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Wednesday, July 27, 2011

एक मुलाक़ात सुरेश कलमाडी के साथ




पत्रकारिता केवल वह नहीं होती जो टीवी न्यूज़ स्टूडियो में बैठकर की जाती है. पत्रकारिता वह भी होती है जो फील्ड में रहकर की जाती है. अब हमारे चंदू को ही ले लीजिये. उधर सुरेश कलमाडी जी को डिमेंसिया यानि भूलने की बीमारी की खबर आई और इधर चंदू को बेचैनी की बीमारी ने घेर लिया. बेचैन रहने लगा कि सुरेश कलमाडी जी का इंटरव्यू किसी भी तरह से लेकर आये. मैंने कहा; "वे जेल में बंद हैं. वहाँ इंटरव्यू नहीं लिया जा सकेगा"

वह बोला; "जेल से फिरौती का धंधा चल सकता है, जेल से राजनीति चल सकती है, कलमाडी जी जेल में रहकर अपने एमपी फंड से चेक काट सकते हैं तो फिर जेल में इंटरव्यू क्यों नहीं लिया जा सकता?"

मैंने कहा; "मेरी तो कोई जान-पहचान नहीं है कि मैं किसी को कहकर उनके इंटरव्यू का इंतज़ाम करवा सकूँ. तुम्हारी कोई जान-पहचान हो तो तुम जाओ."

चंदू बोला; "एक बार मैंने तिहाड़ में एक हवलदार की हेल्प से एक स्वामी जी का इंटरव्यू लिया था. उसी को फिर से पटाते हैं."

इतना कहकर चला गया. कल शाम को लौटा तो हाथ में कलमाडी का इंटरव्यू था. पेपर देते हुए बोला; "सुबहे ब्लॉग पर छाप दीजिये नहीं तो कोई न्यूज़ चैनल इसी को एक्सक्लूसिव बताकर दिखा देगा."

तो मैं चंदू द्वारा लिया गया कलमाडी जी का इंटरव्यू छाप रहा हूँ. आप बांचिये.

चंदू: कलमाडी जी, सुना है आप डिमेंसिया के शिकार हो गए हैं?

कलमाडी: ये डिमेंसिया क्या होता है?

चंदू: (धीरे से) लगता है सही में शिकार हो गए हैं.

कलमाडी : आपने कुछ कहा?

चंदू: नहीं-नहीं, मैंने कुछ कहा नहीं. मैं यह पूछ रहा था कि आपको कब लगा कि आपकी याददाश्त जा रही है?

कलमाडी: मुझे नहीं लगा. दस दिन पहले मेरे वकील ने बताया कि मेरी याददाश्त धीरे-धीरे चली जा रही है.

चंदू: लेकिन याददाश्त तो आपकी है. उन्हें कैसे पता चला?

कलमाडी: क्या कैसे पता चला?

चंदू: (धीरे से बुदबुदाते हुए) लगता है सही में गए...नहीं मैं पूछ रहा था कि याददाश्त तो आपकी पर्सनल है, आपके वकील को कैसे पता चला कि वो खो रही है.

कलमाडी: अच्छा, वो पूछ रहे हैं. वो हुआ ऐसा कि मैंने उनकी फीस का जो चेक दिया उसमें तारीख गलत लिख दी. उसे देखकर वे बोले कि मैं डिमेंसिया का शिकार हो गया हूँ.

चंदू: केवल तारीख गलत लिख देने से वे इस नतीजे पर पहुँच गए.

कलमाडी: कौन पहुँच गया?

चंदू: वही, आपके वकील साहब.

कलमाडी: कहाँ पहुँच गए?

चंदू: सर, आप मेरी बात समझ नहीं रहे हैं. आपकी बात सुनकर लग रहा है कि आप मेरा इंटरव्यू ले रहे हैं. मैं यह कह रहा था कि चेक पर केवल तारीख गलत लिख देने से वकील साहब मान गए कि आप डिमेंसिया के शिकार हो गए हैं?

