Show me an example

Wednesday, December 29, 2010

दुर्योधन की डायरी - पेज २०८०




जिन्हें यह शिकायत है कि नए साल का जश्न मनाने का काम हमारी संस्कृति के खिलाफ है उन्हें यह जानने की ज़रुरत है कि नए साल का जश्न हमारी संस्कृति में हज़ारों सालों से मनाया जा रहा है. क्या कहा? विश्वास नहीं होता? पता था यही कहेंगे. इसीलिए तो मैं दुर्योधन की डायरी का वह पेज छाप रहा हूँ जिसमें युवराज नए साल का जश्न मनाने की तैयारी के बारे में लिखते हैं;

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नया साल आने को है. नया साल आने के लिए ही होता है. जाने का काम तो पुराने के जिम्मे है. काश कि ये बात पितामह और चाचा बिदुर जैसे लोग समझ पाते. सालों से जमे हुए हैं. हटने का नाम ही नहीं लेते. कम से कम आते-जाते सालों से ही कुछ सीख लेते. सीख लेते तो दरबार में बैठकर हर काम में टांग नहीं अड़ाते.

रोज नीतिवचन ठेलते रहते हैं. ये करना उचित रहेगा. वो करना अनुचित रहेगा. कदाचित ऐसा करना नीति के विरुद्ध रहेगा. कान पक गए हैं इनलोगों की बातें सुनकर. और इन्हें भी समझने की ज़रूरत है कि अब इनके दिन बायोग्राफी लिखने के हैं. दरबार में बैठकर हर काम में टांग अड़ाने के नहीं.

मैं तो कहता हूँ कि ये लोग पब्लिशर्स खोजें और अपनी-अपनी बायोग्राफी लिखकर मौज लें. पब्लिशर्स नहीं मिलते तो मुझसे कहें. मैं एक पब्लिशिंग हाउस खोल दूँगा. बस ये लोग राज-काज के कामों में दखल देना बंद कर दें. बायोग्राफी लिखने के दिन हैं इनके. ये उन कार्यों में अपना समय दें न. ये बात अलग है कि उनकी बायोग्राफी की वजह से तमाम लोगों की बखिया उधड़ जायेगी.

खैर, ये आने-जाने वाले सालों से कुछ नहीं सीखते तो हम कर भी क्या सकते हैं?

हमें तो नए साल का बेसब्री से इंतजार रहता है. आख़िर नया साल न आए और पुराना न जाए तो पता ही न चले कि पांडवों को अभी कितने वर्ष वनवास में रहना है? पड़े होंगे कहीं भाग्य को रोते. और फिर रोयेंगे क्यों नहीं? किसने कहा था जुआ खेलने के लिए?

जुआ खेला इसलिए वनवास की हवा खानी पडी. जुआ की जगह क्रिकेट खेलते तो ये नौबत नहीं आती. बढ़िया खेलते तो इंडोर्समेंट कंट्रेक्ट्स ऊपर से मिलते. लेकिन फिर सोचता हूँ कि वे तो क्रिकेट खेल लेते लेकिन हम कैसे खेलते? हम तो खेल ही नहीं पाते. आख़िर क्रिकेट इज अ जेंटिलमैन्स गेम.

दुशासन नए साल की तैयारियों में व्यस्त है. व्यस्त तो क्या है, व्यस्तता दिखा रहा है. कभी इधर तो कभी उधर. मदिरा का इंतजाम हुआ कि नहीं? नर्तकियों की लिस्ट फाईनल हुई कि नहीं? काकटेल पार्टी में कौन सी मदिरा का इस्तेमाल होगा? चमकीले कागज़ कहाँ-कहाँ लगने हैं? अतिथियों की लिस्ट रोज माडीफाई हो रही है. नर्तकियों का रोज आडीशन हो रहा है. इसकी तत्परता और मैनेजेरियल स्किल्स देखकर लगता है जैसे गुरु द्रोण ने इसे पार्टी आयोजन पर पी एचडी की डिग्री अपने हाथों से दी थी.

वैसे दुशासन को देखकर आश्वस्त भी हो जाता हूँ कि ये भविष्य में होटल इंडस्ट्री में हाथ आजमा सकता है.

कल उज़बेकिस्तान से पधारी दो नर्तकियों को लेकर आया. कह रहा था ये दोनों वहां की सबसे कुशल नर्तकियां हैं. पोल डांस में माहिर. उनकी फीस के बारे में पूछा तो पता चला कि बहुत पैसा मांगती हैं. कह रही थीं सारा पेमेंट टैक्स फ्री होना चाहिए. उनकी डिमांड सुनकर महाराज भरत की याद आ गई. एक समय था जब उज़बेकिस्तान भी महाराज भरत के राज्य का हिस्सा था. आज रहता तो इन नर्तकियों की हिम्मत नहीं होती इस तरह की डिमांड करने की. लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं?

वैसे इन नर्तकियों की नृत्य प्रतिभा देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई. अब तो मैंने दृढ़ निश्चय किया है कि जब मैं राजा बनूँगा और अपने राज्य का विस्तार एक बार फ़िर से उज़बेकिस्तान तक केवल इसलिए करूंगा क्योंकि वहां की नर्तकियां बहुत कुशल होती हैं.

शाम को कर्ण आकर गया. मैंने नए साल की तैयारियों के बारे में जानकारी देने की कोशिश की तो उसने कोई उत्सुकता ही नहीं दिखाई. पता नहीं कैसा बोर आदमी है. न तो मदिरापान में रूचि है और न ही नाच-गाने में. इसे देखकर तो नया साल भी बोर हो जाता होगा. मैंने रुकने के लिए कहा तो ये कहकर टाल गया कि सुबह-सुबह पिताश्री के दर्शन करने जाना है. रात को पार्टी में देर तक रहेगा तो सुबह आँख नहीं खुलेगी.

खैर, और कर भी क्या सकते है. कभी-कभी तो लगता है कि कितना अच्छा होता अगर कर्ण इन्द्र का पुत्र होता. इन्द्र के गुण इसके अन्दर रहते और इसके साथ नया साल मनाने का मज़ा ही आ जाता.

जयद्रथ भी बहुत खुश है. शाम से ही केश- सज्जा में लगा हुआ है. दर्पण के सामने से हट ही नहीं रहा है. कभी मुकुट को बाईं तरफ़ से देखता है तो कभी दाईं तरफ़ से. शाम से अब तक मोतियों की सत्रह मालाएं बदल चुका है. चार तो आफ्टरसेव ट्राई कर चुका है. उसे देखकर लग रहा है जैसे उसने आज ऐसा नहीं किया तो नया साल आने से मना कर देगा.

दुशासन ने अवन्ती से मशहूर डीजे केतु को बुलाया है. आने के बाद ये डीजे फिल्मी गानों की सीडी परख रहा है. कौन से गाने के बाद कौन सा गाना चलेगा. दुशासन और जयद्रथ ने अपनी-अपनी फरमाईश इसे थमा दी है. आख़िर एक सप्ताह से ये दोनों डांस की प्रक्टिस करते हलकान हुए जा रहे हैं.

कवियों ने भी नए साल के स्वागत में कवितायें लिखनी शुरू कर दी है. इन कवियों को भी लगता है कि ये कविता नहीं लिखेंगे तो नया साल आएगा ही नहीं. ऐसे क्लिष्ट शब्दों का इस्तेमाल करते हैं कि उनके अर्थ खोजने के लिए शब्दकोष की आवश्यकता पड़ती है. नए साल को नव वर्ष कहते हैं. एक कवि ने नए साल के दिनों को नव-कोपल तक बता डाला.

