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Friday, December 30, 2011

बापी दास का क्रिसमस




यह निबंध नहीं बल्कि कलकत्ते में रहने वाले एक युवा, बापी दास का पत्र है जो उसने इंग्लैंड में रहने वाली अपने एक नेट-फ्रेंड को लिखा था. इंटरनेट सिक्यूरिटी में हुई गफलत के कारण यह पत्र लीक हो गया. ठीक वैसे ही जैसे सत्ता में बैठी पार्टी किसी विरोधी नेता का पत्र लीक करवा देती है. आप पत्र पढ़ सकते हैं क्योंकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे 'प्राइवेट' समझा जा सके.

दिसम्बर २००७ में लिखा था. फिर से पब्लिश कर दे रहा हूँ. जिन्होंने नहीं पढ़ा होगा वे पढ़ लेंगे:-)

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प्रिय मित्र नेटाली,

पहले तो मैं बता दूँ कि तुम्हारा नाम नेटाली, हमारे कलकत्ते में पाये जाने वाले कई नामों जैसे शेफाली, मिताली और चैताली से मिलता जुलता है. मुझे पूरा विश्वास है कि अगर नाम मिल सकता है तो फिर देखने-सुनने में तुम भी हमारे शहर में पाई जाने वाली अन्य लड़कियों की तरह ही होगी.

तुमने अपने देश में मनाये जानेवाले त्यौहार क्रिसमस और उसके साथ नए साल के जश्न के बारे में लिखते हुए ये जानना चाहा था कि हम अपने शहर में क्रिसमस और नया साल कैसे मनाते हैं. सो ध्यान देकर सुनो. सॉरी, पढो.

तुमलोगों की तरह हम भी क्रिसमस बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. थोडा अन्तर जरूर है. जैसा कि तुमने लिखा था, क्रिसमस तुम्हारे शहर में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है, लेकिन हम हमारे शहर में घूम-घाम के साथ मनाते हैं. मेरे जैसे नौजवान छोकरे बाईक पर घूमने निकलते हैं और सड़क पर चलने वाली लड़कियों को छेड़ कर क्रिसमस मनाते हैं. हमारा मानना है कि हमारे शहर में अगर लड़कियों से छेड़-छाड़ न की जाय, तो यीशु नाराज हो जाते हैं. हम छोकरे अपने माँ-बाप को नाराज कर सकते हैं, लेकिन यीशु को कभी नाराज नहीं करते.

क्रिसमस का महत्व केक के चलते बहुत बढ़ जाता है. हमें इस बात पर पूरा विश्वास है कि केक नहीं तो क्रिसमस नहीं. यही कारण है कि हमारे शहर में क्रिसमस के दस दिन पहले से ही केक की दुकानों की संख्या बढ़ जाती है. ठीक वैसे ही जैसे बरसात के मौसम में नदियों का पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है.

क्रिसमस के दिनों में हम केवल केक खाते हैं. बाकी कुछ खाना पाप माना जाता है. शहर की दुकानों पर केक खरीदने के लिए जो लाइन लगती है उसे देखकर हमें विश्वास हो जाता है दिसम्बर के महीने में केक के धंधे से बढ़िया धंधा और कुछ भी नहीं. मैंने ख़ुद प्लान किया है कि आगे चलकर मैं केक का धंधा करूंगा. साल के ग्यारह महीने मस्टर्ड केक का और एक महीने क्रिसमस के केक का.

केक के अलावा एक चीज और है जिसके बिना हम क्रिसमस नहीं मनाते. वो है शराब. हमारी मित्र मंडली (फ्रेंड सर्कल) में अगर कोई शराब नहीं पीता तो हम उसे क्रिसमस मनाने लायक नहीं समझते. वैसे तो मैं ख़ुद क्रिश्चियन नहीं हूँ, लेकिन मुझे इस बात की समझ है कि क्रिसमस केवल केक खाकर नहीं मनाया जा सकता. उसके लिए शराब पीना भी अति आवश्यक है.

