉश्चर दिखाने में व्यस्त थी. माता कुंती अपने व्यस्त पुत्रों को देखकर प्रसन्न होने में व्यस्त थीं.

हस्तिनापुर में तमाम पदों पर बैठनेवाले के नामों की चर्चा चल रही थी. लोग अनुमान लगाने में व्यस्त थे. कौन सा विभाग किसे मिलेगा? कौन हस्तिनापुर में व्यापार मंत्री बनेगा? कौन सेनापति बनेगा? कौन रक्षामंत्री बनेगा? मीडिया व्यस्त. सोशल मीडिया व्यस्त. अखबार व्यस्त. संपादक व्यस्त. महान टीवी चैनलों के महान ऐंकर व्यस्त. चिरकुट चैनलों के चिरकुट ऐंकर व्यस्त. खबरिया टीवी चैनल धर्मराज युधिष्ठिर पर डाक्यूमेंट्री ठेल रहे थे. जिन टीवी चैनलों ने द्रौपदी के चीरहरण के लिए वर्षों तक धर्मराज युधिष्ठिर के द्यूतक्रीड़ा को दोषी माना था, उन्होंने भी उनके बारे में पॉजिटिव बातें ही दिखाने की शपथ ले रखी थी. इन डॉक्यूमेंट्री में लगभग सभी चैनलों ने यह तय कर लिया था कि किसी भी हालत में धर्मराज के जीवन से जुड़े द्यूतक्रीड़ा एपिसोड को नहीं दिखाना है. उन्हें शंका थी कि कहीं लोग यह कहकर हंसी उड़ाना न शुरू कर दें कि; अरे धर्मराज तो जुआ खेलते थे.

तमाम बातों को लेकर लोग चर्चा में व्यस्त थे. जो चर्चा में व्यस्त नहीं थे वे धर्मराज की जय-जयकार में व्यस्त थे. जो जयकार में व्यस्त नहीं थे वे अपना काम करने में व्यस्त थे. जिनके पास कोई काम नहीं था वे धर्मराज को सुझाव देने में व्यस्त थे. जिधर नज़र पड़ती उधर ही व्यस्त लोगों का मजमा दिखाई देता. कुल मिलाकर हस्तिनापुर विकट व्यस्तकाल से गुजर रहा था.

सब तरफ पांडवों के समर्थक ही दिखाई दे रहे थे. कौरवों के समर्थक या तो चुपके से छुट्टियां बिताने अवंती चले गए थे या कन्वर्ट होकर पांडवों के समर्थक पद की शपथ ले चुके थे. पत्रकार चिंतामणि गोस्वामी यह सोचकर व्यस्त थे कि कैसे धर्मराज युधिष्ठिर से एक साक्षात्कार निकाल लिया जाय? अपनी इस इच्छा को फलीभूत होते हुए देखने हेतु वे एकबार नकुल के सारथी से 'सोर्स' भी लगवा चुके थे. उसने पत्रकारश्री को वचन दिया था कि वह नकुल से कहकर उनका यह काम करवा देगा.

इधर धर्मराज युधिष्ठिर पदों पर बैठनेवाले की संभावित सूची को लेकर व्यस्त थे. उन्हें पता था कि कौरवों के वर्षों पुराने कुशासन के कारण हस्तिनापुर एक लाबीस्ट-प्रधान राज्य बन चुका था. एक दिन धर्मराज हस्तिनापुर में भरे जाने वाले पदों के संभावित उम्मीदवारों की सूची देख रहे थे. उन्हें पता था कि किसको कहाँ लगाना है? किसको कौन सा पद देना है. इंद्रप्रस्थ में अपने सुशासन के चलते उन्हें सब पता था कि क्या-क्या करना है. इधर दाहिने हाथ में लेखनी और बाएं हाथ में सूची लिए धर्मराज ने अपना काम शुरू ही किया था कि सेवक संदेश लेकर आया और बोला; "हे महाराज, हे पांडुनंदन धर्मराज युधिष्ठिर, आपसे मिलने प्रजा के कुछ लोग आये हैं"

धर्मराज को लगा कि प्रजा के लोग क्यों आये हैं? अचानक क्या हो गया? उन्होंने अभीतक किसी जनता दरबार लगाने का अनाउंसमेंट भी नहीं करवाया था. खैर, कुछ सोचने के बाद उन्होंने कहा; "ठीक है उन्हें अंदर भेज दो"

सेवक को कुछ याद आया और उसने धर्मराज को जानकारी देते हुए कहा; "परन्तु महाराज, करीब डेढ़ हज़ार लोग आये हैं. सबको अंदर ले तो आऊँ परन्तु वे खड़े कहाँ होंगे?"

धर्मराज ने कुछ सोचकर कहा; "इतने आये हैं? परन्तु क्यों? और सारे क्यों मिलना चाहते हैं?"

सेवक बोला; "ये तो पता नहीं महाराज लेकिन कहा तो यही"

धर्मराज बोले; "तो फिर उनसे कहो कि केवल १०-१५ लोग ही अंदर आएं"

सेवक ने जाकर भीड़ को सूचना दी. बोला; "महाराज को मैंने जानकारी दी. उन्होंने आप में से केवल १०-१५ लोगों को उनसे मिलने की आज्ञा दी है."

अभी उनसे इतना कहा ही था कि भीड़ में से एक युवक चिल्लाया; "मैंने आपसे कहा था कि उन्हें मेरा नाम बताएं. आपने क्या बताया नहीं कि मैं चहचह डॉट कॉम पर उनका फालोवर हूँ? और मुखसर्ग डॉट कॉम पर भी उनका समर्थक हूँ?"

सेवक बोला; "अब यह सब मुझे नहीं पता. उन्होंने तो यही कहा कि १०-१५ लोगों से ज्यादा लोग नहीं जा सकते. आपस में फैसला कर लें कि कौन कौन जाएगा"

उसका इतना कहना था कि बातों का सैलाब आ गया. एकसाथ हज़ारों लोगों ने बोलना शुरू कर दिया. कौन क्या कह रहा था, किसी की समझ में नहीं आ रहा था. कुछ वैसा ही नज़ारा था जैसा पेड़ पर बैठे पक्षियों के झुंड ने नीचे किसी सर्प को देख लिया हो. कोई तर्क दे रहा था तो कोई कुतर्क. सब एकसाथ कुछ न कुछ दे रहे थे. चारों तरफ से तर्क, वितर्क, कुतर्क के वाणों की वर्षा हो रही थी. किसी को पता भी नहीं चल रहा था कि वह क्या कह रहा है? क्या सुन रहा है? क्या कहना चाहता है? क्या सुनना चाहता है?

यह कार्यक्रम देर तक चलने की संभावना को देखते हुए अचानक सेवक चिल्लाया; "अगर इसी क्षण आपसब चुप नहीं हुए तो आपसब को राजमहल के अहाते से बाहर कर दिया जाएगा"

भय बिनु होइ न प्रीति के सिद्धान्त को एकबार फिर से सही पाया गया. सब चुप हो गए. कुछ देर बाद भीड़ ने दस लोगों को जाने दिया. थोड़ी देर में ही दसों धर्मराज युधिष्ठिर के सामने थे. उन्हें देखते ही धर्मराज ने पूछा; "हे, महानुभावों, अपना परिचय दें एवं यहाँ आने का प्रयोजन बताएं."