कलमाडी: हाँ, ऐसा ही तो हुआ. वैसे भी वकील कुछ भी मान सकते हैं और कुछ भी मनवा सकते हैं.

चंदू: और कोई घटना ऐसी हुई क्या जिससे लगे कि आप डिमेंसिया के शिकार हो गए हैं?

कलमाडी: मैं तो नहीं मान रहा था लेकिन वकील साहब ने ही बताया कि एक घटना हाल में ही घटी जिससे मेरी याददाश्त के खो जाने की बात साबित होती है.

चंदू; कौन सी घटना?

कलमाडी: वकील साहब ने ही याद दिलाया कि मैं उस दिन जेलर के आफिस में बैठकर जो चाय, बिस्कुट और नमकीन उड़ा रहा था वह भी डिमेंसिया की वजह से ही हुआ होगा.

चंदू: वह कैसे?

कलमाडी: उनका मानना है कि डिमेंसिया के चलते ही मैं जेलर के आफिस को अपना घर समझ बैठा.

चंदू: लेकिन मैंने तो यह भी सुना है कि आप जेल में ही रहते हुए अपने एमपी फंड से खर्च भी कर रहे हैं.

कलमाडी: उसको लेकर भी वकील साहब ने साबित कर दिया कि एमपी फंड से खर्च करना इस बात को साबित करता है कि मैं सच में डिमेंसिया का शिकार हो गया हूँ.

चंदू: वह कैसे?

कलमाडी: एक दिन वकील साहब ने बताया कि मैं यह भूल गया हूँ कि मैं एमपी भी हूँ और मेरा एमपी फंड खर्च के लिए तरस रहा है. उनके याद दिलाने के बाद कि मैं एक एमपी हूँ, मैंने अपने फंड से खर्च करना शुरू किया.

चंदू: लेकिन मुझे तो लगता है कि डिमेंसिया आपका कानूनी दाव-पेंच है खुद को बचाने के लिए.

कलमाडी: मिस्टर अरनब गोस्वामी आप मेरे ऊपर ऐसे आरोप लगाकर गलती कर रहे हैं. मैं वार्निंग दे रहा हूँ कि अगर एक बार और आपने ऐसा आरोप लगाया तो मैं आपके खिलाफ और आपकी टाइम मैगजीन के खिलाफ आदालत में डिफेमेशन केस फाइल कर दूंगा.

चंदू: सर जी, मैं अरनब गोस्वामी नहीं हूँ. मैं चंदू चौरसिया हूँ. और बाइ द वे, अरनब गोस्वामी टाइम मैगजीन में काम नहीं करते वे टाइम्स नाउ चैनल के पत्रकार हैं.

कलमाडी: ओह, मैं तो भूल ही गया था. देखिये ये डिमेंसिया का ही असर होगा.

चंदू: आपके वकील साहब को क्या लगता है? क्या आपकी यह डिमेंसिया वाली बात सचमुच ठोस है?

कलमाडी: क्या ठोस है?

चंदू: मैं पूछ रहा था कि यह डिमेंसिया वाली बात क्या साबित कर पायेंगे आप और आपके वकील साहब?

कलमाडी: हाँ, बिलकुल कर पायेंगे. दरअसल मेरी खराब होती याददाश्त और अपनी तेज याददाश्त के सहारे मेरे वकील साहब फिर साल २००९-१० में गए. उन्होंने मुझे याद दिलाया कि गेम्स ओर्गेनाइजिन्ग कमिटी का चीफ होने के बावजूद मैंने समय पर तैयारी नहीं की. दरअसल मैं भूल जाता था कि मुझे तैयारी करनी है. फिर उन्होंने याद दिलाया कि मैंने इंडियन हाइ कमीशन के डोक्यूमेंट फोर्ज करने के बाद भी लोगों को बताया कि मैंने डोक्यूमेंट फोर्ज नहीं किया. यह डिमेंसिया की वजह से ही था. फिर उन्होंने याद दिलाया कि सारे फैसले मैंने लिए लेकिन याददाश्त ख़राब होने के कारण मैंने दरबारी, महेन्द्रू वगैरह को फँसा दिया. फिर उन्होंने बताया कि........सबसे अंत में उन्होंने बताया कि इन सारी बातों की वजह से मुझपर डिमेंसिया का केस तो बनता ही बनता है.