मैंने सुना है कि कुछ लोग क्रिसमस के दिन चर्च भी जाते हैं और यीशु से प्रार्थना वगैरह भी करते हैं. तुम्हें बता दूँ कि मेरी और मेरे दोस्तों की दिलचस्पी इन फालतू बातों में कभी नहीं रही. इससे समय ख़राब होता है.

अब आ जाते हैं नए साल को मनाने की गतिविधियों पर. यहाँ एक बात बता दूँ कि जैसे तुम्हारे देश में नया साल एक जनवरी से शुरू होता है वैसे ही हमारे देश में भी नया साल एक जनवरी से ही शुरू होता है. ग्लोबलाईजेशन का यही तो फायदा है कि सब जगह सब कुछ एक जैसा रहे.

नए साल की पूर्व संध्या पर हम अपने दोस्तों के साथ शहर की सबसे बिजी सड़क पार्क स्ट्रीट चले जाते हैं. है न पूरा अंग्रेजी नाम, पार्क स्ट्रीट? मुझे विश्वास है कि ये अंग्रेजी नाम सुनकर तुम्हें बहुत खुशी होगी. हाँ, तो हम शाम से ही वहाँ चले जाते हैं और भीड़ में घुसकर लड़कियों के साथ छेड़-खानी करते हैं.

हमारा मानना है कि नए साल को मनाने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं होगा. सबसे मजे की बात ये है कि मेरे जैसे यंग लड़के तो वहां जाते ही हैं, ४५-५० साल के अंकल टाइप लोग, जो जींस की जैकेट पहनकर यंग दिखने की कोशिश करते हैं, वे भी जाते हैं. भीड़ में अगर कोई उन्हें यंग नहीं समझता तो ये लोग बच्चों के जैसी अजीब-अजीब हरकतें करते हैं जिससे लोग उन्हें यंग समझें.

तीन-चार साल पहले तक पार्क स्ट्रीट पर लड़कियों को छेड़ने का कार्यक्रम आराम से चल जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से पुलिस वालों ने हमारे इस कार्यक्रम में रुकावटें डालनी शुरू कर दी हैं. पहले ऐसा ऐसा नहीं होता था. हुआ यूँ कि दो साल पहले यहाँ के चीफ मिनिस्टर की बेटी को मेरे जैसे किसी यंग लडके ने छेड़ दिया. बस, फिर क्या था. उसी साल से पुलिस वहाँ भीड़ में सादे ड्रेस में रहती है और छेड़-खानी करने वालों को अरेस्ट कर लेती है.

मुझे तो उस यंग लडके पर बड़ा गुस्सा आता है जिसने चीफ मिनिस्टर की बेटी को छेड़ा था. उस बेवकूफ को वही एक लड़की मिली छेड़ने के लिए. पिछले साल तो मैं भी छेड़-खानी के चलते पिटते-पिटते बचा था.

नए साल पर हम लोग कोई काम-धंधा नहीं करते. वैसे तो पूरे साल कोई काम नहीं करते, लेकिन नए साल में कुछ भी नहीं करते. हम अपने दोस्तों के साथ ट्रक में बैठकर पिकनिक मनाने जरूर जाते हैं. वैसे मैं तुम्हें बता दूँ कि पिकनिक मनाने में मेरी कोई बहुत दिलचस्पी नहीं रहती. लेकिन चूंकि वहाँ जाने से शराब पीने में सुभीता रहता है सो हम खुशी-खुशी चले जाते हैं. एक ही प्रॉब्लम होती है. पिकनिक मनाकर लौटते समय एक्सीडेंट बहुत होते हैं क्योंकि गाड़ी चलाने वाला ड्राईवर भी नशे में रहता है.

नेटाली, क्रिसमस और नए साल को हम ऐसे ही मनाते हैं. तुम्हें और किसी चीज के बारे में जानकारी चाहिए, तो जरूर लिखना. मैं तुम्हें पत्र लिखकर पूरी जानकारी दूँगा. अगली बार अपना एक फोटो जरूर भेजना.

