Monday, November 19, 2012

फेसबुकी और ट्वीटबाज

फेसबुकी ने अपने नए नवेले स्टेटस में लिखा; "आज दांत की डॉक्टर ने लापरवाही के लिए बहुत डांटा।" आधे घंटे में बीस लोगों ने उनकी बात को 'लाइक' कर डाला। फेसबुक से अपरिचित कोई इंसान देखे तो सोचने के लिए मजबूर हो जाए कि जिन लोगों ने फेसबुकी के स्टेटस को 'लाइक' किया, कहीं वे डॉक्टर द्वारा उन्हें लगाईं गई डांट से प्रसन्न तो नहीं हैं? या फिर 'लाइक' करने वाले ये फ्रेंड्स मन ही मन यह सोच रहे होंगे कि; "अच्छा हुआ जो तुझे डॉक्टर ने डांटा। उसने डांट लगाईं तो हमारे कलेजे को ठंडक पहुंची।"

धरमशाला में बिताई गई छुट्टियों की 'पिक्स' फेसबुक पर चढ़ाए आदित्य को आधा घंटा भी नहीं हुआ और सत्तर लोग 'लाइक' कर जाते हैं। यह बात अलग है की 'आदि' बार-बार अपना फेसबुक नोटिफिकेशन अपडेट देखता है। यह जानने के लिए कि जिस कॉलेज फ्रेंड के साथ वह पूरा दिन कॉलेज में था, उसने इन 'पिक्स' को लाइक किया या नहीं? अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे फोन करके रिमाइंड किया जा सकता है। यह कहते हुए कि ;"बेटा, चालीस मिनट हो गए 'पिक्स' लगाए हुए लेकिन उसे अभी तक लाइक नहीं 'करी' तूने। देख लेना, तू भी नेक्स्ट मंथ जाएगा वैकेशंस पर। लद्धाख की पिक्स लगइयो, फिर दिखाऊँगा तुझे। लाइक तो करूंगा नहीं, गन्दा सा कमेन्ट लिख दूंगा सो अलग।"

चंदू के चाचा अगर चंदू की चाची को लेकर चांदनी चौक जाते हैं तो चंदू को भी इस बात की खबर फेसबुक से ही मिलती है। वहीँ चंदू अगर नई जींस खरीद लाता है तो इस बात की ब्रेकिंग न्यूज़ टाइप खबर सबसे पहले स्टेटस के रूप में फेसबुक पर ही उभरती है। जॉब इंटरव्यू में अच्छा नहीं कर पाता तो घर वालों को बताने से पहले फेसबुकी मित्रों को बताता है। उसके स्टेटस मेसेज को देख फ्रेंड्स-लिस्ट में बिराजमान उसके चाचू को समझ में नहीं आता कि वे फेसबुक पर ही उससे सवाल कर लें या घर पहुंचकर उससे बात करें।

वे दिन लद गए जब कवि सौमेंद्र अपनी नई कविता का चुटका जेब में लिए मोहल्ले के कविताप्रेमियों की तलाश में डह-डह फिरा करते थे और तबतक घर वापस नहीं आते थे जब तक उस कविता को किसी न किसी के ऊपर झोंक न देते। अब हाल यह है कि इधर उन्होंने कविता लिखी, उधर आधे घंटे में कविता फेसबुक का स्टेटस बन गई। अगले एक घंटे में पचीसों ने कविता को लाइक कर कविवर को अनुगृहीत कर डाला। फेसबुकी व्यवस्था का एक फायदा यह है कि कविवर की फ्रेंड्स-लिस्ट में उपस्थित मित्र कविता को केवल लाइक कर सकते हैं। ऐसा नहीं कि इस व्यवस्था से हमें केवल फेसबुकी कवि की प्राप्ति होती है। कविवर की फ्रेंड्स-लिस्ट में से ही कोई आलोचक बनकर उभर आता है।

एक ही जगह पर पाठक और आलोचक दोनों मिल जाते हैं। एक कवि को और क्या चाहिए?