चंदू: मतलब आपकी तैयारी फूल-प्रूफ है.

कलमाडी: अपनी तरफ से तो तैयारी फूल-प्रूफ ही रहती है. अरनब गोस्वामी जी, चलिए अब इंटरव्यू ख़त्म कीजिए मुझे मूवी देखना है. वकील साहब ये सीडी दे गए थे. देखने के लिए कहा है. हाँ, आपकी टाइम मैगजीन के जिस एडिशन में यह इंटरव्यू छापेंगे उसकी एक कॉपी ज़रूर भेज दीजियेगा.

चंदू: सर जी, मैं अरनब गोस्वामी नहीं हूँ. बाइ द वे, अरनब गोस्वामी टाइम मैगजीन के नहीं बल्कि टाइम्स नाउ टीवी चैनल के पत्रकार हैं.

कलमाडी: वकील साहब ठीक ही कहते हैं. मैं सच में डिमेंसिया का शिकार हो गया हूँ. ठीक है, आप जाइए. मैं मूवी देखने जाता हूँ.

चंदू ने सीडी हाथ में लेकर देखा तो वह आमिर खान की फिल्म गजनी की सीडी थी. उधर कलमाडी जी गज़नी एन्जॉय करने गए और इधर चंदू जेल से बाहर.


मेरी भी पसंद:

काजू भुने पलेट में, ह्विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

---अदम गौंडवी

Thursday, July 21, 2011

कैश फॉर वोट री-विजिटेड




कल शाम को टीवी पर खबर देखा कि २००८ का कैश फॉर वोट स्कैम का केस तीन साल बाद फिर से खुल गया है. एक आदमी अमर सिंह का और एक बीजेपी का अरेस्ट हो चुका है. मन में आया कि दोनों के एक-एक आदमी अरेस्ट करके गवर्नमेंट ने बैलेंस ऑफ अरेस्ट सीनैरियो बनाये रखा है. अब अमर सिंह से भी पूछताछ होगी. मेरे मन में बात आई कि अगर सरकार यह केस पहले ही सीआईडी टीम को दे देती तो अब तक तो केस एक हज़ार बार सॉल्व हो जाता.

सोचा सी आई डी टीम से बात करूं. एसीपी प्रद्युमन के पास गया. जब मैंने पूछा तो वे बोले; "मैंने तो पहले ही कहा था कि यह केस हमारी टीम को दिया जाना चाहिए. हमारी टीम ने तो शुरुआती जांच भी कर ली थी. मामला चूंकि पार्लियामेंट का था और दया से पार्लियामेंट का दरवाजा तोड़वाना ठीक नहीं होता इसलिए मैंने उसको बोलकर नोटों के ही चार-पाँच बण्डल तोड़वा लिए थे. डॉक्टर सालुंके ने तो बण्डल देखकर ही पता लगा लिया था कि उन नोटों पर किसीकी उँगलियों के निशान थे."

एसीपी प्रद्युमन की बात के सपोर्ट में डॉक्टर सालुंके बोले; "नोट पर जो उँगलियों के निशान थे मैंने तो उसी से अपराधी का डीएनए सैम्पल निकाल लिया था. ये तो बाद में गवर्नमेंट ने केस दिल्ली पुलिस को दे दिया इसलिए हमने केस छोड़ दिया."


समझ में नहीं आया कि जब हमारे पास सी आई डी टीम है तो फिर यह केस दिल्ली पुलिस को क्यों दिया गया?

बाद में खबर आई कि अमर सिंह अंडरग्राऊंड हो गए हैं. मैंने सोचा कि अमर सिंह जी अंडरग्राऊंड होकर कहाँ जायेंगे? होंगे किसी शूटिंग स्थल पर. बाद में पता चला वो फिल्म के सेट पर शूटिंग कर रहे थे. देखा जयाप्रदा जी के साथ थे.