उनकी बात सुनते ही उनमें से एक अति उत्साहित होकर बोला; "महाराज, पहचाना मुझे? मैं रमाकांत. आपको चहचह डॉट कॉम पर फॉलो करता हूँ"

उसकी बात सुनकर धर्मराज बोले; "रमाकांत! मैंने यह नाम पहले नहीं सुना. अपना पूरा परिचय दें."

वो बोला; "अरे धर्मराज, मैं चहचह डॉट कॉम पर आपका फालोवर. अरे वो @धर्मराजभक्त याद है आपको? वो मेरा ही हैंडल है. अरे वही जिसकी डीपी में त्रिशूल लगा हुआ है. मैं आपकी हर चहचह आर सी करता था. मैंने ही पहली बार #फाइवविलेजेजफॉरपांडव हैसटैग चहचह डॉट कॉम पर ट्रेंड करवाया था. याद है आपको? दुर्योधन का वह फोटोशॉप किया पिक्चर जिसमें आप उसकी छाती पर पाँव रख तलवार घुसाने ही वाले थे, उसे मैंने ही अपनी कारीगरी से बनाया था."

धर्मराज बोले; "मुझे सब याद है लेकिन आपने वहां डी पी में त्रिशूल लगाया है और यहाँ अपना नाम रमाकांत बता रहे हैं तो मैं कैसे पहचानूँगा?"

अभी ये दोनों बात ही कर रहे थे कि एक और समर्थक बोल पड़ा; "और महाराज मुझे पहचाना आपने? मैं वही हूँ जिसने चहचह डॉट कॉम पर अपनी चहचह में दुशासन को गाली दिया था. पाँच सौ आर सी मिला था उसे."

अचानक एक और सामने आया. बोला; "और मैंने जयद्रथ को पूरा सात महीने तक ट्रॉल किया था"

सबने अपना-अपना परिचय दिया। सुनकर धर्मराज बोले; "मुझसे क्या चाहते हैं महानुभावों?"

एक बोला; "महाराज, देखिये आप भी मानेंगे कि कुरुक्षेत्र में युद्ध के दौरान ही नहीं, उससे पहले से ही हमने आपके लिए काम किया. हस्तिनापुर की प्रजा के बीच पूरा समर्थन और माहौल हमने तैयार किया. आप जरूर मानेंगे कि युद्ध में आपकी विजय हमारे कारण ही हुई."

धर्मराज बोले; "हे महानुभावों, मैं मानता हूँ कि आपने हम पांडवों का समर्थन किया परन्तु इसका बार-बार बखान करके मुझे शर्मिंदा न करें. आप भी मानेंगे कि युद्ध जीतने के लिए हमारे साथ तमाम योद्धा लड़े. उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़ाई की. तो क्या उनको इसका क्रेडिट नहीं मिलना चाहिए? वैसे आप चाहते क्या हैं?"

समर्थकों में से एक बोला; "हम यह चाहते हैं कि आप हस्तिनापुर में तमाम पदों पर नियुक्ति हमारे अनुसार करें. हम जिसे कहें उसे सेनापति बनायें. जिसे कहें उसे रक्षामंत्री बनाएं. हम जिसे कहें उसे ………

धर्मराज ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा; "हे समर्थकश्री, समर्थन करना एक बात है और राजकाज के कामों में दखल देना सर्वथा दूसरी. युद्ध समाप्त हो चुका है. अब राज-काज करने का समय आ गया है. अब मुझे काम करना है. अब पदों पर नियुक्ति का काम मुझे करने दें क्योंकि अगर राजकाज ठीक से नहीं चला तो बेइज्जती मेरी होगी, आपकी नहीं. सत्य तो यह है कि केशव भी पदों पर नियुक्ति के मुद्दे पर मुझे कुछ नहीं कह रहे. आपको समझना चाहिए कि ............."

अचानक सब चुप हो गए. कुछ ही मिनटों में समर्थकगण वहां से छंटने. जाते-जाते एक बोल गया; "चलो यहाँ से. सब ऐसे ही होते हैं. जब जरूरत थी तो समर्थन ले लिया और आज कह रहे हैं..........राजकाज चलाने दो, इन्हें भी देख लेंगे जैसे कौरवों को देखा"

Wednesday, May 7, 2014

लंका-दहन के बाद




हनुमान जी लंका को राख में कन्वर्ट कर आये. इधर उन्हें देखकर सब बहुत खुश हुए तो उधर रावण जी चिंतित थे. उन्होंने अपने मंत्रियों, महामंत्रियों, राज्य-मंत्रियों, सलाहकारों, उप-सलाहकारों, मीडिया मैनेजर, स्पिन डॉक्टर्स, डर्टी-ट्रिक इंजीनियर्स, कंसल्टेंट्स वगैरह की एक मीटिंग बुलाई. वे जानना चाहते थे कि ऐसा कैसे हुआ कि एक वानर लंका को राख में कन्वर्ट कर वहाँ से निकल लिया? कि लंकेश की बेइज्जती खराब हो गई? कि वीरों से भरी लंका में वीरता का बैलेंस निल निकला? कि जिस लंकेश के घर कुबेर पानी भरते थे वह लंकेश लाचार दिक्खे?

जिन्हें-जिन्हें सर्कुलर गया वे मंत्री, सलाहकार, कंसल्टेंट्स, दरबारी वगैरह आये. जिन्हें डर था कि मीटिंग के बाद लंकेश उन्हें धुनक सकते थे, उन्होंने १०८ डिग्री बुखार का बहाना बना लिया. जो बहाना बनाने लायक नहीं थे उन्हें मन मारकर उपस्थित होना पड़ा. किसी के हाथ में फाइल तो किसी के हाथ में ब्रीफकेस. स्मार्ट सलाहकार एक्सेल शीट्स, ऑडिट रिपोर्ट, वर्किंग पेपर्स और पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन वगैरह से लैस होकर आये. एक कॉपीबुक सलाहकार इसी तरह की पुरानी घटनाओं को गूगल करने लगा. उनकी इस गूगलाहट के पीछे यह सोच थी कि अगर पहले भी किसी ने लंका को राख किया होगा तो उसके बाद जो मीटिंग हुई, उसमें जो कुछ हुआ था, अगर उसका पता चल जाये तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आज क्या हो सकता है.

ये कॉपीबुक सलाहकार जब गूगल सर्च कर रहा था, उसके असिस्टेंट ने, जो इनसे स्मार्ट था, इन्हें स्पेसिफिक सर्च की सलाह दे डाली. उसकी इस सलाह का जन्म उसी की इस सोच से हुआ था कि हो सकता है लंका को किसी ने पहले राख किया हो लेकिन हमें यहाँ यह जानने की जरूरत है कि; लंका को पहले किसी वानर ने राख किया था या नहीं?