ट्वीटबाज ने लिखा; "वी डोंट मेक फ्रेंड्स एनीमोर, वी सिम्पली ऐड देम।"

तमाम लोगों ने न सिर्फ ट्वीटबाज की इस सूक्ति में अपनी आस्था जताई बल्कि घंटे भर में ढाई सौ लोगों ने उसे री-ट्वीट करके इस सूक्ति ठेलक ट्वीटबाज को बिना शर्त समर्थन दे डाला। देशभक्त नम्बर वन के नाम से प्रसिद्द ट्वीटबाज प्रधानमंत्री तक से पॉलिसी मैटर्स पर ट्वीट करके सवाल पूछ ले रहा है। उनकी आलोचना कर रहा है। पार्लियामेंट इज सुप्रीम नामक जुमले पर अपना ट्वीट-रुपी ड्रोन दागकर उसे धराशायी कर दे रहा है। श्रद्धानुसार अपनी ट्वीट से देश को मज़बूत कर रहा है।

जी हाँ, सोशल मीडिया की दुनियाँ में आपका स्वागत है। बोले तो वेलकम टू द वर्ल्ड ऑफ़ सोशल मीडिया। इंटरनेट की नागरिकता प्राप्त शहरी का नया ठिकाना। हाल के वर्षों में भारतीय शहरी को प्रभावित करनेवाला मंहगाई के बाद दूसरा सबसे बड़ा फैक्टर। हाल यह है कि देखकर अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि सोशल मीडिया ने हमारे जीवन में प्रवेश किया या हमारे जीवन ने सोशल मीडिया में।

भारत ही क्यों, दुनियाँ भर में लोगों ने फेसबुक और ट्विटर पर भी अपना एक घर बना लिया है। परिणाम यह कि सोशल मीडिया के ये ठिकाने तमाम लोगों की कलाओं का एक म्यूजियम सा दीखते हैं। यहाँ अब हम इतना समय बिताने लगे हैं कि हमारे ऊपर यहाँ भी परफॉर्म करने का प्रेशर रोज दो इंच बढ़ जाता है। अगर एक फेसबुक स्टेटस हिट हो जाता है तो हमारा अगला प्रयास अपने अगले स्टेटस को सुपरहिट बनाने का होता है। इस कवायद के तहत हम अपने ऊपर प्रेशर भी डाल लेते हैं। कई बार लगता है कि इस चिंता में तमाम लोग सोते से उठ जाते होंगे। इस चिंता में कि कल सुबह फेसबुक का नया स्टेटस किस विषय पर होगा?

ऐसा टेंशन समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों को नए सिंड्रोम ईजाद करने का मौका देता है।

मौका सोशल मीडिया भी सबको दे रहा हैं। हम सवाल उठा सकते हैं, अपनी बात कह सकते हैं, लोगों से बतिया सकते हैं, उनकी आलोचना कर सकते हैं, उनका विरोध कर सकते हैं, और चाहें तो उनसे सहमत भी हो सकते हैं। ऐसा कर सकने की बात शायद उस पॉवर से उभरती है जो हमें यह विश्वास दिलाता है कि हमें कोई पढ़ रहा है, सुन रहा है, देख रहा है।

यही विश्वास मुरादाबाद के चौबे जी से बराक ओबामा तक को ट्वीट करवा देता है और चौबे जी उनसे सवाल पूछ लेते हैं कि वे अगली बार भारत कब आ रहे हैं? या कि मिशेल भाभी कैसी हैं? एक बार तो उन्होंने ओबामा जी पूछा कि अगर वे अमेरिका जाएँ तो क्या ओबामा जी से मुलाकात हो सकती है? इस बात की सनद नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने उनके सवालों का क्या जवाब दिया? इसी सिद्धांत के तहत लोग भारत के प्रधानमंत्री तक से सवाल पूछते बरामद होते है। उनके अर्थशास्त्र के ज्ञान तक पर शंका जाहिर कर देते हैं। उन्हें सुझाव दे डालते हैं। जो अमिताभ बच्चन सिनेमा की स्क्रीन से चलकर लोगों के ड्राइंग रूम तक ही पहुंचे थे, वही अब लोगों के स्मार्ट फ़ोन और लैपटॉप की स्क्रीन तक पहुँच गए हैं। ट्विटर और फेसबुक प्रदेश का नागरिक उनसे बतिया रहा है।

अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपने लिए स्पेस निकाल लिया जा रहा है। अपनी विचारधार की रक्षा की जा रही है। समर्थकों और विरोधियों के गुट बन रहे हैं। विरोधी की ट्वीट-मिसाइल टाइम-लाइन पर गिरी नहीं कि उसके जवाब में इधर से एक मिसाइल दाग दी जाती है। एकाग्रचित्त होकर लोग एक-दूसरे से सलट ले रहे हैं। फालोवर्स आ रहे हैं। स्पेस बढ़ाया जा रहा है। ह्यूमर को नए आयाम दिए जा रहे हैं। चुटुकुले गढ़े जा रहे हैं। तर्क दिए जा रहे हैं। तर्क स्वीकार किये जा रहे हैं। सहमति बनाई जा रही है। नीतियों और खबरों का विश्लेषण किया जा रहा है। खबरों को नए नजरिये से न सिर्फ देखा जा रहा है बल्कि वह नजरिया हजारों तक पहुँचाया जा रहा है।

कुल मिलाकर एक बिकट नए-लोकतंत्र की सृष्टि कर ली जा रही है।

सोशल मीडिया में हमारी जीवनशैली दिक्खे, बात यहीं ख़त्म होती नहीं लगती। अब लोग इस बात की भी आशंका जताने लगे हैं कि विवाह-योग्य कन्या का पिता आनेवाले समय में वर के पिता से सवाल सकता है कि; "भाईसाहब, मैंने तो आपके बेटे को देख लिया है। अब एक सवाल बेटी डॉली के बिहाफ पर पूछ रहा हूँ। वह जानना चाहती है कि ट्विटर पर आपके बेटे के फालोवर्स कितने हैं? कह रही थी अगर फालोवर्स पाँच हज़ार होंगे तो सिद्ध हो जाएगा कि आपके बेटे का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर अच्छा है।"

यह बात भी की जा रही है कि आनेवाले समय में नौकरी के लिए जारी विज्ञापन में कंपनी लिख सकती है; 'कैंडिडेट्स विद मोर दैन टेन थाऊजेंड फालोवर्स ऑन ट्विटर विल बी प्रेफर्ड' या 'कैंडिडेट्स विद मोर दैन सेवेन थाऊजेंड सब्सक्राइबर्स ऑन फेसबुक विल बी प्रेफर्ड' अब तो कुछ जॉब इंटरव्यू ट्विटर पर ही हो जा रहे हैं और लोगों को वहीँ से रिक्रूट कर लिया जा रहा है। अब ट्विटर और फेसबुक सेलेब्रिटी दूरसंचार कंपनियों के ब्रांड एम्बेसेडर बना लिए जा रहे हैं।

कुछ ट्वीटबाजों की ट्वीट्स देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे इस मीडियम को कितनी गंभीरता से लेते हैं? उनके ट्विटर टाइमलाइन को कोई पढ़ ले तो उसके मन में बात आ सकती है कि ; "इस ट्वीटबाज को विश्वास है कि उसे एक दिन स्टार ट्वीटर ऑफ़ द ईयर का पुरस्कार ज़रूर मिलेगा। या कि ये ट्वीटबाज एक दिन आयोजित होनेवाले अंतर्राष्ट्रीय ट्वीट कान्फरेन्स में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा। कि वह दिन भी आ जाएगा जब बुकर प्राइज़ कमिटी प्रावधान करेगी कि ट्वीटस के लिए भी बुकर प्राइज दिया जाय।"