मैंने कहा; "अमर सिंह जी, ऐसा सुनने में आ रहा है कि कैश फॉर वोट स्कैम में एम पी लोगों को खरीदने के लिए आपने पैसा दिया था?"

मेरी बात सुनकर बोले; "मिश्रा जी, यह सब विरोधियों की साजिश है. मैं एम पी लोगों को पैसा दे रहा हूँ इसकी सीडी कहाँ है? जब तक कोई सबूत सी डी पर नहीं होगा, मैं उसे सबूत नहीं मानता."

बाद में मैंने सोचा कि ये तो सीधा-सीधा मुकर गए लेकिन बाकी के लोग़ क्या कहेंगे इस बारे में? मैंने अपने ब्लॉग पत्रकार चंदू चौरसिया को और लोगों के स्टेटमेंट लाने को भेजा. वे ले आये. पढ़िए कि लोगों ने क्या कहा;


मनमोहन सिंह जी, प्रधानमंत्री: "कैश फॉर वोट स्कैम क्या है? पहली बार सुन रहा हूँ. किसने किया यह स्कैम? राजा ने? कलमाडी ने? हो सकता है यह "स्कैम धर्मं" का पालन करने के चक्कर में हो गया हो. उस समय कांफिडेंस वोट में क्या हुआ था, मुझे नहीं पता. हाँ, यह याद है कि मैंने वोटिंग के बाद दो तरह से फोटो खिचाई थी. एक विक्टरी साइन वाली और दूसरी ठेंगा दिखाते हुए.विक्टरी साइन वाली फोटो का मतलब था कि हमारी सरकार जीत गई और ठेंगा वाली फोटो का मतलब था कि अब हम जीत चुके हैं और तुमलोग हमारा कुछ नहीं कर सकते.
"








ऋतिक रोशन; "कैश फॉर वोट में जो लोग़ इन्वोल्व हैं, उनसे मैं यही कहना चाहता हूँ कि सबकुछ भुलाकर जस्ट डांस."







हैरी पॉटर जी; "आई हैड सीन मिस्टर लालू प्रसाद स्पीकिंग ऑन द फ्लोर ऑफ योर पार्लियामेंट ऐट द टाइम ऑफ वोटिंग एंड आई कैन वेल रिमेम्बर ह्वाट आई हैड टोल्ड हिम. आई हैड टोल्ड हिम दैट विट बियांड मेजर इज मैन्स ग्रेटेस्ट ट्रेजर."








रघु राम, एम टीवी प्रोड्यूसर; "मैं इन बीप बीप नेताओं को दिन-रात देखता हूँ. मैं कहता हूँ कि ये बीप कुछ नहीं कर सकते. कोई टास्क परफ़ॉर्म नहीं कर सकते ये बीप बीप. इनसे अच्छे तो मेरे रोडीज हैं. आई ऐम प्राऊड ऑफ माई रोडीज. ये एमपी पार्लियामेंट में एक दूसरे की बीप बीप करते रहते हैं. इन्हें और कुछ करना बीप बीप बीप बीप. इसलिए मैंने रोडीज में वोटिंग नहीं रखी क्योंकि मुझे पता था कि अगर वोटिंग रखूँगा तो मेरे प्रोग्राम की बीप बीप हो जायेगी."






रवि शास्त्री; "देयर इज नो हाफ मेजर हीयर. आई गेट द फीलिंग दैट ऑल गवर्नमेंट इज वरीड अबाउट, इज अ विन. ऐट द एंड ऑफ डे, इट डजंट मैटर हाउ इट कम्स. बट नोइंग अमर सिंह, आई कैन टेल यू, ही इज अ ग्रेट कम्पीटीटर एंड ही विल कम हार्ड. इट्स अ काइंड ऑफ गेम ह्वेयर एनिथिंग कैन हैपेन. स्टिल होप, इन द एंड पोलिटिक्स इज द विनर."