दोनों अभागे यह जानकर दुखी हो गए कि लंका इससे पहले कभी नहीं जली. कि ऐसा पहली बार हुआ था.

कुछ अति स्मार्ट सलाहकारों ने लंकेश की चिंता का अनुमान लगा चिंतित होने की ऐक्टिंग शुरू कर दी. उनका अनुमान था कि चिंतित दिखेंगे तो रावण जी यह सोचते हुए खुश होंगे कि इन सलाहकारों ने बड़ी मेहनत की है. कि चिंता की इस घड़ी में वे रावण जी के साथ है. कुछ दरबारियों का ध्यान दूसरी तरफ भी था. ये दरबारी आते-जाते चारणों को देख अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि मीटिंग के लिए नाश्ते का मेन्यू क्या था? कुछ लोभी सलाहकार तो अपना लोभ संभाल नहीं पा रहे थे. उनके मन में बार-बार आ रहा था कि इन चारणों को पकड़कर उनसे डिटेल्ड मेन्यू पूछ ही लें लेकिन फिर यह सोचकर रुक जाते कि कहीं लंकेश ने अचानक एंट्री मारी और उन्हें ऐसा करते देख लिया तो बड़ी दुर्गति करेंगे.

कुछ अपनी वोकैब्युलरी मांज रहे थे. यह सोचते हुए कि मीटिंग में ज्यादा से ज्यादा मीठे और प्यारे शब्दों का प्रयोग किया जाय ताकि लंका दहन से दुखी लंकेश के कलेजे को ठंडक पहुंचे. जिन सलाहकारों को विश्वास था कि उन्हें मात्र कोरम पूरा करने के लिए ऐसी मीटिंग्स में बुलाया जाता था, और असल में मीटिंग में उनका कोई योगदान नहीं रहता था, उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी. उन्हें पता था कि लंकेश न तो उनसे कोई प्रश्न पूछेंगे और न ही उन्हें बोलने का मौका मिलेगा. कुल मिलाकर ऐसे दरबारियों की उपस्थिति इसलिए जरूरी रहती थी ताकि रावण जी का प्रेस मैनेजर मीडिया को छापने के लिए जब विज्ञप्ति दे तो उसमें लिखा जा सके कि; "लंकेश्वर ने मंत्रियों, दरबारियों, और सलाहकारों के साथ समग्र चिंतन किया"

कुछ ढंग के सलाहकारों के मन में यह जरूर आया कि लंकेश को अपने अनुज विभीषण को भी इनवाइट करना चाहिए लेकिन वे यह सोचकर रुक गए कि विभीषण आएंगे तो सच ही बोलेंगे, सच के सिवा कुछ नहीं बोलेंगे. ऐसे में मैनेजमेंट सिद्धांत के अनुसार विभीषण को ऐसी मीटिंग में बुलाना तर्कसंगत नहीं था. सच बोलने वाला व्यक्ति हर लंका का शत्रु होता है. कुछ मानते थे कि कुंभकरण के आने से घटना पर पूरा प्रकाश पड़ता लेकिन वे यह सोचकर चुप रहे कि कुंभकरण जी को नींद से उठाने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती। वैसे भी जिन दरबारियों के लिए मेहनत का सबसे बड़ा काम लंकेश की जय-जयकार करना था, उनके लिए कुंभकरण जी को नींद से जगाना बहुत मेहनत का काम था.

इधर ये लोग मीटिंग के लिए तैयार थे तो उधर लंका की री-कंस्ट्रक्शन टीम और उसके कैप्टेन मय दानव एक जगह बैठकर कयास लगाए जा रहे थे कि पता नहीं मीटिंग में क्या फैसला हो? कहीं ऐसा न हो कि लंकेश रिजोल्यूशन पास करवा दें कि आज रात से ही लंका का री-कंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया जाय. आज रात से ही शुरू करेंगे तो फिर पता नहीं घर जाने का समय कब मिले.

कुछ इंतज़ार के बाद पास ही खड़ा चारण जोर से चिल्लाया; "सावधान! राजाओं के राजा, पुष्पक विमान के मालिक, तीनो लोकों को जीतने वाले, शिव-भक्त, कुबेरजीत, वेदों के ज्ञाता, इंद्र-विजयी, राक्षसों के सिरमौर, इंद्रजीत के पिता, दशासन लंकेश पधार रहे हैं"

वे पधारे.

दरबारी खड़े हो गए. एक सीनियर कंसल्टेंट का जूनियर असिस्टेंट, जो दो महीने पहले ही मैनेजमेंट कॉलेज से निकला था, कैंडी-क्रश खेलने में बिजी था. चारण की आवाज़ सुनते ही यह सीनियर कंसल्टेंट झट से खड़ा हो गया तब उसे महसूस हुआ कि उसका जूनियर अभी तक बैठा कैंडी-क्रश खेले जा रहा है. इस कंसल्टेंट को अपना कॉन्ट्रैक्ट जाता हुआ दिखाई दिया. उसने अपने जूनियर असिस्टेंट को उठाने के लिए इतनी जोर से कुहनी मारी कि अगर किसी क्रिकेट खिलाड़ी को उतनी चोट लगती तो वह रिटायर्ड-हर्ट होकर अगले विदेशी दौरे से बाहर हो जाता. असिस्टेंट बेचारा सी-सी करते हुए हड़बड़ा के खड़ा हो गया.

लंकेश बैठे. दरबारी खड़े रहे. उन्होंने दरबारियों को बैठने का इशारा किया। दरबारी बैठ गए. मीटिंग शुरू हुई.

रावण जी; "तुम सबको तो पता होगा ही कि मैंने तुमलोगों को यहाँ क्यों बुलाया है?"

सारे एक स्वर में चिल्लाये; "यस लंकेश"

वे आगे बोले; "लंकेश की साथ ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई बाहर से आकर उसकी लंका जला गया. और वह भी एक वानर. कोई मुझे बतायेगा कि ऐसा क्यों हुआ? क्या हम अब पहले जैसे शक्तिशाली नहीं रहे?"

एक मंत्री बोला; "हे लंकेश, एक वानर आपका क्या मुकाबला करेगा? आपसे शक्तिशाली तीनो लोकों में कोई है क्या ? यह तो अकस्मात हो गया नहीं तो .......

लंकेश ने इस मंत्री को घूरकर देखा। झल्लाते हुए बोले; "तुम! तुम तो बात ही मत करो. जब मैंने तुमसे कहा कि उस वानर को अशोक वाटिका में घुसने मत देना तो तुमने ही कहा था न कि वानर ही तो है, चार फल खायेगा और चला जाएगा. कहा था कि नहीं?"

मंत्री ने चुप रहना ही उचित समझा. मुंह लटकाकर खड़ा रहा.