तुम्हारा,
बापी

पुनश्च: अगर हो सके तो अपने पत्र में मुझे यीशु के बारे में बताना. मुझे यीशु के बारे में जानने की बड़ी इच्छा है, जैसे, ये कौन थे?, क्या करते थे? ये क्रिसमस कैसे मनाते थे?

Saturday, December 24, 2011

लोकपाल कोई भी बने, उसका उदघाटोन का लिए हामको जोरूर बुलाये




पहले बातें हुई कि लोकपाल आना चाहिए. हील-हुज्ज़त के बाद यह बात शुरू हुई कि लोकपाल आ रहा है. एक बार लगा भी कि अब आ ही जाएगा लेकिन फिर लगा कि शायद आने में देरी है. महत्वपूर्ण लोगों को आने में देरी होती ही है और आज की तारीख में लोकपाल से महत्वपूर्ण कौन है? फिर इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गई कि जो लोकपाल आएगा वह कमज़ोर हो कि मज़बूत? जबतक कुछ लोग़ कमज़ोर लोकपाल चाहते थे तबतक उसके आने की उम्मीद बनी हुई थी. समस्या तब से शुरू हुई जबसे इस मुद्दे से जुड़े सभी पक्ष मज़बूत लोकपाल लाना चाहते हैं.

अब लगता है कि लोकपाल आज के ज़माने की मूंगफली बनकर रह गया है. यानि टाइम-पास.

खैर, अब तक लगभग सभी जगह बहस हो चुकी है. रतीराम जी की पान-दुकान, बस, लोकल ट्रेन, फेसबुक, ट्विटर, गूगल-प्लस, से लेकर सर्वोपरि पार्लियामेंट तक में बहस हो चुकी है. कल किसी पाठक ने याद दिलाया कि मेरे ब्लॉग पर लोकपाल जैसे महतवपूर्ण मुद्दे पर बहस नहीं हुई है. वे मुझे धिक्कारते हुए बोले; "अगर इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर बहस नहीं करवा सकते तो ब्लागिंग में काहे झक मार रहे हैं."

आप में से जो ब्लॉगर हैं, उन्हें पता होगा कि एक ब्लॉगर का ईगो कितना बड़ा होता है. उधर हमारा ईगो हर्ट हुआ और इधर मैंने चंदू को भेज दिया लोकपाल के मुद्दे पर तमाम लोगों के बयान लेने. आप पढ़िए कि लोगों ने क्या कहा?

हरभजन सिंह : "आई वांट लोकपाल टू मेक इट लार्ज. मैं तो जी मानता हूँ कि लोकपाल बने और बड़ा बने. छोटे लोकपाल से क्या फायदा? मैं तो यह चाहूँगा कि जो भी लोकपाल हो, ही शुड स्ट्राइक ऐट रूट ऑफ करप्शन. कहने का मतलब ये कि स्ट्राकिंग लोकपाल हो. बिलकुल मेरी तरह जैसे मैं इंडियन टीम का स्ट्राकिंग बॉलर हूँ."

कपिल सिबल : "(मुस्कुराते हुए) लोकपाल लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. लोकपाल के बारे में डिस्कशन हमें जीरो से शुरू करना चाहिए. आप जानते ही होंगे कि कोई बात जब जीरो से शुरू होती है तो बड़ा फायदा होता है. सोनिया जी भी चाहती हैं कि एक मज़बूत लोकपाल आये. बहस के बाद जब भी लोकपाल बिल संसद में पास हो जाए तो मैं चाहूँगा कि सरकार के पास ये अधिकार रहे कि जो भी लोकपाल बने उसके बोलने या कुछ करने से पहले उसके दिमाग की स्कैनिंग कर सके. एकबार स्कैनिंग हो जाए तो फिर हम उन्ही बातों को उनसे बोलने के लिए कहेंगे जो हम चाहते हैं. मैं आई टी मिनिस्टर भी हूँ और मैंने कई टेक कंपनियों के रीप्रजेंटेटिव की एक मीटिंग की है. मैंने उनसे कहा है कि वे सजेस्ट करें कि लोकपाल की सोच और उनके काम की प्री-स्क्रीनिंग कैसे की जाए? अगर ये कम्पनियाँ हमारे साथ को-ऑपरेट नहीं करतीं तो फिर हम कोर्ट जायेंगे. "