पता नहीं कब तक इन शब्दों और उपमाओं को ढोते रहेंगे? वो भी तब जब परसों ही हस्तिनापुर के सबसे वयोवृद्ध साहित्यकार ने घोषणा कर दी कि इस तरह की उपमाएं और साहित्य अब अजायबघर में रखने की चीजें हो गईं हैं. लेकिन इन कवियों और साहित्यकारों की आंखों पर तो काला चश्मा पड़ा हुआ है.

खैर, हमें क्या? कौन सा हमें कविताओं पर डांस करना है? हमारे लिए अवन्ती का डीजे फिल्मी गाने चुनने में सुबह से ही लगा हुआ है.

हम भी चलते हैं अब. जरा केश-सज्जा वगैरह कर ली जाय. दुशासन आज ही नया बॉडी-शैम्पू लाया है. देखें तो कैसा है?


पुनश्च: अच्छा हुआ आज शाम को सात बजे ही डायरी लिख ली. सोने से पहले लिखने की सोचता तो शायद आज का पेज लिख ही नहीं पाता. आख़िर आज तो सोने का दिन ही नहीं है. आज तो सारी रात जागना है.

Monday, December 27, 2010

सिंगिंग रिअलिटी-शो ला रा लप्पा ला का फिनाले





मुंबई से एन टी एम एन संवाददाता चंदू चौरसिया

कल मुंबई में हुआ ला रा लप्पा ला नामक सिंगिंग रिअलिटी शो का फायनल तमाम अस्वाभाविक घटनाओं के लिए वर्षों तक याद किया जाएगा. ज़ीहाँ टीवी द्वारा आयोजित इस टैलेंट हंट के फिनाले में शुरुआत ही अच्छी नहीं रही. तब हंगामा मच गया जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने यह कहते हुए बवाल कर दिया कि फिनाले के पहले तक जो हुआ सो हुआ लेकिन फिनाले में प्रतियोगियों को केवल मराठी गीत ही गाना पड़ेगा. इन कार्यकर्ताओं ने अपनी मांग को एक कदम आगे बढ़ाते हुए कहा कि कार्यक्रम को प्रजेंट करने वाले एंकर को भी केवल मराठी में ही अनाऊँसमेंट करना होगा.

तमाम बड़े और गणमान्य व्यक्तियों के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझा और कार्यक्रम की शुरुआत हो सकी.

कार्यक्रम शुरू होने के बाद फिर से तब बवाल शुरू हुआ जब कार्यक्रम में अथिति के रूप में आये अक्षय कुमार अपनी कार से उतरकर पैदल चलते हुए अपनी सीट तक गए. उनके ऐसा करने से निराश तमाम दर्शकों ने यह कहते हुए हंगामा शुरू कर दिया कि उन्हें ठग लिया गया. अपनी बात को स्पष्ट करते हुए इन लोगों ने बताया कि उन्हें आशा थी कि अक्षय कुमार ज़ी उड़ते हुए, कूदते हुए या फिर तार के सहारे आसमान से उतरेंगे और उनके ऐसा नहीं करने की वजह से इन दर्शकों का पैसा वसूल नहीं हुआ.

जहाँ ये दर्शक इस बात से नाराज़ थे वहीँ अक्षय कुमार फैन्स क्लब के महासचिव मिलिंद खेलकर ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि अक्षय कुमार का पैदल चलकर अपनी सीट तक आना उनके खिलाफ साजिश है. खेलकर ज़ी ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए बताया कि चैनल ने जानबूझकर अक्षय को स्टेज पर उड़ते हुए नहीं आने दिया. खेलकर ज़ी की बात को उस समय और बल मिला जब अक्षय कुमार के मित्र और प्रोड्यूसर विपुल शाह ने कहा; "अक्षय को पैदल चल कर अपनी सीट तक जाने से बचना चाहिए. पैदल चलना उनकी ईमेज के लिए हानिकारक है. अगर वे ऐसे ही पैदल चलेंगे तो फिर उनके और फिल्म इंडस्ट्री के खानों के बीच कोई अंतर नहीं रह जाएगा और अक्षय के फैन्स कम हो जायेंगे."

विपुल शाह की इस बात को अक्षय कुमार ने गाँठ बांधकर रख ली और उन्होंने फैसला किया कि भविष्य में वे स्टेज पर उड़ते हुए, कूदते हुए या फिर गिरते हुए ही प्रकट होंगे और पैदल चलकर अपनी सीट तक पहुँचने की गलती फिर नहीं करेंगे.

कार्यक्रम आगे बढ़ा और प्रतियोगियों के अलावा उनके मेंटोर्स ने भी गाने गाये.

एक स्पेशल प्रजंटेशन में विख्यात गजल गायक गुलाम अली साहब ने एक ग़ज़ल सुनाई. सबकुछ ठीक चल रहा था. तभी एक और घटना हो गई. जब गुलाम अली साहब ने ग़ज़ल ख़त्म की तभी विख्यात मेंटोर और कुख्यात गायक श्री दलेर मेंहदी ने गुलाम अली साहब से कहा; "रब्ब राखां पुत्तर. चक दे फटे. जिन्दा रह पुत्तर."

उनकी इस बात पर वहाँ उपस्थित लोगों में हडकंप मच गया. सब इस बात से आश्चर्यचकित थे कि प्रतियोगियों के लिए रिजर्व इस लाइन को दलेर मेंहदी ने गुलाम अली के लिए कैसे कह दिया. बाद में तमाम भूतपूर्व गायकों ने दलेर मेंहदी से कहा कि गुलाम अली साहब से माफी मांग लें. पहले तो दलेर मेंहदी ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया लेकिन वे बाद में मान गए और उन्होंने गुलाम अली से माफी मांग ली.

ज्ञात हो कि "रब्ब राखां पुत्तर. चक दे फटे" नामक लाइन दलेर मेहंदी के साथ वैसे ही चिपक गई है जैसे देवर्षि नारद के साथ "नारायण नारायण". यह भी ज्ञात हो कि इंटरनेशनल रिअलिटी शोज जजेज युनियन ने दलेर मेहंदी की इस लाइन को वर्ष २०१० की सर्वश्रेष्ठ लाइन घोषित किया है.

कार्यक्रम आगे बढ़ा और सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. कुछ ही देर बाद महान गायक मीका और महान संगीतकार साजिद में इस बात को लेकर कहा-सुनी हो गई कि हर किसी को सन-ग्लास पहनने का अधिकार नहीं है. जहाँ मीका ज़ी का कहना था कि सन-ग्लास पहनने का अधिकार बप्पी लाहिड़ी ज़ी के अलावा सिर्फ उन्हें है, वहीँ साजिद का मानना था कि वे भी अब इस एक्सक्लूसिव क्लब के मेंबर बन गए हैं. बात हाथ-पाई तक पहुँचती इससे पहले ही कुछ लोगों ने मध्यस्थता करके मामले को सुलझा लिया.

कार्यक्रम के अंत में स्टेज पर उदित नारायण और सुरेश वाडकर को बुलाया गया. वे स्टेज पर आये और उन्हें विनर का नाम बताने का जिम्मा सौंपा गया. बाद में जब एंकर ने यह कहा कि "अब वह घड़ी आ गई है" तभी से उदित नारायण ज़ी ने स्टेज के चारों तरफ देखना शुरू किया. सब यह सोच रहे थे कि वे शायद किसी को खोज रहे हैं. बाद में जब एंकर ने चौथी बार कहा कि "अब वह घड़ी आ गई है" तब उदित नारायण ज़ी से रहा नहीं गया और उन्होंने एंकर को गाली देना शुरू कर दिया.

जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा; "चार बार यह सुनने के बाद भी कि अब वह घड़ी आ गई है, मुझे जब स्टेज पर कोई घड़ी दिखाई नहीं दी तो मुझे गुस्सा आ गया."

बाद में लोगों ने उन्हें समझाया कि एंकर जिस घड़ी की बात कर रहा था वह घड़ी कुछ और ही थी.

अंत में विनर का नाम अनाऊँस किया गया. मगर जैसे ही एंकर ने कहा; "और दुनियाँ के पहले सिंगिंग सुपर स्टार हैं जमाल खान" तभी करीब सत्रह अट्ठारह लोगों ने स्टेज पर धावा बोल दिया. उनका कहना था कि दुनियाँ के पहले सिंगिंग सुपर स्टार कुमार सानू हैं. ऐसे में किसी और को दुनियाँ का पहला सिंगिंग सुपर स्टार कैसे कहा जा सकता है? काफी खोजबीन के बाद पता चला कि ये लोग़ महान गायक कुमार सानू के फैन्स थे और यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि
कुमार सानू के जीते ज़ी कोई और सिंगिंग सुपर स्टार हो सकता है.

कुल मिलाकर कार्यक्रम हंगामाखेज रहा. चैनल 'जीहाँ' की तरफ से लोगों से यह वादा किया गया कि अगले वर्ष ऐसी घटनाएं न हों, चैनल इसका ख़याल रखेगा.


नोट: यह पोस्ट मैंने कल न्यूज दैट मैटर्स नॉट के लिए लिखी थी.

Saturday, December 25, 2010

बापी दास का क्रिसमस




यह निबंध नहीं बल्कि कलकत्ते में रहने वाले एक युवा, बापी दास का पत्र है जो उसने इंग्लैंड में रहने वाली अपने एक नेट-फ्रेंड को लिखा था. इंटरनेट सिक्यूरिटी में हुई गफलत के कारण यह पत्र लीक हो गया. ठीक वैसे ही जैसे सत्ता में बैठी पार्टी किसी विरोधी नेता का पत्र लीक करवा देती है. आप पत्र पढ़ सकते हैं क्योंकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे 'प्राइवेट' समझा जा सके.

दिसम्बर २००७ में लिखा था. फिर से पब्लिश कर दे रहा हूँ. जिन्होंने नहीं पढ़ा होगा वे पढ़ लेंगे:-)

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प्रिय मित्र नेटाली,

पहले तो मैं बता दूँ कि तुम्हारा नाम नेटाली, हमारे कलकत्ते में पाये जाने वाले कई नामों जैसे शेफाली, मिताली और चैताली से मिलता जुलता है. मुझे पूरा विश्वास है कि अगर नाम मिल सकता है तो फिर देखने-सुनने में तुम भी हमारे शहर में पाई जाने वाली अन्य लड़कियों की तरह ही होगी.

तुमने अपने देश में मनाये जानेवाले त्यौहार क्रिसमस और उसके साथ नए साल के जश्न के बारे में लिखते हुए ये जानना चाहा था कि हम अपने शहर में क्रिसमस और नया साल कैसे मनाते हैं. सो ध्यान देकर सुनो. सॉरी, पढो.

तुमलोगों की तरह हम भी क्रिसमस बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. थोडा अन्तर जरूर है. जैसा कि तुमने लिखा था, क्रिसमस तुम्हारे शहर में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है, लेकिन हम हमारे शहर में घूम-घाम के साथ मनाते हैं. मेरे जैसे नौजवान छोकरे बाईक पर घूमने निकलते हैं और सड़क पर चलने वाली लड़कियों को छेड़ कर क्रिसमस मनाते हैं. हमारा मानना है कि हमारे शहर में अगर लड़कियों से छेड़-छाड़ न की जाय, तो यीशु नाराज हो जाते हैं. हम छोकरे अपने माँ-बाप को नाराज कर सकते हैं, लेकिन यीशु को कभी नाराज नहीं करते.

क्रिसमस का महत्व केक के चलते बहुत बढ़ जाता है. हमें इस बात पर पूरा विश्वास है कि केक नहीं तो क्रिसमस नहीं. यही कारण है कि हमारे शहर में क्रिसमस के दस दिन पहले से ही केक की दुकानों की संख्या बढ़ जाती है. ठीक वैसे ही जैसे बरसात के मौसम में नदियों का पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है.

क्रिसमस के दिनों में हम केवल केक खाते हैं. बाकी कुछ खाना पाप माना जाता है. शहर की दुकानों पर केक खरीदने के लिए जो लाइन लगती है उसे देखकर हमें विश्वास हो जाता है दिसम्बर के महीने में केक के धंधे से बढ़िया धंधा और कुछ भी नहीं. मैंने ख़ुद प्लान किया है कि आगे चलकर मैं केक का धंधा करूंगा. साल के ग्यारह महीने मस्टर्ड केक का और एक महीने क्रिसमस के केक का.

केक के अलावा एक चीज और है जिसके बिना हम क्रिसमस नहीं मनाते. वो है शराब. हमारी मित्र मंडली (फ्रेंड सर्कल) में अगर कोई शराब नहीं पीता तो हम उसे क्रिसमस मनाने लायक नहीं समझते. वैसे तो मैं ख़ुद क्रिश्चियन नहीं हूँ, लेकिन मुझे इस बात की समझ है कि क्रिसमस केवल केक खाकर नहीं मनाया जा सकता. उसके लिए शराब पीना भी अति आवश्यक है.

मैंने सुना है कि कुछ लोग क्रिसमस के दिन चर्च भी जाते हैं और यीशु से प्रार्थना वगैरह भी करते हैं. तुम्हें बता दूँ कि मेरी और मेरे दोस्तों की दिलचस्पी इन फालतू बातों में कभी नहीं रही. इससे समय ख़राब होता है.

अब आ जाते हैं नए साल को मनाने की गतिविधियों पर. यहाँ एक बात बता दूँ कि जैसे तुम्हारे देश में नया साल एक जनवरी से शुरू होता है वैसे ही हमारे देश में भी नया साल एक जनवरी से ही शुरू होता है. ग्लोबलाईजेशन का यही तो फायदा है कि सब जगह सब कुछ एक जैसा रहे.

नए साल की पूर्व संध्या पर हम अपने दोस्तों के साथ शहर की सबसे बिजी सड़क पार्क स्ट्रीट चले जाते हैं. है न पूरा अंग्रेजी नाम, पार्क स्ट्रीट? मुझे विश्वास है कि ये अंग्रेजी नाम सुनकर तुम्हें बहुत खुशी होगी. हाँ, तो हम शाम से ही वहाँ चले जाते हैं और भीड़ में घुसकर लड़कियों के साथ छेड़-खानी करते हैं.

हमारा मानना है कि नए साल को मनाने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं होगा. सबसे मजे की बात ये है कि मेरे जैसे यंग लड़के तो वहां जाते ही हैं, ४५-५० साल के अंकल टाइप लोग, जो जींस की जैकेट पहनकर यंग दिखने की कोशिश करते हैं, वे भी जाते हैं. भीड़ में अगर कोई उन्हें यंग नहीं समझता तो ये लोग बच्चों के जैसी अजीब-अजीब हरकतें करते हैं जिससे लोग उन्हें यंग समझें.