एस पी तुलस्यान, ग्रेटेस्ट इक्विटी एनालिस्ट; "आल आई कैन से उदयन इज, सॉरी सॉरी......मुझे पता नहीं कि पार्लियामेंट में जो पैसे दिखाए गए थे उनका क्या हुआ? लेकिन अगर कैश फॉर वोट स्कैम में किसी ने पैसा कमाया है तो मैं उनसे यही कहूँगा कि ही शुड इन्वेस्ट इन रिलायंस बीकॉज रिलायंस इज अ गुड कंपनी. उसके अलावा सुगर सेक्टर में भी इन्वेस्ट कर सकते हैं स्टिल आई कैन से दैट रिलायंस इज अ गुड कंपनी."




योगेन्द्र यादव, "मैं आपको अस्योर कर सकता हूँ कि तमिलनाडु में जो इलेक्शन हुआ उसका इस कैश फॉर वोट स्कैम के दोबारा खुलने में कोई हाथ नहीं....हाँ, यह जरूर कहा जा सकता है कि अगर अमर सिंह से पूछताछ हुई तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजपूत वोट उनके हाथ से चले जायेंगे. इसका असर यह हो सकता है कि पूर्वांचल के राजपूत वोट जो पहले भाजपा को जाते थे वो अमर सिंह के खाते में जा सकते हैं. देखने वाली बात यह है कि उन्हें दलितों और यादवों का समर्थन एक बार फिर से मिल सकता है....ओह आपने अच्छा याद दिलाया. उनकी तो कोई राजनीतिक पार्टी ही नहीं है. ऐसे में वोट की बात करना ठीक नहीं होगा."



मायावती जी; "संसद में उस समय नोट दिखाए गए थे? कहाँ दिखाए गए थे? नोट का कोई हार तो किसी ने देखा नहीं....नहीं-नहीं आप गलत कह रहे हैं. वे नोट नकली होंगे. मेरा ऐसा मानना है कि असली नोट केवल हार में ही रहते हैं. जो नोट हार में नहीं रहते वे असली नहीं होते...प्रन्तू एक मिनट..हार की बात करते-करते मैं भूल गई कि उस समय संसद में जो वोटिंग हुई थी उसमें जीत किसकी हुई थी?"



बाबा रामदेव; "हे हे हे बाबा कभी झूठ बोलता है क्या? मैंने कहा कि पाँच सौ और हज़ार के नोट बंद करवाना चाहिए तो लोगों ने कहा कि बाबा को क्या पता है इकॉनोमी के बारे में. मैं कहता हूँ कि अगर ये पाँच सौ और हज़ार के नोट नहीं होते तो सांसदों को घूस नहीं दिया जा सकता. चरित्रवान सांसदों की कमी है अपने देश में. बाबा योग भी सिखाएगा और अच्छे सांसद भी देगा इस देश को. मेरा यह कहना है कि संसद में वोट के लिए पैसे लेनेवालों को फाँसी की सजा देने का प्रावधान हो तो यह देश एक बार फिर से सोने की चिड़िया हो जाएगा."



अनु मलिक; "कैश फॉर वोट के बारे में अपने अंदाज़ में कुछ कहना चाहता हूँ कि;

कैश लेकर वोट दे कैसा है ये जलवा तेरा; अर्ज किया है
कैश लेकर वोट दे कैसा है ये जलवा तेरा, और;
पुलिस इतना डंडा मारे कि टूट जाए तलवा तेरा.






स्पाइडर मैन जी; "ओह, यू आर टॉकिंग अबाउट दैट कैश फॉर वोट स्कैम..आई नो अबाउट इट. आई आल्सो नो अबाउट द परसन, हू इज इनवोल्व्ड इन इट...ही इज नोन ऐज सीडी मैन इन योर कंट्री...आई हैव हर्ड अबाउट दैट सॉंग व्हिच सम ब्लॉगर हैज रिटेन...

सीडी मैन सीडी मैन
डज ह्वाटएवर अ ब्रोकर कैन
मेक सीडीज ऑफ एनी साइज
ट्विस्ट स्टोरीज टू बेनेफिट अलाइज
लुकआउट हीयर कम्स
द सीडी मैन

और कोई कुछ कहेगा तो बाद में लिख दूंगा.