प्रनब मुखर्जी : "ऐज आभार पार्टी हैज सेड आर्लियर आल्सो, उइ आल उवांट ए स्ट्रांग लोकपाल.. बाट ऐज इयु नो, डियु टू रेसेसोन ईन एयुरोप, ईट हैज रियाली बीकोम डिफिकोल्ट टू शासटेन ऐंड ब्रींग लोकपाल ऐज पार पीपुल्स च्वायस. बाट उइ स्टील बिलीभ दैट साम डे, स्पेसोली हुएन इन्फलेशोंन ईज कोंट्रोल्ड, उइ उविल बी एभुल टू ब्रींग ए स्ट्रांग लोकपाल."

लालू जी : "आ पहले बात सुनो आगे ही भकर-भकर मत बोलो. सूनो.. आ ई आना जो हैं देश के खिलाफ साजिश कर रहे हैं. आई भिल टेल नेशन... ई लोग़ सब सड़क पर बैठ के बिल बनना चाहता है लोग़. संसद जो है, ऊ सर्वोपरि है. ई सब आर एस एस वाला जो है सब आना के भड़काता है लोग़. हमलोग ऐज अ रिस्पेक्टेड लीडर का करप्शन नहीं मिटाना चाहते? आ फिर, का ज़रुरत है स्ट्रोंग लोकपाल का? हमको बताओ. लोकपाल जो है सो उ दूध का माफिक रहना चाहिए. जहाँ ढाल दिए, उहाँ ढल गया. तब न जाके अपना काम कर पायेगा. असली लोकपाल जो है सो दलित के बारे में सोचेगा..भीकर सेक्शन आफ सोसाइटी के बारे में सोचेगा...हमारे मुस्लिम भाइयों के बारे में सोचेगा...सीख भाइयों के बारे में सोचेगा..आ सुनो, हीन्दू, मुस्लिम, सीख, ईसाई, आ, आपस में हैं सब भाई-भाई.."

मुलायम जी : "देखिये सुइए..क्या है ये लोकपा? ये जो है वो एक तईका है... दओगा-आज लाने का तईका है ये. ओकपाल आ जाने से, अच्छे ओग आजनीति में आना बंद क देंगे. अखियेश ने हमें बताया है. सवोच्च-न्यालय को भी ये ओग चाहते हैं कि न्यालय भी लोकपा के अधीन ओ जाए..ऐसा संभव नहीं है..बात मानिए हमाई..ये ओकपाल का आना लोकतंत्र के इए खतरा है. सका को चाहिए कि ऐसा कदम न उहाये. वियोध कयेंगे हम सका के इस कदम का."

सुब्रमनियम स्वामी : "मेरे पास सुबूत हैं कि लोकपाल के मुद्दे पर चिदंबरम और सिबल के बीच कुल पाँच मीटिंग्स हुई थी और दोनों ने डिसाइड किया था कि फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व बेसिस पर लोकपाल का अप्वाइंटमेंट होगा. चिदंबरम भले ही कहें कि ऐसी कोई मीटिंग नहीं हुई लेकिम मेरे पास इसका सुबूत है. मिनट्स ऑफ मीटिंग्स भी हैं. मैं जल्द ही ट्वीट करके बताऊंगा कि मैं आगे क्या करने वाला हूँ. जहाँ तक यह बात है कि लोकपाल कैसा रहे तो मेरे विचार से हमें एक विराट लोकपाल के गठन की कोशिश करनी चाहिए. इसी से करप्शन को दूर किया जा सकेगा."

प्रधानमंत्री जी : "




."

अरनब गोस्वामी : "दिस चैनल इज गोइंग तो आस्क सम टफ क्वेश्चंस टूनाईट एंड वी विल मेक इट स्योर दैट द इश्यू ऑफ लोकपाल इज नॉट पोलिटिसाइज्ड. वी अस्योर आर व्यूअर्स दैट वी आर ऑन ओउर हाइ-वे टू सीक द ट्रुथ एंड....