तीन-चार साल पहले तक पार्क स्ट्रीट पर लड़कियों को छेड़ने का कार्यक्रम आराम से चल जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से पुलिस वालों ने हमारे इस कार्यक्रम में रुकावटें डालनी शुरू कर दी हैं. पहले ऐसा ऐसा नहीं होता था. हुआ यूँ कि दो साल पहले यहाँ के चीफ मिनिस्टर की बेटी को मेरे जैसे किसी यंग लडके ने छेड़ दिया. बस, फिर क्या था. उसी साल से पुलिस वहाँ भीड़ में सादे ड्रेस में रहती है और छेड़-खानी करने वालों को अरेस्ट कर लेती है.

मुझे तो उस यंग लडके पर बड़ा गुस्सा आता है जिसने चीफ मिनिस्टर की बेटी को छेड़ा था. उस बेवकूफ को वही एक लड़की मिली छेड़ने के लिए. पिछले साल तो मैं भी छेड़-खानी के चलते पिटते-पिटते बचा था.

नए साल पर हम लोग कोई काम-धंधा नहीं करते. वैसे तो पूरे साल कोई काम नहीं करते, लेकिन नए साल में कुछ भी नहीं करते. हम अपने दोस्तों के साथ ट्रक में बैठकर पिकनिक मनाने जरूर जाते हैं. वैसे मैं तुम्हें बता दूँ कि पिकनिक मनाने में मेरी कोई बहुत दिलचस्पी नहीं रहती. लेकिन चूंकि वहाँ जाने से शराब पीने में सुभीता रहता है सो हम खुशी-खुशी चले जाते हैं. एक ही प्रॉब्लम होती है. पिकनिक मनाकर लौटते समय एक्सीडेंट बहुत होते हैं क्योंकि गाड़ी चलाने वाला ड्राईवर भी नशे में रहता है.

नेटाली, क्रिसमस और नए साल को हम ऐसे ही मनाते हैं. तुम्हें और किसी चीज के बारे में जानकारी चाहिए, तो जरूर लिखना. मैं तुम्हें पत्र लिखकर पूरी जानकारी दूँगा. अगली बार अपना एक फोटो जरूर भेजना.

तुम्हारा,
बापी

पुनश्च: अगर हो सके तो अपने पत्र में मुझे यीशु के बारे में बताना. मुझे यीशु के बारे में जानने की बड़ी इच्छा है, जैसे, ये कौन थे?, क्या करते थे? ये क्रिसमस कैसे मनाते थे?

Tuesday, December 21, 2010

प्याज का बस्ता कहीं आज अगर उतरता है...




पेश हैं कुछ पियाजी अशआर. बांचिये.


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खुश रहे न कभी, उदास रहे
दाम देखा औ बदहवाश रहे
आज सत्तर में बिक रही देखो,
कल गनीमत गर सौ के पास रहे

आज उतनी भी मयस्सर न किचेन-खाने में
जितनी झोले से गिरा करती थी आने-जाने में

काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब
घर में जब पाव भर पियाज नहीं

वो पूछते हैं हमसे कब सस्ती होगी
कोई हमें बतलाये हम बतलायें क्या

मिले जो प्याज देखने को औ छाये रंगत
वे सोचते हैं मिडिल क्लास का हाल अच्छा है

आदतन दाम बढ़ गया उसका
आदतन हमने खाना छोड़ दिया

दिल पे रखा हैं प्याज-ओ-खिश्त, कोई उसे गिराए क्यों
रो रहे हैं हम बिना छीले, कोई भला छिलवाए क्यों

प्याज का बस्ता कहीं आज अगर उतरता है
मन हो बेचैन उसे देखने से डरता है

दर्द सीने से उठा आँख से आँसू निकले
प्याज का दाम सुना था कहाँ छीला उसको

पूछिए मिडिल क्लास से लुफ्त-ए-प्याज
ये मज़ा हाई-क्लास क्या जानें

घर में आज एक भी पियाज नहीं
कहीं कोई मेहमां न आज आ धमके

आ जाए किचेन में अगर फ़रहत ही मिलेगी
फेहरिस्त में अब प्याज इक हीरे की तरह है

(फरहत = ख़ुशी)

Wednesday, December 15, 2010

हाँ, याद आया....




तमाम घटनाएं किसी न किसी काल-खंड का हिस्सा बन कर रह जाती हैं. यह जो महीना चल रहा है इसके भाग्य में लिखा था कि इसी समय पूरा देश शीला के जवान होने की बात पर अपनी प्रतिक्रिया दे. परन्तु शीला की जवानी के अलावा और भी बातें हैं जिनपर इस काल-खंड का अधिकार है.

विकिलीक्स को ही ले लीजिये. विकिलीक्स ने भी साल २०१० के इस महीने को महत्वपूर्ण बना दिया है. उधर लीक्स होते जा रहे हैं और इधर यह महीना महत्वपूर्ण होता जा रहा है. विकिलीक्स के महत्व का इस बात से पता लगता है कि कुछ लोगों ने इसे यू एस ओपन भी कहना शुरू कर दिया है. हर वर्ष अगस्त महीने में होने वाला यू एस ओपन इस साल दिसम्बर में भी हो रहा है. वहीँ ये लीक्स पहले होने वाले क्रिकेट सीरीज केबिल एंड वायरलेस सीरीज की भी याद दिला गए.

वैसे मुझे एक बात से ही शिकायत है. विकिलीक्स वालों ने जब अमेरिकी दूतावासों के दस्तावेज लीक करने शुरू किये तो उन्हें हर लीक के साथ यह चेतावनी भी लिख देनी चाहिए थी कि नक्कालों से सावधान. या फिर हमारी कोई शाखा नहीं है. ऐसा नहीं करने से गड़बड़ हो गई न. पाकिस्तान के कुछ अखबारों ने नकली दस्तावेज लीक कर दिए जिसके अनुसार दिल्ली मिष्ठान्न भण्डार ने वित्तवर्ष २००९-१० के लिए जितनी मिठाई बनाने का दावा किया था उससे करीब ढाई किलो मिठाई कम बनाई. बाद में ब्रिटेन के एक अखबार ने यह बताया कि पाकिस्तानी अखबारों का यह दावा बिलकुल गलत है और दिल्ली मिष्ठान्न भण्डार के बारे में अमेरिकी दूतावासों से कोई भी टिप्पणी नहीं हुई थी.

वहीँ दूसरी तरफ ब्रिटेन के अखबार न्यूज ऑफ द वर्ल्ड ने एक स्टिंग ऑपरेशन करके बताया कि इन नकली दस्तावेजों के पीछे मजीद मज़हर और सलमान बट्ट का हाथ है.

हाथ से याद आया कि पिछले बीस दिनों में पूरे देश में इस बात पर चर्चा हो रही है कि टेलिकॉम मिनिस्टर 'ये' राजा ने अपनी ईमानदारी का दावा करने के बावजूद इस्तीफ़ा क्यों दिया? इसके पीछे किसका हाथ है? तमाम अटकलें चल ही रही थीं कि विकिलीक्स से लीक हुए एक केबिल के अनुसार राजा के इस्तीफे के पीछे करूणानिधि का हाथ है. इस केबिल के अनुसार हालाँकि पहले तो करूणानिधि तैयार नहीं थे लेकिन जब उन्हें मनाने के लिए दिल्ली से कांग्रेसी नेता करीब डेढ़ दर्जन शॉल लेकर चेन्नई पहुंचे तब करूणानिधि जी राजा बाबू के इस्तीफे के लिए राज़ी हो गए.