महामंत्री को लगा कि स्थिति को सम्भालना चाहिए. उन्होंने बोलना शुरू किया; "हे लंकेश, वानर ही तो था. मैं एक्सेप्ट करता हूँ कि हमसे कुछ भूल अवश्य हुई लेकिन सोने की लंका जलकर ख़ाक हो गई, इसका मतलब यह कदापि नहीं कि एक वानर लंकेश को टक्कर दे सके."

रावण जी ने महामंत्री को देखते हुए गुस्से से कहा; "और आप कौन से कम हैं? मैंने कहा था न कि इस वानर की हत्या कर देनी चाहिए तो आपने कहा एक दूत की हत्या उचित नहीं। यह धर्मानुसार गलत होगा. क्या गलत होता? अरे मैं इतना बड़ा पंडित, विद्वान, वेदों का जानकार … अगर अधर्म करके धर्मानुसार न बच सकूँगा तो फिर मेरे धर्म-ज्ञान का क्या महत्व? और अगर पाप चढ़ भी जाता तो दो-ढाई साल तपस्या करके भगवान शिव से किलो भर क्षमा ले लेता"

महामंत्री बोले; "हे लंकेश, जो हो गया सो हो गया. इसबार हमलोग तैयार नहीं थे नहीं तो उस वानर की मजाल कि वह ऐसा कर पाता? आपने इंद्र को जीता है. आपने कुबेर को बंदी बनाया है. आपसे तीनों लोकों के प्राणी डरते हैं. याद कीजिये कि आपने किस तरह.... और फिर हे लंकेश, सोने की लंका ही तो राख हुई है. अरे जिसके पास मय दानव हों उन्हें सोने की लंका के राख होने का दुःख नहीं होना चाहिए. एक आर्डर देंगे और सोने की लंका की जगह हीरे की लंका खड़ी हो जायेगी. मैं तो कहता हूँ कि लंका ठीक उसी तरह और मजबूत होकर उभरेगी जैसे राजनीतिक दल के प्रवक्ता के अनुसार चुनावों में बुरी तरह हार जानेवाली पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरती है. आप निश्चिन्त रहे. आपका मुकाबला कोई नहीं कर सकता. आप खुद ही सोचिये न कि आपसे जो लड़ना चाहते हैं उन्हें वानरों के सहारे की जरूरत है. वे क्या लड़ेंगे आपसे?"

महामंत्री की बात रावण जी ने ध्यान से सुनी. फिर बातों में थोड़ी शंका की मिलावट करते हुए बोले; "कहीं हम कोई भूल तो नहीं कर रहे महामंत्री? पहले यह वानर लंका में घुसा तो हमने सोचा वानर ही तो है, चला जाएगा. फिर अशोक वाटिका में घुसा तो हमने कहा फल खाकर चला जाएगा. फिर उसने अक्षयकुमार का वध किया तो हमने सोचा कि इससे ज्यादा क्या करेगा? फिर उसने लंका को आग लगा दी तो.... गुप्तचरों ने बताया कि वह सीता से कहकर गया है कि उसकी सेना में उससे भी बड़े-बड़े योद्धा हैं. उससे से भी बड़े वानर हैं."

एक मंत्री बोला; "आप क्यों टेंशन ले रहे हैं महाराज? वह तो सीता को ढाढ़स बंधाने के लिए ऐसा कहा उसने. तीनों लोकों में जितने भी वीर हैं, सब आप ही के पास हैं. आने दीजिये उसे और उसकी वानर सेना को, देख लेंगे. कुछ नहीं कर पायेगा वह."

एक-एक करके सारे मंत्रियों और सलाहकारों ने लंकेश को यही बताया कि राम और उनकी वानर सेना उसका मुकाबला सपने में भी नहीं कर सकती. सबने रावण जी को भूतकाल में किये गए उनके पराक्रमों की याद दिलाई और उन्हें निश्चिन्त कर दिया. नाश्ता वगैरह के बाद मीटिंग ख़त्म हो गई और सब चले गए.

विभीषण के एक गुप्तचर ने जब इस मीटिंग की पूरी जानकारी उन्हें दी तो वे मन ही मन बुदबुदाये; "मीटिंग का मुद्दा होना चाहिए था सीता-हरण और बनाया गया लंका-दहन. लंकेश अंधे हो गए हैं."

Monday, March 24, 2014

२०१७ में इस वर्ष के भारतीय आम चुनाव सम्बंधित संभावित विकिलीक्स




चुनावों के शुभ अवसर पर एकबार फिर से विकिलीक्स चर्चा में है. विकिलीक्स ने वक्तव्य देकर बताया कि जूलियन असांज ने हल्ला मचाने वाली कोई बात नहीं कही. इस वक्तव्य को लेकर फिर हल्ला मचा. मैं तो कहता हूँ कि चुनाव का मौसम होता ही है हल्ला मचाने के लिए. आखिर इस मौसम में हल्ला नहीं मचेगा तो कब मचेगा? पिछले कुछ वर्षों में विकिलीक्स की वजह से बहुत हल्ला-गुल्ला मचा. जिस तरह के केबिल्स लीक हुए उन्हें पढ़कर यही लगा कि दुनियाँ भर में अमेरिकी डिप्लोमैट की नियुक्त ही इसलिए हुई है ताकि वे केबिल्स लिखकर अमेरिका की विदेशनीति को मजबूत करते रहे और विकिलीक्स उन्हें पूरी दुनियाँ को परोस सके.

चूँकि चार-पाँच साल पहले भेजे गए केबिल्स अब लीक हो रहे हैं, ऐसे में साल २०१७ में विकिलीक्स जो केबल्स लीक करेगा उनमें से महत्वपूर्ण केबल्स इस वर्ष के भारतीय आम चुनाव से सम्बंधित होंगे। आज सोच रहा था कि उन केबल्स में कैसे-कैसे खुलासे हो सकते हैं? शायद कुछ ऐसे;

केबल संख्या ए-१४५७००९ चुनावों को लेकर बीजेपी की नीति;

आज शाम इंडिया हैबिटैट सेंटर में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने शाम की ड्रिंक पर हमारे एक अधिकारी पीटर स्कॉट को बताया कि पार्टी मानती है कि अब एक इतिहासकार की खोज कर ही ली जाय जो पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की हर रैली से पहले उन्हें इतिहास का पाठ पढ़ा सके. इस नेता का मानना है कि बुद्धिजीवियों को यह चिंता सताने लगी है कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार अगर इतिहास को उलट-पलट कर सकता है तो सरकार बना प्रधानमंत्री बनकर वो इतिहास का न जाने क्या-क्या कर देगा। भारतीय बुद्धिजीवियों का इसबात में प्रबल विश्वास है कि पीएम कैंडिडेट को वर्त्तमान की जानकारी भले ही न हो, इतिहास कि जानकारी होनी आवश्यक है.