विनोद दुआ : "सभी यह चाहते हैं कि लोकपाल आये और एक मज़बूत लोकपाल आये परन्तु प्रश्न यह है कि लोकपाल के आने के बाद क्या नरेन्द्र मोदी को अपने किये पर शर्म आएगी? क्या वे राष्ट्र से माफी मांगेंगे? हजारों लोगों की हत्या की जिम्मेदारी जिनके ऊपर है उन्हें क्या लोकपाल सज़ा दिला पायेगा? अगर लोकपाल के आने के बाद भी नरेन्द्र मोदी को सज़ा नहीं मिलेगी तो फिर मुझे समझ नहीं आता कि ऐसा लोकपाल किस तरह भारत के हित में है. आप इसपर विचार करें तब तक हम सुनते हैं मुकेश का गाया गीत. फिल्म का नाम है पहली नज़र. गाने के बोल हैं; "दिल जलता है तो जलने दो..." गीतकार हैं आह सीतापुरी और संगीत अनिल विश्वास का है..."

शाहरुख़ खान, उर्फ़ डान -२ : "लोकपाल का आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. हे हे हे हे हे.."

किरण बेदी : "ये देश के साथ अन्याय है. जिस तरह से सरकार ने लोकपाल के मुद्दे पर पूरे देश के साथ धोखा किया है हम उसे जनता के बीच लेकर जायेंगे. अभी तक तो हम ये मांग करते रहे हैं कि लोकपाल मज़बूत होना चाहिए लेकिन अब हम उनमें एक और मांग जोड़ देंगे कि लोकपाल ऐसा होना चाहिए जो अन्ना की तरह ही अनशन कर सके. हम तब तक नहीं बैठेंगे जबतक..."

रजत भंडारी, आई ए एस, चीफ सेक्रेटरी, सेंट्रल पब्लिक प्रोक्योरमेंट कमिटी : "मैं तो चाहूँगा कि देश को सही लोकपाल मिले उसके लिए हमें इसी वित्तवर्ष के मार्च महीने में लोकपाल सप्लाई का एक ग्लोबल टेंडर फ्लोट करना चाहिए. ऐसा करने से देश को मजबूत, कम्पीटेटिव और सस्ता लोकपाल मिलेगा...."

माननीय अमर सिंह जी : "कोई ज़रूरी नहीं कि देश में भ्रष्टाचार का खात्मा लोकपाल ही कर सकता है. मैं खुद भ्रष्टाचार ख़त्म कर सकता हूँ. अगर माननीय प्रधानमंत्री और सोनिया जी कहें तो मैं इस दिशा में काम करने के लिए तैयार हूँ. लोकतंत्र में मतभेद के लिए स्थान है. दरअसल मैंने सिंगापुर जाकर इलाज कराने के बहाने जो जमानत ली, वह भ्रष्टाचार मिटाने के लिए ही ली. ताकि मैं स्टैडिंग कमिटी की मीटिंग में हिसा ले सकूँ और देश से भ्रष्टाचार मिटा सकूँ. ये अलग बात है कि मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूँ और घूम-फिर कर रैली भी कर रहा हूँ लेकिन बेसिक बात यही है कि मैं भ्रष्टाचार मिटाने में सक्षम हूँ."

एस एम कृष्णा : "पुर्तगाल की जनता एक सशक्त लोकपाल चाहती है और हमारी सरकार उन्हें एक सशक्त लोकपाल देने के लिए प्रतिबद्ध है."