हर तरह के लोगों से सुसज्जित है ट्विटर का प्लेटफ़ॉर्म। यह हमपर निर्भर करता है कि हम किसे फालो करना है? इस मामले में ये ठिकाने बड़े डेमोक्रेटिक हैं। जो जिसको चाहे फालो कर ले। कोई चाहे तो ऐसे ट्वीटबाज को फालो कर ले जिनका ट्वीट-दर्शन अमेरिका से प्रभावित है। जैसे युद्ध में अमेरिका कारपेट बॉम्बिंग करता है वैसे ही ये ट्वीटबाज कारपेट ट्वीटिंग करते हैं। इनके कीबोर्ड से एक क्षण अगर अफगानिस्तान पर घोषित नई अमेरिकी नीति के समाचार वाला लिंक है तो दूसरे ही क्षण ये ब्राजील की इकॉनमी के सॉफ्ट लैंडिंग के विषय में आई खबर का लिंक ट्वीट कर डालेंगे। पांच मिनट के अन्दर ये अफ्रीका के खाद्यान्न संकट, ऑपेक देशों द्वारा क्रूड आयल के उत्पादन में की गई कटौती, करण जोहर की नई फिल्म की रपट, फ़ूड इन्फ्लेशन के आँकड़े, वगैरह की खबरों वाले लिंक ट्वीट कर सकते हैं। आपको जो पढना हो, उसे चूज कर लें। ऐसे ट्वीटबाजों के फालोवर्स इस बात से प्रभावित हुए बिना नहीं बच पाते कि बन्दे के इन्टरेस्ट कितने वाइड हैं।

इन सबके बीच सोशल मीडिया चुनौती भी दे रहा है। चुनौती सरकारों को। पारंपरिक मीडिया को। चुनौती इसे इस्तेंमाल करने वालों को।

इसे कहाँ, कब और कितना इस्तेमाल किया जाय, उसपर बहस शुरू हो गई है। जहाँ सरकारी कवायद इस बात पर केन्द्रित है कि क्या सोशल मीडिया को कुछ हद तक कंट्रोल किया जाय, वहीँ इस्तेमाल करनेवाले इस बात पर भी विचार करने लगे हैं कि वे कितना समय दें? यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो देर-सबेर हर माध्यम पर लागू होती है। जो भी है, फिलहाल तो ऐसा लगता है कि अभी इस मीडिया के लिए ये शुरुआती दिन हैं और आनेवाले समय में यह अपने आप अपनी तरह से अपना विकास कर लेगा। जो भी है, माध्यम है मस्त।

जैसा कि प्रसिद्द ट्वीटबाज माधवन नारायणन जी ने अपनी एक ट्वीट में लिखा; "एज आई हैव सेड इट अर्लियर टू, ट्विटर इज अ ग्रेट प्लेस टू इंस्पायर एंड कन्स्पायर।"


नोट: यह लेख दीपावली पर निकलनेवाली नवभारत टाइम्स की पत्रिका के लिए लिखा गया था।

14 comments:

  1. "सोशल मीडिया ने हमारे जीवन में प्रवेश किया या हमारे जीवन ने सोशल मीडिया में। " इस प्रश्न का उत्तर अभी तक नदारद है.. :)

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  2. वाह भैया ... सदा की तरह अद्भुत ... हालांकि आपने "हम लोग" के चिरपरिचित किसी भी "स्पेसिमेन" को यहाँ प्रगट नहीं किया है ;) ... और इमानदारी से कहूँ तो आपके ब्लॉग पर कमेन्ट देने पर आशंका भी बनी रहती है की कहीं ज्यादा "लच्छेदार" टिप्पणी कर दी तो वो कहीं आपको "चाटुकार" टिप्पणी करने वाले "टिप्पणों" पर ब्लॉग लिखने की प्रेरणा न दे जाए ;) ....