केबल संख्या ए-१४५९२११ चुनावों को लेकर आम आदमी पार्टी की रणनीति;

आज सुबह आम आदमी पार्टी के नेता भगवानदास ने हमारे एक डिप्लोमैट को बताया कि पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल किस साइज की शर्ट पहनकर असली आम आदमी लगेंगे, इसबात को लेकर पार्टी में घमासान मचा है. केजरीवाल को चालीस यानि मीडियम साइज की शर्ट फिट होती है लेकिन वे चाहते हैं कि एक्स एक्स एल साइज की शर्ट पहनने से ही वे परफेक्ट आम आदमी लगेंगे। पार्टी कार्यकारिणी में इसको लेकर मतभेद उभरा क्योंकि कुछ नेताओं का मानना था कि वे लार्ज साइज का शर्ट पहनकर भी आम आदमी लगेंगे। काफी मान-मनौव्वल के बावजूद वे एक्स एल साइज से नीचे आने के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में यह फैसला हुआ कि पार्टी के नेताओं के बीच एक एस एम एस सर्वे के आधार पर फैसला लिया जाएगा कि अरविन्द केजरीवाल कौन सी साइज की शर्ट पहनेंगे?

केबल संख्या ए-१४६९०२२ चुनावों को लेकर कांग्रेस पार्टी की रणनीति;

कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने राहुल गांधी के खिलाफ कविवर कुमार विश्वास के चुनाव लड़ने को लेकर एक गम्भीर और समग्र चिंतन किया। पार्टी के एक नेता ने कल शाम हमारी कॉकटेल पार्टी में हमारे दूतावास के दोनों अधिकारियों, ह्वाइट एंड मैक्के को बताया कि वर्किंग कमिटी यह प्रस्ताव लाना चाहती थी कि कविवर कुमार विश्वास का मुकाबला करने के लिए जरूरी हो गया है कि राहुल गांधी कविता लिखना सीख लें. कुछ सदस्यों ने इसबात पर आशंका जताई कि इतने कम समय में राहुल के लिए कवि बनना ईजी नहीं है और अगर वे कविता करना सीख भी जाते हैं तो उन कविताओं को याद करके जनता में बीच उन्हें सुनाना उनके लिए लगभग असंभव है. बाद में जनार्दन द्विवेदी ने वर्किंग कमिटी को बताया कि राहुल को कवि बनाने और उन्हें कविता रटवाने का जिम्मा वे खुद लेंगे। जनार्दन द्विवेदी वही हैं जिन्होंने सोनिया गांधी को हिंदी सिखाई है.

केबल संख्या ए-१४६९०८५ चुनावों को लेकर कांग्रेस नेताओं की रणनीति;

कांग्रेस के एक नेता ने कल शाम हमारे एक अफसर को बताया कि इस चुनाव में पार्टी की हालत को देखते हुए कुछ नेता राहुल गांधी से नाराज हैं. दरअसल इन नेताओं की नाराजगी का कारण यह है कि राहुल गांधी ने केवल देश की जनता के लिए कानून बनाये या बनाने की कोशिश की और उनका ही ध्यान रखा. ये नेता चाहते थे कि राहुल इनके लिए भी राइट टू डेफ़ेक्शन नामक कानून ले आते जो इन नेताओं को चुनाव के ऐन मौके पर दूसरी पार्टी में जाने के लिए और उकसाता। भारतीय चुनावों की यह खासबात रही है कि चुनावों के आते ही नेता यह मानकर चलता है कि उसे अपनी पार्टी से असंतुष्ट होने का अधिकार है और वह असंतोष का दिखावा करके जिस पार्टी में घुसता है उस पार्टी को उसके असंतोष को उचित मान-सम्मान देने का अधिकार है. इन्हें अपने अधिकारों का पता वर्षों से रहा है, बस वे इसे एक कानूनी कुरता पहनाना चाहते थे.

केबल संख्या ए-१४६९०९८ चुनावों को लेकर दलों की नीति;

एक चुनावी पंडित ने हमारे एक अधिकारी को बताया कि कुछ पार्टियां इसबात पर विचार कर रही है कि वे डिफेक्शन को लेकर एक आम सहमति पर पहुंचें जिससे भारतीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जा सके. इसी कड़ी में कुछ नेताओं की तरफ से यह प्रस्ताव आया कि चुनावों के अवसर पर डिफेक्शन को और सरल बनाने के लिए पार्टियां अपने-अपने बैज बनावाएं। जैसे अगर कोई कांग्रेसी, सपाई, जेडीयुवी या राजदी नेता अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में जाए तो पार्टी उसे तत्काल एक बैज प्रदान करे जिसपर "राष्ट्रभक्त" लिखा हो और अगर कोई नेता बीजेपी छोड़कर इन पार्टियों में जाए तो इन पार्टियों की तरफ से उसको एक बैज मिले जिसपर "सेक्युलर" लिखा हो. पार्टियों का मानना है कि अगर ऐसा हो गया तो फिर भारतीय लोकतंत्र की मजबूती पर एक मजबूत मुहर लग जायेगी।

केबल संख्या ए-१४७११६७ चुनाव फंड को लेकर आम आदमी पार्टी का फैसला;

हमारे अफसर को आम आदमी पार्टी के एक नेता ने बताया कि चूंकि पिछले कुछ दिनों में पार्टी को जनता की तरफ से पैसा नहीं मिल रहा है इसलिए पार्टी नेता योगेन्द्र यादव ने सुझाव दिया कि क्यों न सर्दियों में अरविन्द केजरीवाल द्वारा इस्तेमाल किये मफ़लर का ऑक्शन करके पार्टी के लिए कुछ फंड इकठ्ठा किया जाय. इसी नेता ने बताया कि अरविन्द केजरीवाल को मफ़लर लपेटने का सुझाव योगेन्द्र यादव ने ही दिया था और इस प्रयोग का आईडिया उन्हें उनके खुद के ईमेज बनाने में इस्तेमाल किये गए गमछे से मिला था. फोर्ड फाउंडेशन ने पार्टी नेताओं को अस्योर किया है कि फाउंडेशन जल्द ही क्रिस्टीज या सॉथबीज से बातकर ऑक्शन कराने की तारीख तय करेगा।

केबल संख्या ए-१४७११८७ चुनाव को लेकर बीजेपी की रणनीति;

बीजेपी के एक नेता ने हाल ही में बताया कि चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी तो पार्टी का केवल एक मुखौटा हैं. इस बात का किसी पुराने केबल से मिलना महज संयोग है. विद्वान बताते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है.

केबल संख्या ए-१४७११९२ चुनाव को लेकर कुमार विश्वास की रणनीति;

कुमार विश्वास के बेहद करीबी एक नेता ने बताया कि कविवर ऐसा मानते हैं कि वे राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर अगर जीत गए तो संसद जायेंगे ही लेकिन अगर हार भी गए तो भी चिंता की बात नहीं। वे मानते हैं कि वे हार भी गए तो राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने का हवाला देकर वे भविष्य में होनेवाले कवि सम्मेलनों के लिए अपनी फीस करीब सवा सौ प्रतिशत बढ़ा सकेंगे।

केबल संख्या ए-१४७२३३६ अडवाणी की चिंता;

बीजेपी के एक नेता ने हमें बताया है कि अडवाणी पिछले कुछ हफ़्तों से चिंतित हैं. चिंता का कारण उन्हें मिली यह जानकारी है जिसमें पार्टी के नेता एक-दूसरे से मिलते तो है तो कहते हैं कि अडवाणी जी अब पहले वाले अडवाणी नहीं रहे. नेताओं को इसबात पर आश्चर्य है कि अडवाणी पिछले कई महीनों से नाराज नहीं हुए. इसबात को लेकर अडवाणी जी ने फैसला लिया है कि अगर उन्हें गुजरात में गांधीनगर से टिकट मिला तो वे भोपाल से चुनाव लड़ने की बात करेंगे और अगर भोपाल से टिकट मिला तो गांधीनगर से लड़ने की बात करेंगे ताकि नाराज हो सकें और पार्टी नेताओं को विश्वास हो जाए कि आडवाणी अब भी वही पुराने आडवाणी हैं और साथ ही ऐक्टिव भी हैं.

केबल संख्या ए-१४७२७७४ वामपंथी बुद्धिजीवी का विरोध;

हमारे अफसर से मुलाक़ात के दौरान एक वामपंथी बुद्धिजीवी ने बताया कि वे और उनके जैसे कई बुद्धिजीवी नया आंदोलन खड़ा करेंगे जिसके तहत अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नए सिरे से लड़ाई छेड़ी जायेगी। इन बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर अँगरेज़ अपने साथ भारत में चाय न ले आते तो नरेंद्र मोदी इतने लोकप्रिय नहीं होते जितने वे आज हैं. जैसा कि हमने अपने केबल संख्या ए-१४४७८८१ में बताया था कि मोदी पूरे देश में चाय पर चर्चा कार्यक्रम चलाकर अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं.

केबल संख्या ए-१४७२८०१ चुनाव प्रचार;

केरल में एक कांग्रेसी उम्मीदवार के चुनावी मैनेजरों ने हमारे अपने देश याने यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका की सबसे बढ़िया हाइवेज में से एक कंसास हाइवे का फ़ोटो कांग्रेस के पोस्टर में लगाकर बताया कि कांग्रेस की नेता सोनिया जी के आशीर्वाद से ही यूपीए सरकार वह सड़क बनवा सकी. जहाँ कांग्रेस पार्टी ने हमारे अपने हाइवे को अपना बताया वहीँ यहाँ के सबसे बड़े स्टेट यूपी में सरकार चलानेवाली समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचारकों ने विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट एल्पाइन रोड का फ़ोटो दिखाकर यूपी की जनता को बताया कि वह रोड वहाँ के यंग चीफ मिनिस्टर अखिलेश यादव ने खुद बनवाया है. बीजेपी वालों ने न्यूजीलैंड के एक हाइवे का फ़ोटो लेकर उसे गुजरात का बता डाला। यह सब देखकर हमारे दूतावास के अधिकारी यही सोच रहे हैं कि गूगल की वजह से अब हाइवेज को कहीं से भी टेलीपोर्ट करके भारत लाया जा रहा है.

भारतीय चुनावों से रिलेटेड हमारे केबल्स हम अगले हफ्ते फिर भेजेंगे।

Thursday, January 30, 2014

युवराज दुर्योधन का साक्षात्कार




आज युवराज दुर्योधन की डायरी के बिखरे पन्नों के बीच उनका एक इंटरव्यू मिला जो द्वापर युगीय किसी पत्रकार ने लिया था जिसका नाम चिंतामणि गोस्वामी है. गोस्वामी जी का कोई विकीपेज तो नहीं जिससे उनके बारे में जानकारी मिले लेकिन इंटरव्यू में उन्होंने जैसे सवाल किये, उन्हें पढ़कर कहा जा सकता है कि वे बड़े धाकड़ पत्रकार थे. मुझे पूरा विश्वास है कि उनके अंदर पत्रकारिता इस तरह से भरी थी कि उनके वंशज आज के भारतवर्ष में कहीं न कहीं पत्रकारिता झाड़ रहे होंगे।

खैर, आप युवराज का इंटरव्यू बांचिये जो मैं यहाँ नीचे टाइप कर रहा हूँ.


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चिंतामणि गोस्वामी: स्वागत है युवराज आपका. आपने साक्षात्कार के लिए समय दिया, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.

युवराज: धन्यवाद गोस्वामी जी.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, साक्षात्कार के आरम्भ में ही मैं आपको सूचित कर दूँ कि मैं आपसे जो प्रश्न पूछूंगा वे विशिष्ट प्रश्न होंगे. विशिष्ट इसलिए क्योंकि ऐसे प्रश्न आपसे से निकटता रखनेवाले किसी पत्रकार ने पहले नहीं किये होंगे.

युवराज: जैसी आपकी इच्छा पत्रकार श्री. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.

चिंतामणि गोस्वामी: मेरा पहला प्रश्न यह है कि आपने पिछले चौदह वर्षों में व्यक्तिगत साक्षात्कार नहीं दिया. क्या कारण है?

युवराज: ऐसा नहीं है कि मैंने साक्षात्कार नहीं दिया.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मैं व्यक्तिगत साक्षात्कार के बारे में कह रहा था. आपने इससे पहले चौदह वर्ष पूर्व संवाददाताओं के साथ एक प्रश्नोत्तर सत्र किया जब समाचार माध्यमों ने आपके ऊपर आरोप लगाया था कि आपके संबंध पुरोचन से थे.

युवराज: मैं हस्तिनापुर में परिवर्तन देखना चाहता हूँ.

चिंतामणि गोस्वामी: आपके पुरोचन से संबंध थे या नहीं?

युवराज: प्रश्न यह नहीं कि पुरोचन के साथ मेरे संबंध थे या नहीं? प्रश्न यह है कि युवराज सुयोधन कौन हैं?

चिंतामणि गोस्वामी: कौन हैं युवराज सुयोधन?

युवराज: चलिए मैं आपसे प्रश्न पूछता हूँ. आप बताएं कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी?

चिंतामणि गोस्वामी: आप मुझसे प्रश्न पूछ रहे हैं?

युवराज: हाँ. आप बताएं न कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी? देखिये, आप जब छोटे होंगे तब आपके मन में तो आया ही होगा कि बड़े होकर आप क्या बनेंगे?

चिंतामणि गोस्वामी: ये मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज.

युवराज: चलिए मैं आपको बताता हूँ कि चिंतामणि गोस्वामी कौन हैं? चिंतामणि गोस्वामी बाल्यकाल में कुछ बनना चाहते होंगे. अब वे युवराज तो बन नहीं सकते ऐसे में वे पत्रकार बन गए. अब प्रश्न यह है कि वे युवराज क्यों नहीं बन सकते?

चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा चलिए मैं दूसरा प्रश्न पूछता हूँ. आपने पांडवों को लाक्षागृह में आग लगाकर मारने का प्रयत्न किया?

युवराज: पांडव हमारे प्रिय है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु आपने उन्हें मारने का प्रयत्न किया था या नहीं?

युवराज: मैं बाल्यकाल से ही पांडवों से प्रेम करता हूँ. इस पृथ्वी पर पांडव मेरे सबसे प्रिय रहे हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: लेकिन आपने फिर भी उनकी हत्या करने का प्रयास किया?

युवराज: आग मैंने नहीं लगाई थी.

चिंतामणि गोस्वामी: चलिए मैं आपसे एक और प्रश्न पूछता हूँ. आपने गुरु द्रोण की पाठशाला में भीम को भी मारने का प्रयत्न किया था?

युवराज: मेरे पिताश्री धृतराष्ट्र जन्म से अंधे हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ.

युवराज: चलिए मैं अपनी बात को ऐसे समझाता हूँ. पत्नी के कहने पर आप हाट में आलू लेने जाते हैं और आपको बीच में आभूषणों का व्यापारी मिल गया. क्या आप आलू भूलकर आभूषण पर मुद्रा व्यय करेंगे? नहीं करेंगे. क्यों? क्योंकि आपके पास उतनी मुद्रा है ही नहीं.

चिंतामणि गोस्वामी: मैं आपसे एक और प्रश्न करता हूँ. आपने दुशासन को आदेश क्यों दिया कि वे द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर दें?

युवराज: मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत अपनी आँखों पर पट्टी बांधने का संकल्प लिया था.

चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज.

युवराज: आप मेरी बात को ऐसे समझने का प्रयत्न करें. देखिये, नितिशास्त्र कहता है कि हर कार्य धर्मानुसार होना चाहिए. अब आप कोई कार्य धर्मानुसार तब तक नहीं कर सकते जबतक आपको धर्म की व्याख्या का ज्ञान नहीं है. प्रश्न यह नहीं कि द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयत्न किया गया या नहीं, प्रश्न यह है कि धर्म क्या होता है? एक और प्रश्न यह भी है कि क्या चिंतामणि गोस्वामी धर्म का पालन कर रहे हैं? इसका उत्तर यह है कि वे नहीं कर रहे क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता की शिक्षा ली है, धर्म की नहीं. अब प्रश्न यह उठता है कि जब उन्होंने धर्म की शिक्षा नहीं ली तो फिर धर्म की शिक्षा किसने ली? उत्तर यह है कि धर्म की शिक्षा युवराज सुयोधन और उनके भाइयों ने ली. अब प्रश्न यह है कि किससे ली? तो उसका उत्तर यह है कि गुरु द्रोण से ली. तो जब हर प्रश्न का प्रमाणिक उत्तर मैं आपको दे ही रहा हूँ तो फिर यह कहना कि मैं आपके प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे रहा, तर्कसंगत नहीं जान पड़ता.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु युवराज, मेरा प्रश्न यह था कि आपने द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने की आज्ञा क्यों दी?

युवराज: मैंने जब अपने बाल्यकाल से ही अपनी माताश्री को आँखों पर पट्टी बांधे देखा तभी से मेरे ह्रुदय में यह बात घर कर गई कि बड़ा होकर मुझे स्त्रियों के अधिकार के लिए कुछ करना है. मैंने तभी से अपना पूरा जीवन स्त्रियों के अधिकार की रक्षा में समर्पित कर दिया.

चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा कुरु-नंदन, मेरा प्रश्न अब राज्य की समस्याओं के बारे में है. यह बताएं युवराज कि हस्तिनापुर में मंहगाई की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या, किसानो की समस्या और ऐसी ही न जाने कितनी और समस्याएं हैं, जिनसे हस्तिनापुरवासी संघर्ष कर रहे हैं. आपके पास शक्ति है कि आप इन समस्याओं का समाधान कर सके. आपने आजतक कभी इस समस्याओं का समाधान की दिशा में क्यों नहीं सोचा?

युवराज: मैंने इन समस्याओं पर समग्र चिंतन किया है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु किसी ने आपको इन समस्याओं पर बात करते नहीं देखा.

युवराज: मैंने अपनी डायरी में इन समस्याओं और इनसे जुडी चिंताओं का वर्णन किया है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु प्रजा-जनों को आपकी डायरी से क्या लेना-देना?

युवराज: आपने मेरे उत्तर को समझा नहीं. चलिए मैं आपको ऐसे समझता हूँ. कल्पना कीजिये कि मैं आखेट के लिए जंगल में गया. आप प्रश्न कर सकते हैं कि आपके प्रश्न का मेरे आखेट और हस्तिनापुर के जंगल से क्या लेना-देना? तो उसका उत्तर यह है कि आखेट ही हर प्रश्न का उत्तर है. और मैं जबतक जंगल में नहीं जाऊँगा तबतक आखेट नहीं कर पाऊंगा. प्रश्नों के जंगल में ही कहीं उत्तरों का भी एक जंगल समाया हुआ है. मैंने हमेशा से प्रश्न और उत्तरों के जंगल में विचरण करने को ही अपना धर्मं माना है. इस काल की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम युवराजों के लिए आरक्षित जंगलों को प्रजा-जनों के लिए खोल दें. यदि जंगल खुले तो हर प्रश्न के साथ उसका उत्तर भी खुल जायेगा परन्तु समस्या यह है कि जब मैं जंगलों को खोलने की बात करता हूँ तो पांडव यह बात नहीं करते.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा अगला प्रश्न यह है कि आपके मामाश्री क्या आपको अधर्म करने के लिए उकसाते रहे हैं?

युवराज: जब पाठशाला में गुरु द्रोण ने एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था मुझे उसी क्षण लगा था कि ये एकलव्य एकदिन बहुत बड़ा धनुर्धर बनेगा।

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज यह मेरे प्रश्न का उत्तर कैसे हुआ?

युवराज: यही कारण है कि मैं हस्तिनापुर में राजपाट के तौर-तरीके में आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहता हूँ. धर्म क्या है? अधर्म क्या है? प्रश्न क्या और उत्तर क्या है? इन सब बिंदुओं पर विचार कर उनकी पुनः व्याख्या प्रजा-जनों को संतोष प्रदान करेगी।

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, ये बताएं कि प्रजा-जनों के भले के बारे में आपके पास कोई योजना है?

युवराज: हमारे पास प्रजा-जनों की भलाई की समग्र योजना है. हम निकट भविष्य में हस्तिनापुरवासियों को खेल-कूद का सम्पूर्ण अधिकार प्रदान करने वाले हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा एक प्रश्न यह है कि क्या आप भीम से लड़ने के लिए उद्यत हैं? मैं यह प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूँ कि प्रजा-जनों में ऐसे अनुमान लगाये जा रहे हैं कि आप भीम से भयाक्रांत हैं. इस बात को कहाँ तक सत्य माना जाय?

युवराज: मैंने बाल्यावस्था से ही अपने पिताश्री को संजय के सहारे चलते हुए देखा है. मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत ही आँखों पर पट्टी बांधने का निर्णय ले लिया था. मेरी एकमात्र बहन का विवाह जयद्रथ जैसे हलकट के साथ हो गया. मेरे मामाश्री न जाने कितने वर्षों से अपनी बहन के घर की रोटियां तोड़ रहे हैं. पितामह ने सदैव अर्जुन को ही अपना चहेता माना. मैं द्रौपदी स्वयंवर में द्रौपदी को वरण नहीं कर पाया. भीम बाल्यावस्था में हम भाइयों को पटककर मारता था. भीम को विष देकर मारने का प्रयत्न किया तो वह नागलोक में जाकर और बलशाली बन गया. मित्र कर्ण को द्रौपदी ने सूत-पुत्र कहा और मैं कुछ नहीं कर पाया. गुरु द्रोण को वचन देने के उपरांत भी मैं महाराज द्रुपद को बंदी बनाकर लाने में असफल रहा. पत्रकार श्री जिस युवराज सुयोधन के साथ इतनी दुर्घटनाएं हुई हों, उसके पास खोने को क्या रह जाता है? मुझे अब किसी से भय नहीं लगता.

चिंतामणि गोस्वामी: तो क्या मैं यह निष्कर्ष निकालूँ कि आवश्यकता पड़ने पर आप भीम से युद्ध करने के लिए तत्पर हैं?

युवराज: न केवल तत्पर हूँ अपितु यह भी कहता हूँ कि भीम का वध भी करूँगा।

चिंतामणि गोस्वामी: हे कुरु-नंदन आपने यह साक्षात्कार देकर मुझे अनुगृहीत किया. धन्यवाद.

युवराज: धन्यवाद.

Monday, January 13, 2014

हस्तिनापुर




बहुत दिनों बाद करीब सौ ग्राम तुकबंदी/पैरोडी इकठ्ठा हुई है. अभी तो इतना ही बांचिये। आगे इकट्ठी होगी तो प्रस्तुत करूँगा:-)



जय हो जग में जमे जहाँ, औ भ्रष्टाचार अचल हो,
जहाँ रात-दिन नागरिकों संग लूट-पाट हो, छल हो,
जहाँ राष्ट्रहित चिंतक, साधक अपराधी कहलायें,
शासक जहाँ भ्रष्ट हो फिर भी नीतिवचन दोहराए

जहाँ प्रताड़ित हो खुद को धिक्कार रहा जन-जन हो,
जहाँ शुल्क और कर से कुचला शासित का तन मन हो,
जहाँ नीति हो शासन करना जन-जन को वंचित कर,
जहाँ राज करता हो शासक बेशर्मी संचित कर,

जहाँ प्रिंस सम्मान ढूंढता नाम-गोत्र बतलाकर,
खोज रहा पहचान-मान जो दलितों के घर खाकर,
स्वामि-भक्त आमात्य जहाँ चुप्पी साधे जीता हो,
जहाँ नागरिक रोज-रोज अपमान-घूँट पीता हो,

जहाँ ज्ञानसागर गिरवी हो राजमहल में सोता,
कपट खोट से कुंठित होकर निपुण व्यक्ति भी रोता,
जहाँ मिलें अधिकार उन्हें जो हैं कुपात्र और ओछे,
जहाँ सब जगह चमचे मिलते धारण किये अगौंछे,

जहाँ खुशामद जो करता हो, वही श्रेष्ठ ज्ञानी हो,
जहाँ लहू बहता हो जैसे नदियों का पानी हो,
जहाँ दिखाई न देती हो निर्भयता की आग,
जहाँ सुरक्षित नहीं किसी दिश नागरिकों की लाज,

जहाँ समूचा राष्ट्र पड़ा हो अलग दूर कोने में
जहाँ राष्ट्र का आम नागरिक लगा रहे रोने में,
जहाँ नागरिक वंचित हो आधारभूत साधन से,
और जहाँ हो कार्य सिद्ध बस संबंधों से, धन से,

युग की अवहेलना जहाँ हो शासक दल के कर से,
जहाँ कभी आमात्य न निकलें अपने-अपने घर से,
जहाँ दास बन जीवनयापन सर्जक भी करता हो,
जहाँ बुद्धि का स्वामी शासक का पानी भरता हो,

जहाँ करारोपण करने में सत्ता रहती व्यस्त
जहाँ रहे मृतप्राय राष्ट्र और रहे नागरिक पस्त,
जहाँ नशा सत्ता का करवाता रहता अन्याय,
जहाँ अनैतिक शासक करता रहता अर्जित आय,

जहाँ शासकों के मित्रों का बढ़ा चले व्यापार,
जहाँ दुखी होकर सुपात्र बस कहता हो धिक्कार,
वंशवाद की राजनीति हो जहाँ, राष्ट्र मरता हो,
जहाँ प्रजा का नायक भी शासक दल से डरता हो,

जहाँ भीष्म चुप्पी साधे इस युग में भी रहते हों,
जहाँ विदुर बस दुर्योधन की हाँ में हाँ भरते हों,
जहाँ द्रोण और कृपाचार्य फिर हों कौरव के साथ,
जहाँ कर्ण ने कलियुग में भी बाँध लिए हों हाथ,

जहाँ सुरक्षित नहीं दीखती कहीं राष्ट्र सीमायें,
जहाँ पड़ोसी धमकी भी दे अंदर भी घुस आयें,
तुष्टीकरण जहाँ हो आतंकी का, अपराधी का,
जहाँ राज साधन देता हो राष्ट्र की बरबादी का,

जहाँ रहे शासक सह मंत्री निज घमंड में चूर,
जहाँ महल होते जाते है प्रजा जनों से दूर,
जहाँ फूलते कुसुम मात्र अमात्यों के उपवन में,
जहाँ उमड़ता क्रोध ग्लानि बस नागरिकों के मन में,

वहाँ नहीं रख सकता शासक प्रजा-जनों को बांधे,
वहाँ नीयति अपने रस्ते चल अपना आशय साधे,
बुझनी ही हैं वहाँ मनों में धधक रही जो ज्वाला,
वहाँ प्रजा देगी शासक को एक दिन देश निकाला.


Friday, January 3, 2014

आम आदमी, खाँस आदमी




तोला भर तुकबंदी



आम आदमी, खाँस आदमी
मार रहा है बास आदमी
नई-नई टोपी पहनाकर
टाँक रहा इतिहास आदमी

बंगला-मोटर नहीं चाहिए
छोटा सा घर कहीं चाहिए
बड़े बड़े वादे करके भी
घूम रहा बिंदास आदमी

वादे-प्यादे हैं प्रचार में
पर शहज़ादे हैं विचार में
क्लेम करे मिर्चा अचार का
खाये खाली सॉस आदमी

बिजली सस्ती पानी सस्ता
काँधे धारे मोटा बस्ता
भ्रष्टाचार मिटाने वाला
उसी का अंतिम आस आदमी

कहता साथ चलेंगे सबके
जिससे काज फलेंगे सबके
लेकिन आखिर भूले सबको
और करे उपहास आदमी

लोकतंत्र का ढोंग रचाकर
अपनी प्रतिमा खूब सजाकर
फिर लोगों की आशाओं का
करता सत्यानाश आदमी