अमेरिकी दूतावास की एक महत्वपूर्ण सूचना के अनुसार शॉल की खेप चेन्नई पहुँचने के बाद स्वयं सोनिया गाँधी जी ने चेन्नई जाकर श्री करूणानिधि को शॉल लपेट दिया और उसके बाद वे राजा के इस्तीफे के लिए राज़ी हो गए. एक अनुमान के अनुसार श्री करूणानिधि के पास अब करीब सत्तावन हज़ार दो सौ शॉलें हैं.

जैसा कि विदित ही है कि राजा के ऊपर बहुत बड़ी धनराशि के हेर-फेर का आरोप है.

धनराशि से याद आया कि हाल ही में कौन बनेगा करोड़पति में अपनी आदत के अनुसार प्रश्न पूछने वाले श्री अमिताभ बच्चन ने श्री राजा से पूछा; "क्या करना चाहेंगे आप इस धनराशि से?" जिसके जवाब में श्री राजा ने उन्हें बताया कि; "दिस्स यिज्ज याल ल्लीडार्स मणी."

उनके इस जवाब से करूणानिधि ने राहत की साँस ली.

मणी से याद आया कि मणिशंकर ऐय्यर पिछले करीब एक महीने से इस बात से नाराज़ हैं कि तमाम और स्कैम के आ जाने से कॉमनवेल्थ स्कैम कहीं खो गया और उसकी वजह से उन्हें पैनल डिस्कशन के लिए किसी टीवी चैनल से निमंत्रण नहीं आ रहा है. पिछले करीब डेढ़ महीने से कोई स्टेटमेंट न दे सकने के कारण श्री ऐय्यर का हाजमा खराब होने के चांस बढ़ गए हैं. तीन दिन पहले ही उन्होंने बताया कि वे तो कारावास में बंद चीन के नेता लिऊ जिअयाबो को नोबेल दिए जाने पर भी स्टेटमेंट दने के लिए तैयार हैं लेकिन कोई चैनल उनकी बाईट ले ही नहीं रहा.

चीन के इस विद्रोही नेता को शांति का नोबेल देने की बात पर याद आया कि चीन ने तमाम देशों को यह कहते हुए चेतावनी दी कि जो भी देश इस समरोह में जाएगा उसके साथ चीन के सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं. यह चेतावनी भारत के लिए भी थी. चीन की इस बात पर भारत ने यह कहते हुए कान नहीं दिए कि; "कश्मीर का मुद्दा ही केवल बाइ-लैटरल है. जहाँ तक नोबेल समारोह की बात है तो वह एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है और भारत यह समारोह अटेंड करेगा."

नोबेल समारोह में भारत की शिरकत के बाद चीन ने भारत से कहा कि; "हम अपना यह अपमान नहीं भूलेंगे. भविष्य में जब भी अरुंधती राय को 'भूगोल' के लिए और आसिफ अली जरदारी को 'फिजिक्स' के लिए नोबेल पुरस्कार मिलेगा तो चीन भी वह समारोह अटेंड करके बदला ले लेगा."

भारत सरकार ने चीन के इस वक्तव्य की जांच सीबीआई को सौंप दी है.

सी बी आई से याद आया कि टेलिकॉम घोटाले की जांच कर रही सी बी आई ने अपनी एक गुप्त रिपोर्ट में नीरा राडिया की तारीफ़ की है. सी बी आई का मानना है कि नीरा ज़ी की वजह से ही देश में चल रहे दलाली के लेटेस्ट रेट्स सामने आये हैं. अखिल भारतीय दलाल महासंघ ने भी एक धन्यवाद प्रस्ताव पारित कर नीरा राडिया के प्रति आभार व्यक्त किया है. दलाल संघ के सदस्यों का मानना है कि पिछले सात सालों से वे एवरेज रेट्स ग्यारह परसेंट पर काम कर रहे थे लेकिन थैंक्स टू नीरा ज़ी अब यह रेट पंद्रह परसेंट हो जाएगा.

ज्ञात हो कि नीरा राडिया ज़ी पीआर फर्म वैष्णवी कम्यूनिकेशंस की मालकिन हैं.

मालकिन से याद आया कि बिहार के मोतिहारी जिले के डुगडुगा गाँव की रेनू कुमारी ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि वे सूर्य की असली मालकिन हैं. सूर्य की रजिस्ट्री के दस्तावेज दिखाते हुए रेनू ज़ी बताया कि उन्होंने सन १९७८ में ही सूरज की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली थी. रेनू ज़ी के इस क्लेम की वजह से स्पेन की महिला अन्जेल्स डुरान के क्लेम को गहरा झटका लगा है. ज्ञात हो कि मिस डुरान ने पूरी दुनिया को यह कहते हुए चौंका दिया था कि उन्होंने सूर्य की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली है और अब से सूर्य उनकी प्रापर्टी है.

मिस डुरान और रेनू ज़ी के अलावा दुनिया भर के तमाम लोग समय-समय पर यह दावा करते आये हैं कि वे सूर्य, चन्द्रमा, वृहस्पति, मंगल और ऐसे ही तमाम ग्रहों के मालिक हैं. हाल ही में येल यूनिवर्सिटी ने ऐसे क्लेम पर पी एचडी करने के लिए अपने स्टुडेंट्स को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया.

वैसे भारतीय समाचार चैनलों में इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि सूरज के असली मालिक अरिंदम चौधरी हो सकते हैं.

अरिंदम चौधरी से याद आया कि.....

नोट: मैंने यह पोस्ट न्यूज दैट मैटर्स नॉट के लिए लिखी थी.न्यूज दैट मैटर्स नॉट बहुत बढ़िया फेक न्यूज साईट है. इसके एडिटर तनय सुकुमार डेलही कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय) के छात्र हैं. तनय का अपना ब्लॉग भी है और मैंने उनका लिखा हुआ जितना भी पढ़ा है, उसको देखते हुए कह सकता हूँ कि मुझे वे एक बहुत परिपक्व लेखक लगे.

न्यूज दैट मैटर्स नॉट पर कंट्रीब्यूट करने वाले ज्यादातर लेखक इंजीनीयरिंग स्टुडेंट्स हैं. न्यूज दैट मैटर्स नॉट फेक न्यूज और सटायर के ऊपर भारतवर्ष की दूसरी सबसे पॉपुलर साईट है.

Monday, December 13, 2010

चंदू-राडिया संवाद




लगता है टेप्स बनानेवाली कोई कंपनी जल्द ही नीरा राडिया को अपना ब्रांड एम्बेसेडर नियुक्त कर लेगी. दरअसल नीरा ज़ी केवल टेप बनानेवाली ही नहीं बल्कि किसी टेलिकॉम कंपनी द्वारा भी चुनी जा सकती हैं. वैसे कहीं आप यह तो नहीं सोच रहे कि एक पी आर वाली ने अपने पी आर का काम मुझे तो नहीं सौंप दिया? खैर, इससे पहले कि आप ऐसा सोचें, मैं खुद ही बता देता हूँ कि ऐसी बात नहीं है. नीरा ज़ी के आठ सौ और टेप्स के बाहर आने की वजह से मैं ऐसा कह रहा था. वैसे इसका एक और कारण है.

कल अपना चंदू यानि चंदू चौरसिया मेरे पास आया. आकर कुछ देर खड़ा रहा. जब उसने कुछ नहीं कहा तो मुझे ही बात शुरू करनी पड़ी. मैंने कहा; "क्या बात है? कुछ कहना चाहते हो क्या?"

चंदू बोला; "हाँ, लेकिन हिम्मत नहीं हो रही."

मैंने कहा; "मेरे सामने कुछ कहने के लिए हिम्मत की क्या ज़रुरत? जो भी मन में है, बस कह डालो."

वो बोला; "तो सुनिए. इससे पहले कि आपको दूसरों से पता चले मैं खुद ही बता देता हूँ कि नीरा राडिया ज़ी से मेरी भी बात हुई है. ऐसा नहीं है कि केवल वीर, बरखा, इंदरजीत और प्रभु चावला के साथ ही उन्होंने बात की है. दरअसल नए टेप्स में जो बासठ नंबर टेप है और जिसके बारे में आऊटलुक ने यह कहा है कि नीरा के साथ दूसरी तरफ से कौन बात कर रहा है, यह आवाज़ कोई नहीं पहचान सका, दरअसल वह मैं ही हूँ."

मैंने कहा; "क्या बात कर रहे हो? वैसे क्या बातचीत हुई है तुम्हारी नीरा राडिया के साथ?"

वो बोला; "अब ये रहा लिंक. आप खुद ही सुन लीजिये."

मैंने क्लिक करके नीरा और चंदू की बातचीत सुनी. मैं अपने ब्लॉग पर वह बातचीत छाप रहा हूँ. आपलोग़ भी बांचिये.

....................................................................................

किर्र किर्र किर्र किर्र किर्र किर्र किर्र

नीरा : हाय.

चंदू : नमस्ते मैडम.

नीरा : ये हमस्ते हैडम क्यों कह रहे हो?

चंदू : नहीं-नहीं मैंने वह नहीं कहा. मैंने कहा नमस्ते मैडम.

नीरा : हाँ, अब तुम्हारी आवाज़ ठीक से आ रही है.

चंदू : वो आपका फ़ोन आया तो मैं दाल-भात खा रहा है. मुँह में खाना था इसलिए आपको हमस्ते हैडम सुनाई दिया होगा.

नीरा : ही ही ही ..वैसे मैंने बीस मिनट पहले भी फ़ोन किया था. कितनी घंटी बजी लेकिन तुमने उठाया ही नहीं.

चंदू : वो मैडम क्या है कि उस समय चूल्हे पर दाल पक रही थी. उसकी आवाज़ में टेलीफोन की घन्टी सुनाई नहीं दी होगी.

नीरा : क्या बात कर रहे हो? तुम खुद खाना बनाते हो?

चंदू : अरे मैडम मैं ठहरा हिंदी का पत्रकार. मैं वीर भाई की तरह थोड़े न हूँ कि दिल्ली के फाइव स्टार रेस्टोरेंट में घूम घूम कर खाना खाऊं और छ महीने बाद किसी सन्डे को चालीस पेज का एक सप्लिमेंटरी एडिशन निकाल कर उन रेस्टोरेंट की रैंकिंग कर दूँ. खाना का खाना और हाई क्वालिटी जर्नलिज्म अलग से.

नीरा : लेकिन वो भी तो जर्नलिज्म ही है.

चंदू : अब वो कैसा जर्नलिज्म है मैडम, उसपर मेरा मुँह मत खुलवाइये.

नीरा : खैर, मैंने तुमको यह बताने के लिए फ़ोन किया था कि कल रात ढाई बजे मेरी एम एम से बात हुई.

चंदू : क्या मैडम? ये ढाई बजे टाइम है किसी के साथ बात करने का? आपलोग सोते कब हैं?

नीरा : वो सब छोड़ो, और जो मैं कह रही हूँ उसको सुनो. एम एम तुमसे नाराज़ हैं.

चंदू : क्यों नाराज़ हैं मैडम?

नीरा : अरे नाराज़ नहीं होंगे तो क्या होंगे? ये तुमने क्या स्टोरी लिखी है? और स्टोरी का टाइटिल भी कितना गन्दा; "ये गैस किसकी है?" एम एम ने कहा कि द होल स्टोरी वाज स्टिंकिंग..."

चंदू : अब मैडम गैस की बात है स्टोरी में इसलिए उनको स्टिंकिंग लग रही होगी. वैसे वे किस बात से नाराज़ हैं?

नीरा : अरे नाराज़ होनेवाली बात ही है. तुमने लिखा कि..एक मिनट मेरे सामने ही है वो पेज. मैं पढ़कर सुनाती हूँ..हाँ, तुमने लिखा है; "बड़ा भाई इस बात से स्योर था कि गैस उसकी है लेकिन छोटा भाई अचानक दावा करने लगा है कि गैस उसकी है. अब यह गैस किसकी है, यह तो सुप्रीम कोर्ट ही बता पायेगा. लेकिन जिस गैस पर बड़े भाई का अधिकार है उसी गैस पर छोटा भई अपना अधिकार कैसे बता सकता है? अब यहाँ तो बड़ा भाई कह ही सकता है कि छोटा भाई अपनी गैस खुद खोज ले. मेरी समझ में यह नहीं आता कि छोटा भाई अपनी गैस खुद प्रोड्यूस न करके बड़े भाई की गैस के पीछे क्यों पड़ा है?..." और ये क्या है? ये क्या है? जिस तरह से तुमने स्टोरी ख़त्म की है..ये क्या लिखा है तुमने कि; "युद्ध के मैदान में सेनायें आमने-सामने हैं. अब देखनेवाली बात यह है कि युद्ध का शंख बजता है या शांति की मुरली?'' क्या है ये?

चंदू : इसमें गड़बड़ क्या है मैडम?

नीरा : एम एम इस बात से नाराज़ हैं कि तुम अपनी स्टोरी में पेट्रोलियम मिनिस्टर का नाम क्यों ले आये?

चंदू : पेट्रोलियम मिनिस्टर? मैंने तो अपनी स्टोरी में उनका नाम ही नहीं लिया?

नीरा : तो वो क्या है? वो मुरली?

चंदू : अरे मैडम वो मुरली की बात पर कन्फ्यूज मत होइए. वो तो उपमा अलंकार का प्रयोग है रिपोर्टिंग में.

नीरा : ये उपमा अलंकार क्या लफड़ा है?

चंदू : अब मैडम हम हिन्दी वालों की यही समस्या है. हम कैरीड-अवे हो कर पत्रकारिता में भी साहित्य रचने लगते हैं. दरअसल मैडम हिंदी का लेखक हो या पत्रकार वो बेसिकली फिलोस्फर होता है. न्यूज आर्टिकिल लिखते-लिखते कब उसके कलम से दर्शनशास्त्र का झरना फूट पड़े कोई कह नहीं सकता. खैर, यह सब जाने दीजिये. आप कहें तो मैं कल ही एक क्लेरिफिकेशन पब्लिश कर दूंगा कि मुरली शब्द का इस्तेमाल पेट्रोलियम मिनिस्टर के लिए नहीं है. आगे बोलिए.

नीरा : आगे क्या बोलूँ? वो मैंने तुमसे कहा था टूज़ी पर एक स्टोरी लिखने के लिए. उसमें भी तुमने ये क्या कर डाला? मैंने तुमसे टूजी पर लिखने को कहा और तुमने टाइटिल दे डाली "टु ज़ी विद लव" और उसमें दिल्ली यूनिवसिटी की उन स्टुडेंट्स का स्टेटमेंट्स छाप दिया जिन्हें राहुल गाँधी और उनके डिम्पल क्यूट लगते हैं और जो उनके साथ शादी करने का सपना देखती हैं. मैंने तुमसे क्या करने को कहा और तुमने क्या कर दिया.

चंदू : अरे ये तो भारी ब्लंडर हो गया. मैंने सोचा कि टूज़ी का मतलब आप चाहती हैं कि मैं बारी-बारी से दोनों गाँधी पर एक-एक स्टोरी कर दूँ. इसीलिए मैंने पहले राहुल गाँधी पर की और सोचा कि मैडम के उप्पर...

नीरा : तुमको पता है न कि उन लोगों का पी आर अकाउंट मैं मैनेज नहीं करती. फिर भी इतनी बड़ी बेवकूफी कर दी तुमने. और हाँ, वो मैंने कहा था कि दादरी पॉवर प्लांट पर स्टोरी लिखो कि वहाँ के किसान अपनी ज़मीन वापस चाहते हैं. ये पॉवर प्लांट नहीं आ सकता अब. और तुमने अभी तक वो स्टोरी नहीं की...

चंदू : अरे मैडम वो स्टोरी मैं कैसे करता? मैं दादरी गया तो वहाँ मैंने देखा कि वहाँ किसान मस्त हैं. उन्हें ज़मीन की कीमत जो मिली है उससे वे मस्त हैं और वही पैसा कमोडिटी मार्केट में लगा रहे हैं और लॉस जनरेट कर रहे हैं. ऊपर से कई किसान कह रहे थे कि अगर प्लांट वाले और ज़मीन ले लेते तो...

नीरा : किसने तुमसे कहा दादरी जाने के लिए? दिल्ली में रहकर स्टोरी लिखी जाती है कि दादरी जाकर? कैसे पत्रकार हो तुम? दिल्ली में रहकर स्टोरी किखने लायक नहीं हो तो जर्नलिज्म में तुम्हारा फ्यूचर कुछ नहीं है.

चंदू : छोड़िये मैडम. हमारी आपकी नहीं पट सकती. वैसे भी अब मैं प्रिंट मीडिया छोड़कर वेब मीडिया में जा रहा हूँ. मेरी एक ब्लॉगर से बात हो गई है. मैं उसको ज्वाइन कर रहा हूँ. ये दलाली करें लायक नहीं हूँ मैं.

नीरा : अरे सुनो तो....

पी पी पी की आवाज़ आ रही थी. टेलीफोन कट हो चुका था.

चंदू ने मेरी तरफ देखा और कुछ नहीं कहा. तुरंत वहाँ से उठ और चल दिया. कह कर गया है कि....



नोट: टेप नंबर सतहत्तर में भी इन्ही दोनों की बातचीत है. उसे छापने पर भी विचार किया जा रहा है:-)

Wednesday, December 8, 2010

स्कैम गाथा




बहुत दिनों के बाद तुकबंदी इकठ्ठा करने बैठा तो ये डेढ़ सौ ग्राम अशुद्ध तुकबंदी इकठ्ठा हो गई. आप बांचिये.



पूरा भारतवर्ष स्कैम्स से हुआ है धन्य
.....................ऐसे में बस रोज इक स्कैम निकलवाइये
नया स्कैम जो निकले पुराने को ढांप लेवे
.....................अपनी सीबीआई लगवा कर जांच करवाइए
आपके नेतागणों का रोल अगर सामने हो
.....................विरोधी पार्टी के स्कैम्स याद दिलवाइये
विपक्ष अगर अड़ा हो जेपीसी पर तो अड़ने दें
.....................आप निर्लज्ज होकर मांग ठुकराइए


एक तरफ नीरा तो दूसरी तरफ बरखा हो
.....................एक तरफ वीर हों तो दूसरी तरफ राजा
अगर लाइन भटक कर और कहीं चली जाए
.....................तो भी वहाँ बजेगा स्कैम का ही बाजा
खाली एक पत्र लिख अपना हाथ साफ़ रखिये
.....................जिससे खड़ा रहे ईमानदारी का प्लाजा
जनता लाख गाली दे, आप साबित करते रहें
.....................टके सेर भाजी टके सेर खाजा


देश के अन्दर चाहे जैसी सिक्यूरिटी हो
.....................सिक्यूरिटी काऊंसिल में परमानेंट सीट चाहिए
अपने घर में चाहे मिले नहीं भूंजी भांग
.....................परन्तु जब बाहर रहें तो चिकेन-मीट चाहिए
ज़ी डी पी बढ़ेगी और घटेगा इन्फ्लेशन एकदिन
.....................यह ज्ञान देने हेतु मिनिस्टर ढीट चाहिए
आपके सरकार की सफलता बसी ज़ी डी पी में
.....................इसी संदेश का डेली रिपीट चाहिए


सी डब्ल्यू ज़ी के घोटाले की बात हो तो
.....................जेब में हाथ डाल आदर्श को निकालिए
आदर्श की बात अगर पब्लिक में जोर पकड़े
.....................उससे ध्यान हटाने को टू-ज़ी ले आइये
टू-ज़ी की बात पर विपक्ष अगर अड़ जाए
.....................टीवी चैनलों से फ़ूड स्कैम ठेलवाइये
उससे भी अगर ध्यान जनता का न हटे तो
.....................राजाबाबू के घर पर रेड करवाइए


विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को देश में बुलाइए ताकि
.....................उनसे सुनने को मिले आप तो महान हैं
आफिशियल डिनर पर चेलो-चमचों के बीच सुनें
.....................आपकी ईमानदारी ही भारत की पहचान है
आपके मंत्री और संतरी सारा देश लूट खाएं
.....................आपकी इंटीग्रिटी पर सबको गुमान है
पी आर की नींव पर ही सरकारी बिल्डिंग खड़ी
.....................उसी की वजह से चलती आपकी दूकान है


जनता बेचारी तीन वर्षों से सोच रही
.....................उनके जीवन से मंहगाई कब जायेगी
आपके मंत्री-एडवाइजर रोज उससे यही कहें
.....................दो महीने रुको बस खुशहाली अब आएगी
मंत्रियों के वादे पर न जाने कितने महीने गए
.....................पता नहीं आँखें ऐसे दिन देख पाएगी
समय नहीं बचा है अब नारों और वादों का
.....................जल्द ही जनता अपने लात चलाएगी


आपके राज में स्कैम लगे दर्द जैसा
.....................और यही सोचे कि वो निकले किधर से
कभी फूट पड़ता है वो किसी बिल्डिंग से तो
.....................कभी तोड़ निकल आये खेल के उदर से
कभी वह निकल आये गेंहू और चावल से
.....................तो कभी फूट पड़ता है रेल के उधर से
दल और दलालों से देश भर गया है अब
.....................किन्तु कुछ नहीं निकले आपके अधर से

Tuesday, December 7, 2010

मनोहर भैया का समाजवाद




मनोहर भैया सोच में बैठे थे. मैंने पूछा; "क्या हुआ भैया? इतने चिंतित क्यों हैं?"

बोले; "लगता है बाबूजी का सपना सपना ही रह जायेगा शिव. क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है."

उनकी बात सुनकर मैं भी सोचने लग गया.

पहले मनोहर भैया के बारे में बता दूँ. भैया का पूरा नाम राम मनोहर है. उनका यह नाम उनके बाबूजी ने रखा था. बाबूजी राम मनोहर लोहिया के अनन्य भक्त थे. अशोक मेहता, लोहिया जी और जयप्रकाश बाबू के बाद ख़ुद को भारत का सबसे बड़ा समाजवादी मानते थे. ये बात और है कि उनकी तरह की सोच रखने वाले हजारों, लाखों लोग थे. इन समाजवादियों में मुलायम सिंह जी भी थे.

बाबूजी जब तक रहे, समाजवाद लाने में जीवन गुजार दिया. लेकिन समाजवाद भी अपनी जिद पर अड़ा रहा. बहुत कोशिश की गई लेकिन आने की बात तो दूर, अपनी जगह से हिला भी नहीं कि भारत तक पहुँच सके.