...................................................

Monday, July 18, 2011

लोकपाल पिल






एक था लोकतंत्र. अब लोकतंत्र है तो जाहिर सी बात है कि प्रधानमंत्री भी होंगे ही. अक्सर देखा गया है कि प्रधानमंत्री में लोकतंत्र हो या न हो, लोकतंत्र में प्रधानमंत्री होते ही हैं. यह बात तो पाकिस्तान के केस में भी सच होते दीखती है. खैर, प्रधानमंत्री होंगे तो मंत्री भी होंगे. दोनों होंगे तो मीटिंग भी होगी. ज्यादातर लोकतंत्र मीटिंग प्रधान होते हैं. बिना मीटिंग के लोकतंत्र की सफलता पर ग्रहण लग सकता है. लोकतंत्र आज एक बार फिर से सफल हो रहा था.

कहने का मतलब यह कि मीटिंग हो रही थी.

प्रधानमंत्री ने मंत्री जी से पूछा; "आप क्या कहते हैं? जनता में किसकी क्रेडिबिलिटी ज्यादा है? सिविल सोसाइटी की या हमारी?"

मंत्री जी बोले; "ऑफकोर्स वी एन्जॉय बेटर क्रेडिबिलिटी...आई हैव स्पेसिफिक इंटेलिजेंस इनपुट्स दैट वी एन्जॉय बेटर क्रेडिबिलिटी दैन सिविल सोसाइटी. आर जर्नलिस्ट्स हैव आल्सो टोल्ड मी दैट पीपुल ट्रस्ट अस मोर दैन दोज...लुक, वी कैन आल्सो वेरीफाई दोज इंटेलिजेंस इनपुट्स बाइ टैपिंग सम कनवर्सेशंस ऑफ आर सिटीजंस अंडर नेशनल सिक्यूरिटी ...वी कैन आल्सो बग सिटीजंस टू कम टू अ कन्क्लूजन... "

उनकी बात सुनकर पास बैठे एक और मंत्री बोले; "नो नो..इयु डोंट नीड टू डू आल दोज थींग्स. आई नो, हुवाट हैपेन्स हुवेन सामबोडी ईज इस्पाइड . आई नो ईट, सीन्स माई आफिस वाज इस्पाइड..."

प्रधानमंत्री जी बोले; "नहीं-नहीं. वो सब करने की जरूरत नहीं है. आपके इंटेलिजेंस इनपुट्स पर मुझे पूरा भरोसा है. आजतक आपके इनपुट्स कभी गलत साबित नहीं हुए हैं. आप तो मुझे यह बताएं कि सिविल सोसाइटी को कैसे कंट्रोल किया जाय? ये लोग़ मीडिया में बड़ा हो-हल्ला मचा रहे हैं."

उनकी बात सुनकर मंत्री जी बोले; "फॉर दैट, आई नीड समटाइम. सी, आई ऐम बिजी फॉर नेक्स्ट टू डेज ऐज आई हैव टू मैनेज लीकिंग सम स्टोरी अगेंस्ट कलावती जी इन सरताज कोरिडोर केस टू आर जर्नलिस्ट्स. आई विल सर्टेनली कमअप विद अ सजेशन, डे आफ्टर टूमारो."

दो दिन बाद मंत्री जी ने अपने ब्रेनवेव के सहारे यह तरीका निकाला कि सिविल सोसाइटी को इस लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग कमिटी से निकालने का एक ही तरीका है कि लोकपाल बिल ही न बनाया जाय. उनकी बात सुनकर प्रधानमंत्री ने शंका जाहिर की. बोले; "अगर लोकपाल बिल नहीं बना तो जनता नाराज़ हो जायेगी. सोचेगी कि बिना लोकपाल के भ्रष्टाचार फैलता ही जाएगा."

प्रधानमंत्री की बात सुनकर मंत्री जी बोले; "सी, वी विल नॉट हैव टू अप्वाइंट अ लोकपाल. दैट मीन्स, वी विल नॉट हैव टू पास लोकपाल बिल. आल वी हैव टू डू इज टू मैनुफैक्चर लोकपाल पिल. ऐज वी नो, आर साइंटिस्ट्स आर वर्ल्ड क्लास एंड ऑन द डाइरेक्शन ऑफ एच आर डी मिनिस्ट्री, दे हैव कमअप विद अ ड्रग फॉरर्मुलेशन व्हिच विल हेल्प अस वाइप आउट करप्शन फ्रॉम कंट्री. लेट अस पास अ रिजोल्यूशन एंड पब्लिश दैट इन गैजेट, स्टेटिंग दैट गवर्नमेंट विल मैनुफैक्चर लोकपाल पिल व्हिच विल बी गिवेन टू द सिटिजेन्स जस्ट लाइक पोलिओ वैक्सीन ड्राप्स ऑन सिक्स कांजीक्यूटिव संडेज. ट्व्लेव पिल्स पर सिटिज़न एंड वी विल वाइप आउट करप्शन फ्रॉम कंट्री."

प्रधानमंत्री ने अपने मंत्री की ओर तारीफ भरी नज़रों से देखा. बोले; "वाह! इसिलए मैं कहता हूँ कि आप मेरी सरकार के खेवनहार हैं. आप जो कर सकते हैं वह कोई नहीं कर सकता. मैं आज आपसे वादा करता हूँ कि मैं आपको देशरत्न का सम्मान दिलाकर ही प्रधानमंत्री का पद छोडूंगा."

मंत्री जी प्रधानमंत्री को ऐसे देखा जैसे कह रहे हों; "यू डोंट हैव टू वरी फॉर माई देशरत्न. आई विल अवार्ड माईसेल्फ विद देशरत्न, द डे आई बिकम प्राइम मिनिस्टर."

पंद्रह दिन बाद सरकारी गैजेट में सरकारी फैसला छप गया. देशवासी खुश हो गए. जनता इस बात से खुश थी कि अब देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा. भ्रष्टाचारी इस बात से दुखी थे कि अब देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा. कुछ लोग़ ऐसे भी थे जिन्हें समझ नहीं आ रहा था कि खुश हुआ जाय या दुखी? लोकतंत्र में खुद के ऊपर डाउट करने वाले लोगों का रहना बहुत ज़रूरी है. अगर वे नहीं रहें तो लोकतंत्र लोकतंत्र न लगकर राजतंत्र लगे.

गैजेट से पता चला कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस लोकपाल पिल की मैनुफैक्चरिंग से लेकर छ रविवार तक उसे जनता को खिलाने तक पूरा काम देखेगा.

अब पढ़िए कि उसके बाद कैसे-कैसे वार्तालाप हुए;

०१. स्वास्थ्य मंत्री और सुकेश केशवानी के बीच एक वार्तालाप;