ममता बनर्जी : "ये देश में जो कारप्शोंन है सोब लेफ्ट-फ्रोन्ट का बाजाह से हुआ है. किन्तु आब सोरकार सोतर्क हो गया है. अब लेफ्ट बेंगोल में भी नहीं रहा. सो, हाम तो एही कहेगा कि भ्रोष्टचार आब खोतोम होगा. किन्तु हाम इसका बास्ते एफ डी आई नहीं आने देगा... हाम तो प्रोधानमोंत्री से कहूँगी कि लोकपाल कोई भी बने, उसका उदघाटोन का लिए हामको जोरूर बुलाये. "

और लोगों की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है. आने पर लगा दी जायेंगी. तब तक इतना बांचकर एक नई बहस छेड़ी जाय:-)

Wednesday, December 7, 2011

दुर्योधन की डायरी - पेज ३२०३




बहुत बढ़ गई है प्रजा भी. बताओ, मेरे फैसले पर बवालिया निशान लगा दिया. ऐसा कौन सा जुलुम कर दिया मैंने जो प्रजा इस तरह से बवाल कर रही है? अरे मैंने यही तो ढिंढोरा पिटवाया कि प्रजा के लोग़ चाय-पान की दुकानों में बैठकर राजमहल के बारे में उल्टी-सीधी बातें न किया करें? मैं कहता हूँ उल्टी-सीधी बातें करने के अलावा भी कोई काम है कि नहीं इनके पास? कोई काम नहीं है तो चौपाल पर बैठकर बिरहा गायें? खुद इनलोगों को भी आनंद आएगा. अगर बिरहा इसलिए नहीं गा सकते क्योंकि पुरानी धुनें अब बोर करती हैं तो नई धुनें तैयार करें. नई धुनें तैयार नहीं कर सकते तो परदेस के किसी संगीतकार की धुन चुरा लें. किसी फ़िल्मी गाने की धुन चुरा लें. मैं कहता हूँ मन हो तो चाहे संगीतकार को ही चुरा लें लेकिन बिरहा गाते रहें. इनका मन भी बहलता रहेगा और राजमहल के लोगों को गाली देकर जीभ थका देने की ज़रुरत भी नहीं पड़ेगी.

आठ-नौ महीनों से गुप्तचर रपट दे रहे थे कि प्रजा के लोग़ न केवल मेरे बारे में बल्कि दुशासन, कर्ण, जयद्रथ और दुशाला के बारे में भी उल्टी-सीधी बातें करते हैं. किसी को जयद्रथ के मदिरापान करके सड़कों पर बवाल करने पर रोष है तो कोई इस बात पर गुस्सा है कि दुशासन ने उसकी बहन को मेले में छेड़ दिया था. कोई ये कह रहा है कि मामाश्री गंधार से आयात किये जाने वाले घोड़ों पर दलाली खाते हैं. मुझे आश्चर्य तो तब हुआ जब लोग़ इस बात पर भी बहस करने लगे कि राजमहल ने उस पानवाले को वाणिज्य और व्यापार में उसके योगदान के लिए भरतश्री से सम्मानित क्यों किया जिसकी दूकान से दुशासन पान खाता है? किसी को महगाई बढ़ जाने से शिकायत है तो किसी को किसानों की खराब होती हालत पर.

यहाँ तक कि लोग़ पुरानी बातें भी खोदकर निकाल ले आये हैं. बिना सबूत के यह आरोप लगा रहे हैं कि गुरु द्रोण के आश्रम में पढ़ाई-लिखाई के दौरान मैंने और दुशासन ने भीम को खीर में जहर खिलाकर मार देने की कोशिश की थी. मैंने पूछता हूँ कहाँ है सुबूत कि हम भाइयों ने ऐसा कुछ किया? किसके पास है इस बात का सुबूत? एक अखबार के कार्टूनिस्ट ऐसा कार्टून बनाया जिसमें उसने दिखाया कि भीम खीर का इंतज़ार कर रहा है और मैं दुशासन के साथ मिलकर उसकी खीर में जहर मिला रहा हूँ. मुझे तो बड़ा गुस्सा आया. मेरी चलती तो मैं तो उसी दिन उस कार्टूनिस्ट के ऊपर बलात्कार का आरोप लगाकर उसे जेल में ठूंसवा देता लेकिन मामाश्री ने रोक दिया. गुप्तचरों ने यह भी सूचना दी कि प्रजा के लोग़ फिर से पुरानी बात निकाल लायें कि लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मार देने की साजिश मैंने की थी. बिना सबूत के किसी के ऊपर आरोप लगाना कहाँ तक उचित है? मैं पूछता हूँ किसी के पास कोई रिकार्डिंग्स है क्या जिसमें मैं और मामाश्री पांडवों को जलाकर मार देने की साजिश रचा रहे हैं? अगर सबूत नहीं है तो फिर मैं कैसे मान लूँ कि वह साजिश हमने की थी? सोच रहा हूँ कि अब समय आ गया है एक ऐसा कानून लाने का जिसमें ऐसा प्रावधान हो कि अगर कोई बिना रिकार्डिंग्स के किसी के ऊपर कोई आरोप लगाता है तो उसके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा करके उसे सीधा जेल में ठूंस दें.

मैं पूछता हूँ प्रजा का जन्म क्या शिकायत करने के लिए होता है? अब रात्रि के इस पहर यहाँ तो कोई है नहीं जो मेरे इस सवाल का जवाब देगा तो मैं खुद ही अपने सवाल का जवाब लिख देता हूँ. प्रजा का जन्म केवल और केवल राजा, युवराज और राजपरिवार के लोगों की जै-जैकार करने के लिए होता है. ऐसे में अगर प्रजा केवल जै-जैकार न करके शिकायत करने लगेगी तो विशेषज्ञ और बुद्धीजीवी भी यही कहेंगे कि प्रजा अपने कर्त्तव्य का पालन ठीक ढंग से नहीं कर रही. और फिर विशेषज्ञ और बुद्धिजीवी ऐसा क्यों नहीं कहेंगे? मैं तो कहता हूँ कि अगर वे ऐसा नहीं कहेंगे तो उनसे कहलवा दूंगा. ये हर साल ज़मीन का प्लाट किसलिए लेते हैं? इन्हें ताम्रपत्र, शॉल और नकदी क्या चुप रहने के लिए देता हूँ? अगर कोई बुद्धिजीवी ऐसा कहने से इन्कार करेगा तो राजपरिवार को हक है कि वो नए बुद्धिजीवी पैदा कर ले. वैसे देखा जाय तो हमें किस बात का हक नहीं है? बुद्धिजीवी तो क्या, हम चाहें तो नई प्रजा भी पैदा कर सकते हैं.

समस्याएं हैं. अरे प्रजा है तो समस्याएं तो रहेंगी ही. किसी कवि ने कहा है कि; "राजा है तो प्रजा है. प्रजा है तो समस्याएं हैं. समस्याएं हैं तो शिकायतें हैं. शिकायतें हैं तो समाधान है. समाधान है तो रास्ते हैं. रास्ते हैं तो राजमहल है. क्योंकि हर रास्ता राजमहल तक जाता है."

मानता हूँ कि किसान परेशान है. मंहगाई बढ़ी हुई है जिससे प्रजा हलकान है. लेकिन मैं पूछता हूँ कि किसी चीज का बढ़ना क्या उचित नहीं है? सच कहूँ तो मंहगाई बढ़ने में ही फबती है. मंहगाई के घटने में वो मज़ा नहीं है जो उसके बढ़ने में है. वैसे भी क्या हमने अपनी तरफ से प्रजा को मदद देने की कोशिश नहीं की? क्या राजमहल ने प्रजा में मुद्रा नहीं बांटा? अभी तीन महीने पहले ही अपने जन्मदिन पर दुशाला ने अपने हाथों से प्रजा के हज़ारों लोगों को इक्यावन रूपये और कंबल दिया था. माताश्री के कहने पर किसानों का कर्ज माफ़ कर दिया गया था. मानता हूँ कि जिन किसानों का कर्ज माफ़ किया गया था उनमें हमारे किसान ही ज्यादा थे लेकिन दो-चार हज़ार किसानो को तो कर्ज माफी का फायदा मिला ही. ऐसे में राजमहल के लोगों के बारें में उल्टी-सीधी बातें करना क्या एहसान-फरामोशी की निशानी नहीं है?