    ओन अ सीरियस नोट , योर ब्लॉग इज पार एक्स्सिलेंस ... (ई अंग्रेजिया में लिखे की हमारी गंभीरता रस जैसे हर शब्द से चूए )
    रेखा के निचे नॉन चिरकुटई वाला कमेन्ट है (अच्छा हुआ आपका ब्लॉग पढ़ लिया वरना आज तो हम क्रान्ति लाने ही वाले थे|)
    ************************************************************************

    हमेशा की तरह आपने हमें यह सोचने के लिए विवश कर दिया की कैसे यह अधिकाधिक पाठकों तक पहुँचे .. एक री ट्वीट या एक शेयर की सीमा से परे ...

    (कम लिखा और जानता हूँ की आप समझेंगे )

    शैलेश

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  3. 'हाल यह है कि देखकर अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि सोशल मीडिया ने हमारे जीवन में प्रवेश किया या हमारे जीवन ने सोशल मीडिया में।'
    यही अनुमान हम भी नहीं लगा पा रहे हैं. पहले जब समय होता था, कुछ बहुत जरूरी चीज लगती तो हम आ जाते थे ट्विटर पर. लेकिन धीरे-धीरे ट्विटर ने हमें बदल दिया. लोकल ट्रेन कि भीड़ में, बस के ठेलमठेल में, पिकनिक में, किसी की शादी में, बर्थडे में, शोकसभा में, जहाँ गया, ट्विटर में ही डूबा रहा. जल्दी सोने की आदत छूट गयी. अर्नब गोस्वामी को देखो और ट्विट करो. रात को पानी पिने उठो तो भी 'मेंशन' देख लिया. सुबह उठ के पहले मोबाइल ही देखता था. इसी चक्कर में नोकिया छोड़कर सैमसंग गैलेक्सी लिया.
    हाल कुछ ऐसा हुआ की घर वालों को संदेह होने लगा कि कोई 'चक्कर' तो नहीं लग गया लड़के को. आखिर किसको मैसेज करते रहता है दिन-रात. खैर.....

    किस्मत फूटी है, फोन चोरी हो गया. लेकिन अगले ही दीं किसी शुभचिंतक ने चालीस हजार का आईफोन गिफ्ट कर दिया. ट्विट जारी रहा. किस्मत ने फिर अपना रंग दिखाया, आईफोन भी चोरी हुआ.
    अब हिम्मत नहीं थी एक और स्मार्ट फोन खरीदने की. लैपटॉप/ डेस्कटॉप के भरोसे ट्विटर होता नहीं. कुछ दिनों तक तो हाथ में खुजली होती रही लेकिन अब नशा उतरता सा दिख रहा है.

    सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इस्तेमाल होने में मजा नहीं है..

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  4. भावनात्मक विषय है, लाइक करना, न करना।

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  5. सोशल मीडिया के अवतरण के बाद ब्लॉग लम्बा लगने लगा है.

    शेष तो आनन्दम आनन्दम :)

    वैसे एक ट्विट आपको जेल पहुँचा सकती है. और सिकियां पहलवान ताकतवर आदमी को ट्विट पर ललकार सकता है. और मूँछों के ताव दे सकता है. क्या खूब चीज है जी.

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  6. मैं पढ़ते पढ़ते यही सोच रहा था कि टिप्पणी में पूछूँगा कि कहीं छपा कि नहीं ? लेकिन यह तो लिखा ही गया था छपने के लिए । वाह !
    जब छपने के लिए लिखा जाता है तो लिखने में कुछ फर्क तो आता ही है......

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    1. शिष्य, फर्क आ जाना स्वाभाविक है। प्रिंट मीडिया एक पिंजरा दे देता है और कहता है कि उसी में उड़ान भरनी है।

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  7. बराक ओबामा से लेकर चौबे जी तक सभी ट्वीट करने में लगे हुए हैं । ठीक है लगने दो हमारे लिये तो ब्लॉग ही अच्छा है । अब इस उमर में छिछोरा पन.........न न ।

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  8. प्रिय ब्लॉगर मित्र,

    हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

    शुभकामनाओं सहित,
    ITB टीम

    http://indiantopblogs.com

    पुनश्च:

    1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

    2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।


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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय