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Friday, August 19, 2011

गवरनेंस बाइ मैजिक वैंड - ए बुक बाइ मैजिकानो वैंडलोई





नई दिल्ली से चंदू चौरसिया, मुंबई से निर्भय सावंत और बैंगलुरू से रजत चिनप्पा

आज एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फेडरेशन ऑफ इंडियन चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) को आदेश दिया कि वह एक जांच करके बताये कि केंद्र सरकार, उसके मंत्रियों और प्रधानमंत्री के लिए मैजिक वैंड देश में ही कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है. ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री और उनके कई मत्रियों ने मैजिक वैंड उपलब्ध न होने के कारण पिछले ढाई वर्षों में कई बार समस्याओं को सुलझाने में असमर्थता जताई थी. अभी तीन दिन पहले ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से बोलते हुए प्रधानमंत्री ने असमर्थता जताते हुए अपने भाषण में कहा था; "भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हमारे हाथ में कोई मैजिक वैंड नहीं है."

करीब दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करते हुए अखिल भारतीय सरकार सताओ आन्दोलन के प्रमुख श्री अशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि न्यायालय सी बी आई को आदेश दे कर सरकार और उसके मंत्रियों के खोये हुए मैजिक बैंड को बरामद करवाए. कालांतर में सी बी आई ने एक जांच कर के सुप्रीम कोर्ट को दिए गए अपने हलफनामे में यह खुलासा किया सरकार या उसके किसी भी मंत्री के पास कभी कोई मैजिक वैंड था ही नहीं. दरअसल सरकार और उसके मंत्री चाहते हैं कि या तो देश में ही मैजिक वैंड का उत्पादन शुरू हो या फिर उसे विकसित देशों से आयात करके उन्हें मंत्रियों को उपलब्ध करवाया जाय. सी बी आई के इस हलफनामे के बाद मैजिक वैंड को लेकर देशवासियों में व्याप्त कई तरह के भ्रम ख़त्म हो गए.

यहाँ पर यह बता देना उचित है कि देशवासियों में यह भ्रम था कि सरकार और उसके मंत्रियों के मैजिक वैंड चोरों ने चुरा लिए हैं जिसके कारण मंत्रीगण समस्याएं नहीं सुलझा पा रहे हैं.

ज्ञात हो कि पिछले ढाई वर्षों में वित्तमंत्री, कृषिमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री वगैरह ने कई बार कहा कि उनके पास कोई मैजिक वैंड नहीं है जिससे देश की समस्याओं को सुलझाया जा सके. जहाँ वित्तमंत्री ने मंहगाई को रोक पाने में असमर्थता जताते हुए मैजिक वैंड की अनुपलब्धता की बात बताई वहीँ गृहमंत्री ने आतंकवाद की रोकथाम न कर पाने का श्रेय मैजिक वैंड की अनुपलब्धता को दिया. उधर हाथ में मैजिक वैंड न होने के कारण कृषिमंत्री हर बार चीनी, प्याज, सब्जी, तेल वगैरह के दाम को कंट्रोल नहीं कर पाए.

मैजिक वैंड के बल पर शासन करने की बात नई नहीं है लेकिन इस तरह के सभी शासक हमेशा केवल किस्से-कहानियों में पाए जाते रहे हैं. पुराने किस्से-कहानियों के जादूगर वगैरह मैजिक वैंड के बल पर लोगों के ऊपर शासन करते हुए बरामद होते रहे हैं. लेकिन पाँच साल पहले इटली के समाजशास्त्री, लेखक और विचारक श्री मैजिकानो वैडलोई ने गवरनेंस बाइ मैजिक वैंड नामक किताब लिखकर शासन के इस तरीके को एक बार फिर से विश्व के राजनीतिक पटल पर ला खड़ा किया. वर्तमान भारतीय सरकार श्री वैंडलोई के इस सिद्धांत से इतना प्रभावित हुई कि उसे हर समस्या का समाधान मैजिक वैंड में ही नज़र आने लगा. यह बात अलग है कि देश में अभी तक मैजिक वैंड का न तो उत्पादन शुरू हुआ और न ही इसके आयात के लिए रास्ता खोला गया.

उधर आज दिल्ली में अखिल भारतीय निज-भाषा उन्नति समिति के अध्यक्ष श्री रामप्रवेश शुक्ला ने सरकार और उसके मंत्रियों की यह कहते हुए आलोचना की है कि मंत्रीगण अपनी भाषा पूरी तरह से भूल गए हैं जिसके चलते वे देश के विशाल जनमानस से कट चुके हैं. श्री शुक्ला ने अपने आरोप को सही ठहराते हुए बताया कि सरकार और उसके मंत्रियों को मैजिक वैंड न कहकर जादुई छड़ी कहना चाहिए. मंत्रियों के ऐसा न करने की वजह से हिंदी रसातल में चली जा रही है. श्री शुक्ला ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन देते हुए आग्रह किया कि सरकार के मंत्री अब से केवल और केवल जादुई छड़ी की बात करें.