मामाश्री के कहने पर सात महीने पहले नगर के सभी चाय-पान के दुकानदारों को बुलाकर उन्हें लालच भी दिया. मैंने तो उनसे कहा भी कि वे अपनी दुकानें बंद कर दें ताकि लोग़ जमा नहीं हों. जब लोग़ जमा ही नहीं होंगे तो फिर राजपरिवार के बारे में उल्टी-सीधी बातें बंद हो जायेंगी. दुशासन ने तो अति-उत्साह में मुहावरा भी पढ़ डाला. बोला; "न रहेगी दूकान, न होंगी उल्टी-सीधी बातें" लेकिन वे दूकानदार कहने लगे कि ऐसा करने से वे भूखे मर जायेंगे. मामाश्री ने उनसे कहा भी कि उनका जो भी नुकशान होगा हम उसके एवज में उन्हें हर महीने पैसे देंगे लेकिन वे माने ही नहीं. दुशासन और जयद्रथ ने तो यहाँ तक कहा कि यदि मैं आज्ञा दूँ तो वे मिलकर इन दूकानदारों को वही धुनक के धर देंगे.

वो तो बाद में मित्र कर्ण से पता लगा कि चाय-पान की दूकानों को एक-दम से बंद करवा देने का फैसला उचित नहीं होगा. कर्ण ने यह बताकर हमारी आँखें खोल दीं कि हस्तिनापुर के जो हालात हैं उसे देखते हुए चाय-पान की दूकान चलने देना ही श्रेयस्कर रहेगा. उसी से पता चला कि लोग़ पान खाकर जब पीक से अपना मुँह भर लेते हैं तब वे कुछ बोल नहीं पाते. और जब पीक से मुँह भरा रहेगा तो कौन राजपरिवार के खिलाफ उल्टी-सीधी बातें करेगा? कर्ण ने तो यहाँ तक सुझाव दिया कि राजपरिवार को खुद मुद्रा खर्च करके चाय-पान की नई दुकानें खुलवानी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग़ पान की पीक से अपना मुँह भर सकें.

खुद मैंने सब्सिडी देकर चाय-पान की हज़ारों नई दुकानें खुलवा दीं लेकिन उसका फायदा कुछ ही महीनों तक रहा. केवल कुछ महीनों तक ही लोग़ पान खाकर अपना मुँह पीक से भरते रहे. कुछ दिनों के लिए उनकी शिकायतें कम हो गई थीं लेकिन फिर से शुरू हो गई हैं. पिछले हफ्ते मेरे सबसे काबिल गुप्तचर ने सूचना दी कि किसी ने ह्विसपर कैम्पेन के जरिये प्रजा में यह बात फैला दी है कि पान की पीक को मुँह में देर तक रखना हानिकारक होता है. इसलिए जो भी पान और तम्बाकू का सेवन करे उसे बीच-बीच में थूकते रहना चाहिए.

मामाश्री और मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि कैसे जानकार और जागरूक लोग़ निकल आये हैं? ऐसे लोग़ जिन्हें यह पता है कि तम्बाकू और पान का सेवन हानिकारक होता है. ऐसे जानकार और पढ़े-लिखे लोग़ तो राजपरिवार के लिए खतरा बन सकते हैं. मैंने तो मामाश्री से कहा कि अबा समय आ गया है कि राजपरिवार के लोगों के खिलाफ शिकायत को रोकने का यही तरीका है कि किसानो के बोलकर पान की खेती ही बंद करवा दी जाय. साथ ही अब हस्तिनापुर में प्रजा के लिए चाय आयात करने पर रोक लगा देनी चाहिए ताकि लोग़ चाय-पान के बहाने एक जगह इकठ्ठा न हो सकें.

मामाश्री ने तो मेरे इस सुझाव को एक कदम और आगे बढ़ा दिया. उन्होंने सुझाव दिया कि अब प्रजा के सेवन के लिए अफीम का आयात शुरू किया जाय. गांधार में अफीम की पैदावार खूब होती है. उन्होंने गंधार के एक अफीम उद्योगपति को कल राजमहल में बुलाया है. देखते हैं क्या होता है.