सुकेश जी; "नमस्कार. हे हे हे..बहुत दिनों बाद बात हो रही है. सुना है देश से भ्रष्टाचार हटाने का काम आपका मंत्रालय कर रहा है?"
मंत्री जी; "हे हे हे...अब तो देखिये, यह बात तो है."
सुकेश जी; "मतलब अब भ्रष्टाचार हटा के ही मानेंगे...हा हा हा.. वैसे कितने का प्रोजेक्ट है?"
मंत्री जी; "अरे प्रोजेक्ट का क्या है? जितने का कहें, उतने का बनवा दें."
सुकेश जी; "अरे मेरे कहने का फायदा भी क्या? हमें तो कुछ मिलना है नहीं."
मंत्री जी; "क्यों? क्यों नहीं मिलना है?"
सुकेश जी; "इस प्रोजेक्ट के लिए तो केवल फार्मा कम्पनियाँ बिड कर सकती हैं."
मंत्री जी; "केवल फार्मा ही क्यों? ड्रग फौर्मुलेशन के केमिकल्स बनाने वाली कंपनी भी तो बिड कर सकती हैं."
सुकेश जी; "अब हम तो इस फील्ड में हैं नहीं. इसलिए..."
मंत्री जी; "अरे तो आप भी तो केमिकल्स का काम करते ही हैं. भले ही पेट्रोकेमिकल्स का है तो क्या हुआ?"
सुकेश जी; "मतलब कुछ किया जा सकता है?"
मंत्री जी; "क्यों नहीं. टेंडर पेपर चेंज करवा देता हूँ. बिडर का डिफिनेशन ही तो चेंज करना है. अरे केवल लिखवाना ही तो है कि "बिडर इन्क्लूड्स कंपनीज व्हिच हैव लाइसेंस टू मैनुफैक्चर ड्रग्स, केमिकल्स इन्क्लूडिंग पेट्रोकेमिकल्स....."
सुकेश जी; "अच्छा वो नेटवर्थ रिक्वायरमेंट बढ़ा दीजिये. बढ़ाकर साठ हज़ार करोड़ कर दीजिये. ऐसा कीजिए कि और कोई टेंडर कंडीशन पूरा ही न कर सके..."
मंत्री जी; "कल आप आइये तो सही....चलिए फिर कल बारह बजे मिलते हैं..."

०२. एक करप्शन एरैडीकेशन बूथ पर;

-- अबे ये क्या किया?
-- क्यों क्या हुआ?
-- अबे रिकार्ड गलत लिख दिया है.
-- क्या गलत है?
-- अबे आज की रिपोर्ट में लिखा हुआ है कि इस बूथ पर १७५६० लोगों को लोकपाल पिल खिलाई गई.
-- ज्यादा लिख दिया क्या?
-- अबे बेवकूफ इस पूरे इलाके की जनसँख्या ही केवल चार हज़ार सात सौ इक्कीस है.
--क्या करना है अब?
--छोड़ अब लिख ही दिया है तो रिपोर्ट सबमिट करते हुए वहाँ मामला सेटिल कर लेंगे. खर्चा लगेगा तो क्या हुआ? बिल भी चार गुना बनेगा.

०३. ड्रग केमिकल्स सप्लायर और मैन्यूफैक्चरर के बीच बातचीत

-- सर, मेरा बिल पास नहीं हो रहा है. आप जरा ऑर्डर डे दीजिये न तो बिल पास हो जाए.
-- ऐसे ही बिल पास करवाना चाहते हैं?
-- नहीं सर, ऐसे ही क्यों? आपका जो बनता है वो तो आपको मिलेगा ही.
-- और वो जो एक्सपायर्ड क्रोसीन का चूरा बनाकर भेज दिया था लोकपाल पिल बनाने के लिए, वो?
-- क्या बात करते हैं सर?
-- बात तो करेंगे ही. क्या समझते हैं कि हमें पता नहीं है?

०४. प्रधानमन्त्री और सम्पादक की बातचीत;

-- अब देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा?
-- नहीं ख़त्म होगा, यह मानने का कोई कारण नहीं है.
-- आपको लगता है कि लोकपाल पिल काम करेगा?
-- पिल काम नहीं करेगा, यह मानने का मेरे पास कोई कारण नहीं है.
-- आपने भी भ्रष्टाचार की पिल ली है?
-- नहीं, हमने नहीं ली. मैं तो लेना चाहता था लेकिन हमारे मंत्रियों ने लेने से मना कर दिया.
-- आपके मंत्रियों ने ली?
-- नहीं उन्होंने भी नहीं ली.
-- क्यों नहीं ली?
-- मैंने उनसे पूछा कि क्या वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं? उन्होंने बताया कि नहीं वे लिप्त नहीं हैं. इसलिए मैंने कहा कि जब वे लिप्त नहीं हैं तो फिर पिल लेने की उन्हें ज़रुरत नहीं.पिल का साइड इफेक्ट्स भी तो हो सकता है.
-- अब अगर कोई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा तो?
-- हमें चिंता नहीं है. कोलीशन धर्म है न.