उधर आज बैंगलुरू में डिफेन्स रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) की तरफ से दायर हलफनामे में संस्थान ने मैजिक वैंड का उत्पादन करने में असमर्थता जताई है. ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय सरकार सताओ आन्दोलन द्वारा दायर जनहित याचिका के बाद डी आर डी ओ से हलफनामा माँगा था कि संसथान मैजिक वैंड के उत्पादन के तरीके पर विचार करके एक रिपोर्ट फाइल करे. संस्थान ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा है कि; "यह संस्थान ऐसी कोई चीज के उत्पादन के बारे में विचार नहीं करेगा जिसके साथ मैजिक जुडा हो. संस्थान और उसमें काम करने वाले वैज्ञानिकों को मैजिक में कोई विश्वास नहीं है. संस्थान ने कसम खाई है कि वह केवल और केवल वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणिक चीजों का ही उत्पादन करेगा."

डी आर डी ओ के इस हलफनामे के बाद सुप्रीम कोर्ट के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. यही कारण है कि मैजिक वैंड के उत्पादन या आयात के बारे में अध्ययन और रिपोर्ट का काम उसने फिक्की को सौंप दिया है.

मैजिक वैंड के बारे में प्रधानमंत्री और उनेक मंत्रियों द्वारा पिछले ढाई वर्षों से लगातार बात करने की वजह से पूरे देश के सरकारी विभाग और उनके कर्मचारी जाग गए हैं और उन्होंने मांग रखी है कि उन्हें भी मैजिक वैंड उपलब्ध करवाया जाय जिससे वे अपने-अपने विभागों की समस्याओं का समाधान कर सके. यही कारण है कि पिछले पंद्रह दिनों से, शिक्षा, रक्षा, रेल, खेल, ट्रांसपोर्ट, एयरपोर्ट, डी डी ए, पी डब्ल्यू डी, सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स, नगर पालिका, और ऐसे ही तमाम विभागों के कर्मचारियों ने सरकार के सामने मांग रखी है कि सरकार जल्द से जल्द उन्हें मैजिक वैंड उपलब्ध करवाए जिससे पूरे भारत को एक बार फिर से सोने की चिड़िया बनाकर उसे लूट लिया जाय.

सरकारी कर्मचारियों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में मांग रखने के कारण देश के प्रमुख औद्योगिक घराने हरकत में आ गए हैं. कई औद्योगिक घराने मैजिक वैंड के उत्पादन पर विचार करने लगे हैं. अलायंस उद्योग समूह के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की एक मीटिंग में कल फैसला लिया गया कि भारी मात्रा में मैजिक वैंड की डिमांड को देखते हुए कंपनी जल्द ही उसके उत्पादन के क्षेत्र में उतारेगी. सूत्रों के अनुसार कुछ भारतीय उद्योग समूहों ने मैजिक वैंड के क्षेत्र में निवेश करने के लिए मॉरिसश के रास्ते देश में पैसे लाने का इंतज़ाम शुरू कर दिया है. बाहर के कुछ निवेशक समूह इस बात पर कयास लगा रहे हैं कि इस क्षेत्र में सरकार कितने प्रतिशत एफ डी आई पर राजी होगी. भारतीय उद्योग समूहों के अलावा कुछ विदेशी निवेशकों ने भी मैजिक वैंड के उत्पादन में निवेश की घोषणा की है. प्रसिद्द निवेशन श्री वारेन बफेट ने कल बताया कि उनका समूह भारतीय मैजिक वैंड क्षेत्र में पहले चारण में करीब सात करोड़ डॉलर इन्वेस्ट करेगा.

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद देश के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है. आल इंडिया कॉमन-मेन एशोसियेशन के अध्यक्ष श्री प्रशांत अभ्यंकर ने कल मुंबई में एक संवाददाता सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा; "इस देश के नागरिकों का अब केवल सुप्रीम कोर्ट पर ही विश्वास रह गया है. हमें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट के इस कदम की वजह से देश में जल्द ही मैजिक वैंड का उत्पादन शुरू हो जाएगा. देश की सारी समस्याएं छू-मंतर हो जायेंगी और भारत पूरे विश्व में एक इकॉनोमिक सुपर पॉवर बनकर उभरेगा."


Friday, August 12, 2011

पंद्रह अगस्त की तैयारी





पंद्रह अगस्त लगभग आ गया है. लगभग इसलिए कि अभी चार दिन बाकी हैं. कई देशभक्त मोहल्लों में पंद्रह अगस्त मनाने का प्लान बन चुका है. थोड़े कम देशभक्त मोहल्लों में अभी भी बनाया जा रहा है. लाऊडस्पीकर पर कौन सा गाना पहले पायदान पर होगा और कौन सा तीसरे पर, यह फाइनल किया जाने लगा है. कितने लोग़ चिकेन बिरियानी खायेंगे और कितने मटन बिरियानी, इसकी लिस्ट बननी शुरू हो गई है. "पिछले पंद्रह अगस्त तक बीयर पीनेवाले छोटका को क्या इस बार ह्विस्की दे दी जाय?" जैसे सवालों के जवाब खोजने की कवायद शुरू हो चुकी है.

हमारे सूमू दा यह बात निश्चित कर रहे होंगे कि इस बार किससे ज्यादा चंदा लेना है? पासवाले मोहल्ले के झूनू दा, 'गरीबों' को कंबल बांटने के लिए चंदा इकठ्ठा कर रहे होंगे. इस कांफिडेंस के साथ कि; "बरसात में अगर गरीबों को कंबल न मिला तो वे बेचारे भीग जायेंगे..." उनके डिप्टी ब्लड डोनेशन कैम्प की तैयारी कर रहे होंगे. उनके दायें ब्लड डोनेशन के समय दिए जाने वाले बिस्कुट और केले के हिसाब में हेर-फेर का प्लान बना रहे होंगे.

सिनेमाई चैनल देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्मों का चुनाव कर रहे होंगे. पंद्रह अगस्त को सुबह नौ बजे वाले वाले स्लॉट में बोर्डर दिखाया जाय या क्रान्ति? न्यूज़ चैनल वाले नई पीढ़ी का टेस्ट लेने के लिए क्वेश्चन छांट रहे होंगे. "ये बताइए, कि गाँधी जी के चचा का क्या नाम था?" या फिर; "जवाहर लाल नेहरु की माता का क्या नाम था?" ऐसा सवाल जिसे सुनकर सामनेवाला ड्यूड ढाई मिनट तक कन्फ्यूजन की धारा मुखमंडल पर बहाने के बाद उल्टा सवाल करे; "माता मीन्स मॉम ना?" न्यूज़ चैनल के संवाददाता यह सोच रहे होंगे कि इस बार कौन से नेता को पकड़कर पूछें कि; "राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में क्या फरक होता है?" या फिर " जन गण मन तो राष्ट्रगान है, ये बताइए राष्ट्रगीत क्या है?" या फिर; "अच्छा, पूरा राष्ट्रगान गाकर सुनाइये?"

उन्हें किसी ऐसे नेता की तलाश होगी जिससे अगर वे राष्ट्रगीत गाने को कहें तो वो फट से शुरू हो जाए; "ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी...." या फिर; "मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती..."

ट्रैफिक सिग्नल पर जो रामनरेश कल तक भुट्टा और चेरी बेंचते थे, वही पिछले तीन-चार दिन से तिरंगा बेंच रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस मौसमी धंधा जो ठहरा. पूरे साल भर टैक्स चोरी का प्लान बनानेवाले अचानक देशभक्ति काल में चले गए हैं और रामनरेश जी से तिरंगा खरीदकर अपनी कार में इस तरह से रख लिया है जिससे आयकर भवन के सामने से गुजरें तो लोग़ उनकी कार में रखा देशभक्ति-द्योतक तिरंगा देख पाएं. कल-परसों से ही मोहल्ले में बजने वाले गाने ....कैरेक्टर ढीला है की जगह मेरे देश की धरती सोना उगले नामक गाना ले लेगा.

कुल मिलाकर मस्त महौल में जीने दे टाइप वातावरण बन चुका है लेकिन पता नहीं क्यों मुझे कुछ मिसिंग लग रहा है. पता नहीं क्यों लगता है जैसे पहले की ह़र बात अच्छी थी और अब चूंकि ज़माना खराब हो गया है लिहाजा वही बातें बुरी हो गई हैं. वैसे ही पहले का पंद्रह अगस्त अच्छा था और ज़माना खराब हो गया है तो अब पहले जैसा नहीं रहा.

याद कीजिये १०-१२ साल पहले का पंद्रह अगस्त. हर पंद्रह अगस्त के शुभ अवसर पर कार्यकुशल सरकारी पुलिस आतंक फैलाने का प्लान बनाते हुए आतंकवादियों को पकड़ लेती थी. दूरदर्शन हमें बताता था कि; "आज शाम पुरानी दिल्ली के फलाने इलाके से पुलिस ने तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया. ये आतंकवादी स्वतंत्रता दिवस पर आतंक फैलाने का प्लान बनाकर भारत आये थे." उधर दूरदर्शन हमें यह खबर देता और इधर हम प्रसन्न हो जाते. यह सोचते हुए कि; "चलो अब देश के ऊपर कोई खतरा नहीं रहा. अब पेट भरकर पंद्रह अगस्त मनाएंगे."

अब दिल्ली में पाकिस्तानी आतंकवादी गिरफ्तार नहीं होते. इसका कारण यह भी हो सकता है कि पहले आतंक के दो मौसम होते थे, एक पंद्रह अगस्त और एक छब्बीस जनवरी और अब तो हर मौसम आतंक का है. ऐसे में आतंकवादी 'जी' लोग़ जब चाहें पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी मना ले रहे हैं.

वैसे दिल्ली में तैयारियां जोरों पर होंगी. धोबी शेरवानियाँ धोने में व्यस्त होंगे. ट्रैफिक पुलिस वाले खोलने और बंद करने के लिए रास्तों का चुनाव कर रहे होंगे. प्रधानमंत्री का भाषण लिखने वाले यह सोचकर परेशान हो रहे होंगे कि भाषण में किसान, दलित, पीड़ित, ईमानदारी, चिंता, भ्रष्टाचार, अच्छे सम्बन्ध, जीडीपी, विकास दर, मज़बूत सरकार जैसे शब्द कहाँ-कहाँ फिट किये जायें जिससे भाषण को मैक्सिमम स्ट्रेंथ मिले और भाषण खूब मज़बूत बनकर उभरे. ईमानदारी के प्रदर्शन से फुरसत मिलती होगी तो प्रधानमंत्री जी सलामी लेने की भी प्रैक्टिस कर रहे होंगे. रोज रात को साढ़े आठ से नौ के बीच. उनके लिए चूंकि हिंदी एक कठिन भाषा है तो वे भाषण पढ़कर कम गलतियाँ करने की कोशिश कर रहे होंगे.

पिछले तमाम भाषणों को सुनने के बाद मेरे मन में आया कि भाषण के बारे में प्रधानमंत्री और उनके निजी सचिव के बीच शायद कुछ इस तरह की बात होती होगी;

-- सर, एक बात पूछनी थी आपसे?

-- हाँ हाँ, पूछिए न.

-- सर, वो ये पूछ रहा था कि इस बार लाल किले पर आप पहले किसानों की समस्याओं पर चिंता प्रकट करेंगे या अल्प-संख्यकों की?

-- जैसा आप कहें. वैसे मुझे लगता है कि पहले अल्पसंख्यकों की समस्याओं पर चिंता प्रकट करना ठीक रहेगा.

-- जी सर. मैं भी यही सोच रहा था. वैसे भी एक बार आपने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है ऐसे में..

-- हाँ, अच्छा याद दिलाया आपने. पहले उनकी समस्याओं पर चिंता प्रकट करूँगा तो लोगों को लगेगा कि मैं ऐसा प्रधानमंत्री हूँ "हू वाक्स द टाक."

-- और सर, किसानों की समस्याओं पर चिंता के अलावा और क्या प्रकट करना चाहेंगे आप?

-- और क्या प्रकट किया जा सकता है वो तो आप बतायेंगे? मुझे लगता है कि चिंता करने के अलावा अगर उन्हें विश्वास दिला दें तो ठीक रहेगा. नहीं?

-- बिलकुल ठीक सोचा है सर आपने. उन्हें लोन दिला ही चुके हैं. लोन माफी दिला ही दिया. नरेगा में रोजगार दिला ही दिया. सब्सिडी देते ही हैं. सबकुछ ठीक रहा तो अब कैश भी देने लगेंगे. कहीं-कहीं उन्हें गोली भी मिल चुकी है. ज़मीन के बदले में मुवावजा दिला ही देते हैं. इनसब के अलावा और बचता ही क्या है? सबकुछ तो दिला चुके. अब तो केवल विश्वास दिलाना बाकी है.

-- बिलकुल सही कह रहे हैं. जब तक विश्वास न दिलाया जाय, इनसब चीजों को दिलाने का कोई महत्व नहीं है.

-- और सर, पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध कायम करने की बात आप कितनी बार करना चाहेंगे? तीन बार से काम चल जाएगा?

-- मुझे लगता है उसे बढ़ाकर चार कर दीजिये. वो ठीक रहेगा. हाँ, एक बात बतानी थी आपको. अभी तक जो भाषण मैंने पढ़ा है, उसमें भ्रष्टाचार के बारे में केवल आठ बार चिंतित होने का मौका मिल रहा है. मुझे लगता है उसे बढ़ाकर ग्यारह कर दिया जाय तो ठीक रहेगा.

-- अरे सर, मैं तो बारह करने वाला था. बाद में याद आया कि पाँच कैबिनेट मिनिस्टर पिछले सात दिन में कुल मिलाकर तेईस बार चिंता व्यक्त कर चुके हैं ऐसे में आप आठ बार ही व्यक्त करें नहीं तो बड़ा बोरिंग लगेगा.

-- कोई बात नहीं. चिंता करने की बात पर मुझे अपने मंत्रियों पर बहुत गर्व है. हाँ, ये बात कम से काम चार बार लिखवाईयेगा कि सरकार भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कटिबद्ध है.

-- वो तो मैंने चार बार लिखवा दिया है सर. साथ ही मैंने इस बात पर जोर दिलवा दिया है कि सरकार का लोकपाल बिल सब बिलों से अच्छा है और उसके माध्यम से देश को एक मज़बूत लोकपाल मिलेगा.

-- ये आपने सही किया. अच्छा पूरे भाषण में मंहगाई पर कितनी बार चिंतित होना है?

-- यही कोई सात बार सर. वैसे सर, मंहगाई पर केवल चिंतित होना है या और कुछ भी होना चाहते हैं आप?

-- अरे मंहगाई को कंट्रोल में लाना चाहते हैं हम. एक काम कीजिये. ये जो कंट्रोल में लाने वाली बात है, उसे आप पिछले तीन भाषणों से कॉपी कर सकते हैं. अगर कॉपी करेंगे तो फिर अलग से मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.

-- हे हे हे ..सर उसके लिए तो आपको याद दिलाने की ज़रुरत बिलकुल नहीं है. वो तो मैंने साल दो हज़ार आठ के भाषण से ही कॉपी किया है. और सर, दो हज़ार नौ और दस में भी दो हज़ार आठ के भाषण से कॉपी किया था. सबसे बढ़िया बात यह है सर कि ऐसा करने से हमारी उस फिलास्फी का पालन भी हो जाता है जिसके अनुसार हम पिछले रिकॉर्ड देखकर काम करते हैं.

-- यह बहुत ज़रूरी है कि हम अपने पुराने रास्तों को न भूलें. वैसे एक बात मत भूलियेगा. हम डबल डिजिट में ग्रो कर सकते हैं, यह बात आप चार-पाँच जगह डलवा दीजियेगा.

-- हें हें हें..सर, ये भी कोई कहने की बात है? सर, एट प्वाइंट फाइव का जीडीपी और डबल डिजिट में ग्रो करने की बात आपको याद दिलानी नहीं पड़ेगी सर.

-- गुड गुड.

-- सर, साम्प्रदायिकता के बारे में आप उतना ही चिंतित होना चाहते हैं जितना पिछले तीन साल से चिंतित हैं या इसबार थोड़ा और चिंतित हों चाहेंगे?

-- गुड क्वेश्चन...देखिये मुझे लगता है कि इस बार थोड़ा और चिंतित होने की ज़रुरत है. इतने सारे स्कैम फैले हुए हैं ऐसे में सैफ्रोन टेरर की बात हो जाए तो थोड़ा बैलेंस बन जाएगा.

-- बाकी तो लगभग पूछ ही लिया सर. एक बात ये पूछनी थी कि भ्रष्टाचार पर कार्यवाई करने की बात पर भाषण में सरकार की पीठ कितनी बार ठोंकी जाए?

-- अरे, सरकार भी अपनी है और पीठ भी अपनी. जितनी बार चाहें ठोंक लीजिये. इतने सालों तक भाषण लिखवाने के बाद ये सवाल तो नहीं पूछना चाहिए आपको...

-- सॉरी सर...

-- कोई बात नहीं. आप आगे का भाषण लिखवाइए. बाकी जो पूछना होगा वह सब कल पूछ लीजियेगा. अब मेरा ईमानदारी आसन में बैठने का समय हो गया है. मैं आधा घंटा ईमानदारी आसन में बैठकर ईमानदार होने की प्रैक्टिस करूँगा. कल फिर मिलते हैं.

Saturday, August 6, 2011

मॉंनसून स्कैम - पार्ट २




जैसा कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया कि बारिश स्कैम के लिए जिम्मेदार सभी लोगों की प्रेस कांफ्रेंस के बारे में लिखूँगा. पिछली बार आपने कोलकाता के प्रभारी बादल की प्रेस कांफ्रेंस की रिपोर्टिंग देखी. आज पेश है कोलकाता के आकाश में छाने वाले बादलों को कंट्रोल करने वाले देवता की प्रेस कांफ्रेंस.

पत्रकार आ चुके हैं. देवता के सेक्यूरिटी गार्ड चाहते थे कि पत्रकार अपने जूते कांफ्रेंस हाल से बाहर उतार कर अन्दर घुसें. देवता ने मना कर दिया. बोले; "पत्रकार भी अपने हैं और जूते भी अपने ही हैं. जो अपने हैं उनसे कैसा खतरा? जूते समेत ही इन्हें अन्दर जाने दो."

उनकी बात सुनकर उनका एक सलाहकार बोला; "हे देव, चूंकि मामला बहुत गरमाया हुआ है और आपके द्वारा साध ली गई मीडिया को देखकर पूरे देवलोक के निवासी यह सोचते हैं कि आपकी यह प्रेस कांफ्रेंस केवल खानापूर्ती है, इसलिए मैं आपको एक सलाह देना चाहूँगा. अगर ऐसे मौकों पर मैं सलाह नहीं दे सकता तो फिर मेरे सलाहकार रहने का क्या फायदा? और तो और, हे देव, बिना सलाह लिए मैं अपनी सैलेरी लेकर गिल्टी फील करूँगा."

देव बोले; "सलाह दीजिये. जरूर दीजिये. सलाह के लिए ही तो आपको स्वर्ण मुद्राएं मिलती हैं. सलाह देने का आपका अधिकार बनता है."

अपने देव से ग्रीन सिग्नल मिलते ही सलाहकार बोला उठा; "तो हे देव, यह रही मेरी सलाह. ध्यान देकर सुनें.... मेरी सलाह यह है कि यहाँ उपस्थित पत्रकारों में से किसी एक को कहकर अपने ऊपर जूता फेंकवा लें. इससे दो बातें होंगी. एक तो आपकी अपनी मीडिया की क्रेडिबिलिटी बनी रहेगी और दूसरा उस पत्रकार को क्षमा करके आप अपना कद बढ़ा लेंगे."

सलाहकार की बात सुनकर देव प्रसन्न हो गए. बोले; "वाह! वाह! तुम्हारी सलाह पाकर हम धन्य हुए. ऐसा सलाहकार किसी और देवता के पास कहाँ? कहो तो अभी गैजेट साइन करके तुम्हें देवलोक महारत्न सम्मान दिलवा दूँ?"

सलाहकार हमेशा की तरह लजाने की एक्टिंग करने लगा. 'लजाते' हुए बोला; "सेवक को केवल देव का आशीर्वाद चाहिए. महारत्न सम्मान तो मिल ही जाएगा. महारत्न सम्मान देव के आशीर्वाद से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है."

देवता अपने सलाहकार के चमचत्व गुण से भाव विभोर हो गया. वातावरण में चारों तरफ चमचत्व के कण तैर रहे थे. ऊपर से बाकी देवता इस दृश्य को देखकर खुश हुए जा रहे थे. एक देवता ने इस प्रेस कांफ्रेंस पर पुष्पवर्षा कर डाली. सलाहकार ने एक पत्रकार को इस बात के लिए पटा लिया कि कोई कठिन सवाल पूछकर देवता से उचित उत्तर की कामना भंग होने का अभिनय करते हुए वह पत्रकार देवता के ऊपर जूता फेंकेगा. बाद में देवता उसे क्षमा कर देंगे. मीडिया की क्रेडिबिलिटी भी बन जायेगी और उधर उस देवता का कद भी एवेरेस्ट टाइप हो जाएगा.

प्रेस कांफ्रेंस शुरू हुई. देव बोले; "फ्रेंड्स, ऐज यू आर अवेयर, देयर हैव बीन सम....."

अभी देवता ने बोलना शुरू ही किया था कि तीन-चार पत्रकारों ने देवता से देवभाषा में बोलने के लिए कहा. उनकी बात सुनकर देवता बोले; "देवताओं से क्यों देवभाषा बोलवाना चाहते है आपलोग? हम देवता हैं. हमें आंग्ल भाषा में बोलना ही शोभा देता है."

इधर-उधर की बातें हुई. मौका देखते हुए देवता ने अपने सेन्स ऑफ ह्यूमर का प्रदर्शन किया. कुछ ठहाके लगे. उसके बाद पत्रकारों ने प्रश्न दागना शुरू किया. नमूना देखिये;

पत्रकार: क्या यह सही है कि आपके आदेश पर ही कोलकाता के बादलों ने कोलकाता पर वर्षा नहीं करके वहाँ के पानी का कोटा किसी और जगह दे दिया?

देवता: देखिये, यह पहली बार नहीं हुआ है. ऐसा पहले भी होता आया है. मुझसे पहले कोलकाता के प्रभारी देव ने ऐसा कई बार किया था. एक जगह के पानी को दूसरी जगह गिरवा देना कोई नई बात नहीं है.

पत्रकार: लेकिन पहले जो होता आया है उसकी आड़ में ऐसा करना आपको शोभा देता है क्या?

देवता: देखिये, देवों के काम करने का एक तरीका है. हमारा हर फैसला पहले किये गए फैसलों के आधार पर होता है. और जैसा कि मैंने बताया कि हमारे पहले भी वहाँ के प्रभारी देव यह करते रहे हैं....

पत्रकार: क्या यह सच है कि आपने इस बात का फैसला बिना किसी और को बताये कर लिया? क्या यह तानाशाही का प्रतीक नहीं है?

देवता: देखिये, यह तानाशाही है या नहीं वह तो आप पूरा सच जानकर ही निश्चित करें.

पत्रकार: लेकिन डी बी आई (देवलोक ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) की इन्टेरिम रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आपने यह फैसला खुद ही लिया है.

देवता: यह सच नहीं है. यह फैसला लेने से पहले जीओडी यानि ग्रुप ऑफ देवाज की कम से कम तीन मीटिंग्स हुई. इन मीटिंग्स की जानकारी देवराज को भी थी.

पत्रकार: परन्तु देवराज का कहना है कि उन्हें इस फैसले की जानकारी नहीं दी गई. आपने उन्हें अँधेरे में रखा.

देवता: यह सच नहीं है. देवराज को इसकी जानकारी थी. जिस दिन मैंने मिनट्स ऑफ मीटिंग्स उन्हें भेजी थी, वे डांस कंसर्ट में बिजी थे और शायद इसीलिए उन्होंने मिनट्स बुक नहीं देखा.

पत्रकार: आपके ऊपर यह आरोप भी है कि आप मेनका के दूर के रिश्तेदार हैं और इसीलिए उसने देवराज को कहकर आपको कोलकाता जैसे मलाईदार इलाके का प्रभारी बनाया गया. क्या यह रिश्तेदारवाद को बढ़ावा देना नहीं हुआ?

देवता: किसी का रिश्तेदार होना कोई अपराध नहीं है. वैसे हम आपको बता दें कि हमारी नियुक्ति हमारी योग्यता की वजह से हुई है.

पत्रकार: यह अफवाह भी है कि उड़ीसा के कुछ इलाकों से पिछले महीने आपको करीब सात हज़ार घंटे की पूजा-अर्चना मिली और इसलिए आपने कोलकाता का पानी उड़ीसा के उन्ही इलाकों को दे दिया?

देवता: देखिये, देवताओं में चूंकि मैं बहुत पॉपुलर हूँ इसलिए मेरे भक्त हर इलाके में हैं. आप उड़ीसा की बात करते हैं? मेरे भक्त तो रांची में भी हैं. मुझे वहाँ से भी कई हज़ार घंटे की पूजा-अर्चना मिलती रहती है. लेकिन कोलकाता में बरसात न होने की बात को मुझे मिली पूजा से जोड़ना उचित नहीं होगा.

पत्रकार: लेकिन ऐसी खबर आई है कि डीबीआई ने देवराज इन्द्र से ख़ास तौर इस ऐंगिल की जांच करवाने की सिफारिश की है?

देवता: अब यह तो देवराज पर निर्भर करता है कि वे क्या करते हैं. लेकिन मैं यहाँ बता देना चाहता हूँ कि देवराज हमारे देव हैं. हमें उनमें पूरा विश्वास है.

पत्रकार: आपके ऊपर यह आरोप भी हैं कि आपके क्षेत्र के बादल बहुत उद्दंड हो गए हैं. उनके अन्दर डिसिप्लिन नाम की कोई चीज ही नहीं रही. इसी की वजह से वे ढंग से बरसात नहीं कर पाते.

देवता: यह भी गलत आरोप है. जब मैंने अपने इलाके का कार्यभार संभाला था तब वहाँ बादलों की पैदावार बहुत कम होती थी. ऐसे में पानी भी कम ही बरसता था. अब ऐसा नहीं है. अब बादल भी खूब पैदा होते हैं और पानी भी खूब बरसता है.

पत्रकार: कहाँ खूब बरसता है? अगर खूब ही बरसता तो फिर इतना बवाल क्यों होता?

देवता: आप कदाचित उत्तेजित हो रहे हैं. आप बात समझ नहीं रहे हैं. अगर आप देखेंगे तो....

अभी वे बोल ही रहे थे कि पत्रकार ने दाहिने हाथ से अपने दाहिने पाँव का जूता उठाकर इस तरह से देवता की तरफ फेंका कि वह जूता उनके दाहिनी कनपटी के दाहिने तरफ से निकल गया. वहाँ उपस्थित बाकी पत्रकारों, देवता के सिक्यूरिटी गार्ड्स और उसके सलाहकार ने इस पत्रकार को पकड़ लिया. इधर देवता के सिक्यूरिटी गार्ड्स उस पत्रकार को पुलिस को सौंपने की धमकी दे ही रहे थे कि देवता ने कहा; "जाने दो. जाने दो. इस पत्रकार को देखकर लगता है जैसे इसे बहकाया गया है. इसकी गलती नहीं है. किसी ने इसे बहका कर हमारे ऊपर यह आक्रमण करवाया है. इसमें असुरों का हाथ है. यह तो निष्कपट निश्छल पत्रकार मात्र है. इसे छोड़ दो. मैं देवराज से भी आग्रह करूँगा कि वे इसके विरुद्ध कोई कार्यवाई न करें. इसे कारवास की सजा न मिले."

देवता की बात सुनकर उसके सलाहकार ने पत्रकार को देखते हुए अपनी बाएँ आँख दबा दी. पत्रकार मुस्कुरा उठा.

दूसरे दिन ही देवलोक वासियों ने मीडिया की भरपूर सराहना की. उस पत्रकार का नागरिक अभिनन्दन किया गया. देवलोक वासियों में मीडिया की क्रेडिबिलिटी एकबार फिर से वापस आ गई थी. सब इस बात से आश्वस्त थे कि जबतक मीडिया है तबतक उनके अधिकारों की रक्षा होती रहेगी.

Thursday, August 4, 2011

मॉंनसून स्कैम




कोलकाता में करीब पंद्रह-बीस दिनों तक बरसात नहीं हुई. ऐसा नहीं कि बादल छाये नहीं. ऐसा भी नहीं कि बादल भाये नहीं. जब-जब बादल छाये तब-तब बादल भाये (इस कहते हैं आँसू कविता. लिखने वाला लिखे और पढनेवाला आँसू बहाए). ट्विटर पर हजारों ट्वीट दिखाई दीं, जिनमें ट्विटर योद्धाओं ने कोलकाता के आसमान पर छाए गोरे, भूरे, काले, लाल, पीले, सब तरह के बादलों को इतना खूबसूरत बताया कि अगर कटरीना कैफ पढ़ लेतीं तो डिप्रेशन में चली जातीं. जरा सी रिम-झिम हुई तो इन ट्विटर योद्धाओं ने ट्वीट करके अपने पछतावे के बारे में बताया कि क्या बिडम्बना है कि; "ऐसे मौसम में आफिस जाना पड़ेगा." मन ही मन गरम पकौड़े और चाय के संहार का सपना देखा और मन ही मन उन सपनों पर पसीना फेर दिया.

न जाने कितनो ने ने रवींद्र संगीत सुना. कितने तो गुनगुनाते पकड़े गए कि; "पागला हवा बादोल दिने पागोल आमार मोन जेगे उठे.." कवि-हृदय मानवों ने श्री सुमित्रा नंदन पन्त से इंस्पायर होते हुए कवितायें लिखीं. रेन-कोट की बिक्री बढ़ी. दूकान में रखे छातों को घरों का कोना नसीब हुआ. टैक्सी वालों ने टैक्सी यात्रियों से बरसात में एक्स्ट्रा भाड़ा मांगने के प्लान बनाये. प्यासी सड़कों ने पानी पीने के सपने देखे. महानगर पालिका ने भारी बरसात की संभावना को देखते हुए अपने कर्मचारी और पम्प तैयार किये जिससे रास्तों और गलियों में जमे पानी को जल्द-जल्द से निकाला जा सके.

लेकिन बरसात नहीं हुई. सारी तैयारियों पर बादल फिर गए.

कोलकाता के नागरिकों ने देवराज इंद्र को गरियाना शुरू किया. पहले पाँच दिन तो देवलोक की मीडिया ने यह मुद्दा उठाया ही नहीं. कारण यह था कि तमाम बड़े पत्रकार, सम्पादक वगैरह देवराज के साथ डांस कर्सर्ट देखने में बिजी थे. बाद में जब मीडिया को लगा कि बीच-बीच में उसे मीडिया-धर्म का पालन भी करते रहना है, तब उसने यह मुद्दा उठाया. पहले तो देवराज इन्द्र के चेले-चमचों ने साफ़-साफ़ कह दिया कि उनकी इंटीग्रिटी पर सवाल उठाने का अधिकार किसी को नहीं है. कुछ संपादकों ने भी देवराज का बचाव यह कहते हुए किया कि; "देवलोक के छोटे-मोटे कर्मचारियों की लापरवाही के लिए लिए उन्हें दोषी करार देना उचित नहीं है. वे तो दैवीय कार्यों में व्यस्त रहते हैं. किसी इलाके में बारिश हुई या नहीं, ऐसी टुच्ची बात से उनका का क्या लेना-देना?

उनके कुछ चमचों ने तो यहाँ तक कह दिया कि "देवराज को इस मामले में फंसाया जा रहा है. यह शुक्राचार्य की चाल है."

लेकिन तब तक मामला गरमा गया था. मामले ने इतना तूल पकड़ा कि देवराज का मन डांस और सोमरस से भटकने लगा. बाद में उनके सलाहकारों ने उन्हें सलाह दी कि दो-चार प्रेस कांफेरेंस करके मामले को दफनाया जा सकता है. इन्ही परिस्थियों में तमाम लोगों ने प्रेस कांफेरेंस की.

पेश है उन्ही में से एक प्रेस कांफेरेंस कोलकाता के प्रभारी बादल ने किया जिसे कोलकाता में बारिश मैनेजमेंट का प्रभार सौंपा गया था;

कोलकाता के प्रभारी बादल की प्रेस कांफेरेंस:

पत्रकार: आपके ऊपर जो आरोप हैं, क्या वह सही हैं?

बादल: देवलोक के कर्मचारियों पर लगे आरोप कभी सही होते हैं क्या?

पत्रकार: क्या यह सच नहीं है कि देवलोक से कोलकाता के लिए जल लेकर तो आप चले लेकिन कोलकाता के ऊपर बरसात न करके आपने कहीं और बरसात कर दी?

बादल: यह सही नहीं है.

पत्रकार: परन्तु कोलकाता की सूखी सड़कें इस बात की गवाह हैं कि आपने वहाँ बरसात नहीं की.

बादल: हमने तो बरसात की थी. अब ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी की ऊपरी सतह पानी सोख ले, तो हम क्या कर सकते हैं?

पत्रकार: लेकिन लोगों ने आपको बरसात करते नहीं देखा.

बादल: देखिये, यह आरोप बदले की भावना से लगाया जा रहा है. पिछले वर्ष जो सूखा पड़ा था उसकी वजह से पत्रकार हमसे बदला लेना चाहते हैं.

पत्रकार: यह आरोप केवल पत्रकारों का नहीं है. कोलकाता के लोगों ने भी आरोप लगाया है.

बादल: लोग़ तो आरोप लगाते रहते हैं लेकिन उन आरोपों में सच्चाई कितनी होती है? अगर लगता है कि जांच की ज़रुरत है तो हम किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हैं.

पत्रकार: जांच की क्या ज़रुरत है? यह तो सीधा-सीधा दिखाई दे रहा है कि पानी कहीं नहीं है. आप चाहें तो अपने हाथों से मिट्ठी छूकर देख लें. किसी तालाब में पानी नहीं है. झील में पानी का स्तर नहीं बढ़ा. सबकुछ तो वैसे ही देखा जा सकता है. इसके लिए जांच की क्या ज़रुरत है?

बादल: देखिये, देवलोक के काम करने का अपना एक तरीका है. हम बिना सुबूत के कुछ नहीं मानते. हाथ से छूकर हम नहीं देखेंगे.

पत्रकार: तो फिर आप क्या चाहते हैं?

बादल: देवराज डी बी आई को निर्देश दें, वह जांच करे. वे चाहे तो किसी अवकाश प्राप्त देवता की अध्यक्षता में एक कमीशन बैठा दें. हमें कोई आपत्ति नहीं.

पत्रकार: जब तक कमीशन जांच करेगा, तब तक अगर आप पानी लाकर फिर से बारिश कर देंगे तो?

बादल: कोलकाता के लिए जितना कोटा इस महीने का था, वह सब ख़त्म हो गया है. अब अगले महीने जितना मिलेगा हम वही आपको दे सकेंगे.

पत्रकार: ऐसी बात है? कोलकाता का कोटा तो आपने कहीं और दे दिया.

बादल: आप चाहें तो ओवर-ड्राफ्ट के लिए अप्लाई कर दें. कोटा बढाया जा सकता है.

पत्रकार: आपके पास कोई सुबूत है कि आपने पानी बरसाया?

बादल: हाँ, हमारे पास सुबूत है. मैं अकेले तो बरसात करने नहीं आया था. मेरे साथ इस समय जो चार बादल और दो बदली बैठी हुई हैं, उनसे पूछ लीजिये. वे आपको बतायेंगे कि पानी बरसाया गया था.

पत्रकार: ये तो सब आपके मातहत काम करते हैं. वो छुटकी बदली बेचारी आपके खिलाफ कैसे जा सकती है?

बादल: हम देवलोक के बादल हैं. हमारे यहाँ सबको छूट है कहीं भी जाने की. वो बादल हो या बदली.

पत्रकार: आप मुद्दे से हमें भटका रहे हैं.

बादल: हम आपको मुद्दे से क्या भटकायेंगे? आपलोग मुद्दे पर थे ही कब?

पत्रकार: आप कहना क्या चाहते हैं?

बादल: हम यही कहना चाहते हैं कि हमें इस बारे में और कुछ नहीं कहना. अब आपको जो कुछ पूछना है वह हमारे बॉस, यानि कोलकाता के प्रभारी देव से पूछिए. उन्होंने हमें जो करने के लिए कहा, हमने किया. अब हम और कोई सवाल नहीं लेंगे.

प्रेस कांफेरेंस ख़त्म हो गई. मामला गरमाया हुआ है. पत्रकार अब कोलकाता के प्रभारी देव से सवाल करेंगे. देव के प्रेस कांफेरेंस के लिए एक दिन का इंतजार कीजिये.