नेहरू का विरोध, कांग्रेस का विरोध, सत्ता का विरोध, स्थापित मान्यताओं का विरोध, कोई विरोध छूटा नहीं. कविता का सहारा लिया गया. मंच बनाए गए. निराला हों या धूमिल, नागार्जुन हों या त्रिलोचन, सबकी कविताओं का सामूहिक पाठ चला. सेमिनार आयोजित किए गए. खद्दर के कुर्तों से ढंके नेता दिखते, लेकिन समाजवाद अपनी जिद पर अड़ा रहा.

सारी कोशिश करने के बाद भी जब नहीं आया तो बाबूजी दुखी रहने लगे. सत्तर के दशक में जय प्रकाशबाबू की कोशिशों से एक सरकार बनी भी तो उसे बड़े समाजवादियों की करतूतों की वजह से जाना पडा. सरकार की दुर्गति देखकर जयप्रकाश बाबू दुखी रहने लगे. उनकी देखा-देखी मनोहर भैया के बाबूजी ने भी दुःख का सहारा लिया. उन्हें शायद लगा कि पर्याप्त मात्रा में दुःख न होने की वजह से समाजवाद नहीं आ रहा.

बाद में बाबूजी नहीं रहे. जाते वक्त मनोहर भैया से वचन लिया. भैया ने भी बाबूजी को निराश नहीं किया. बताते हैं कि अन्तिम क्षणों में भैया ने बाबूजी को वचन दिया कि समाजवाद लाकर ही रहेंगे.

कालांतर में भैया ने समाजवाद लाने की कोशिश शुरू कर दी. खादी धारण कर लिया. सरकार के ख़िलाफ़ नारे लिखने लगे. काफी हाऊस में समय गुजारने लगे. बाज़ार में में चाय-पान की दुकानों पर दिखने लगे. महीने में एक बार दिल्ली का दौरा करते. सेमिनारों में तकरीरों की झड़ी लगाते. स्थानीय स्तर पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका में लिखते. महीने में पन्द्रह दिन अखबारों में वक्तव्य देते कि विकास की बात बेमानी है. कोई विकास नहीं हो रहा है. सरकारी आंकडे ग़लत हैं. दोस्तों के साथ मिलकर प्रकाशकों की 'दुकानों' के चक्कर लगाते. लेकिन समाजवाद भी अपनी जिद पर अड़ा रहा. टस से मस नहीं हुआ. अपने नाम के आगे खोजकर एक उपनाम तक लगा लिया. लेकिन कुछ भी नहीं हुआ.

यही बात उन्हें खाए जा रही थी. यही कारण था कि चिंतित बैठे थे. मैंने कहा; "मनोहर भैया, बाबूजी का सपना आपको पूरा करना ही है. आख़िर आपने उन्हें वचन दिया था."

बोले; "हाँ, मैं भी तो वही सोच रहा हूँ. तुम्हें क्या लगता है? ऐसा क्या किया जाय कि बाबूजी का सपना पूरा कर सकूं."

मैंने कहा; "भैया, मैं क्या बताऊं. लेकिन आप चिंता न करें. मुझे पूरा विश्वास है कि आप जरूर कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे."

अचानक मनोहर भैया उछल पड़े. उनकी आंखों में रोशनी चमकी. बोले; "अच्छा, तुम्हारा तो अपना ब्लॉग है. मुझे एक बात बताओ अगर मैं एक ब्लॉग बना लूँ तो कैसा रहेगा?"

मैंने कहा; "भैया मैं क्या कह सकता हूँ. लेकिन एक बात जरूर कहूँगा कि इंटरनेट पर ब्लॉग खोलने से आप अपने विचार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकते हैं."

मनोहर भैया बोले; "तुम्हारा कहना एकदम ठीक है. मैं अपना एक ब्लॉग बनाऊँगा. मुझे लगता है कि समाजवाद अब ब्लॉग से ही आयेगा."

मैंने कहा; "लेकिन भैया, समाजवादी तो वैश्वीकरण का विरोध करते हैं. और ये इंटरनेट से वैश्वीकरण फैला है. ब्लॉग बनाना तो समाजवादी नीतियों के ख़िलाफ़ होगा."

मनोहर भैया ने कुछ देर सोचकर कहा; "मुझे अपने बाबूजी का सपना पूरा करना है. इसके लिए अगर वैश्वीकरण के टूल की मदद लेनी पड़े तो भी मुझे कोई ऐतराज नहीं है. मुझे समाजवाद लाना ही है चाहे वो इंटरनेट के जरिये से आए."

दूसरे दिन ही मनोहर भैया ने अपना एक ब्लॉग बनाया. ब्लॉग पोस्ट पर सबसे पहले उन्होंने अन्य ब्लॉगर की बुराई की. सबसे पहले ये बताया कि बाकी के ब्लॉगर जो कुछ भी लिखते हैं वो सब कचरा है. उनकी पहली पोस्ट देखकर मैंने कहा; "भैया, आपने तो समाजवाद लाने के लिए ब्लॉग शुरू किया था. लेकिन आपने तो बाकी के ब्लॉगर की बुराई शुरू कर दी."

मनोहर भैया ने मेरे कान के पास मुंह लाते हुए धीरे से कहा; "यही तो समाजवाद लाने की कवायद की शुरुआत है. समाजवाद लाने की कोशिश दूसरों की बुराई करने से शुरू होती है. और फिर ये भी तो देखो कि मेरी पोस्ट पर इतने सारे कमेंट आये हैं."

आनेवाले दिनों में पता चलेगा कि मनोहर भैया का समाजवाद ब्लागिंग से आता है या फिर भैया को कोई और रास्ता खोजने की जरूरत पड़ेगी.

Monday, December 6, 2010

ठेकेदार की कहानी




इलाके के बड़े ठेकेदार हैं अपनी कहानी सुना रहे थे. सफलता की कहानी. बोले; "सब भगवान की कृपा है चाचाजी. सब उन्ही का आशीर्वाद है. कभी नहीं सोचा था कि बी एच यू के सामने डेढ़ करोड़ में ज़मीन खरीदेंगे. स्कॉर्पियो में चलेंगे. और इस्कूल की ही बात ले लीजिये. सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा इस्कूल खोलेंगे. लेकिन सब भगवान का आशीर्वाद है. आज किसी चीज की कमी नहीं है. अब समझ लीजिये कि एक ठेका जो पचास लाख का होता है उसमें नेट प्रोफिट करीब चालीस का बैठता है. सब आपलोगों का आशीर्वाद है....."

लीजिये भगवान को अपनी सफलता का श्रेय कितनी बार देते? शायद यही सोचते हुए थोड़ा सा श्रेय लगे हाथ हमारे पिताजी के आशीर्वाद को भी दे डाला. सुनकर लगा जैसे कोई बड़ा पैसेवाला सेठ श्रेय बांटने निकला है और आज उसके रस्ते में जो भी आएगा, बच नहीं पायेगा. हर एक को ज्यादा नहीं तो ढाई सौ ग्राम श्रेय तो लेना ही पड़ेगा.

अपने विनय की बात ऐसे कर रहे थे कि पूछिए मत. बोले; "इतना सब होने के बावजूद आज भी न तो मेरे अन्दर और न ही छोटे भाई के अन्दर जरा भी घमंड है. आज भी चाचाजी, मंगलवार को इंडिया में कहीं भी रहूं लेकिन विन्ध्याचल की देवी के दरबार में ज़रूर पहुँचता हूँ. छोटे भी कुछ कम धार्मिक नहीं हैं. कम से कम तीन घंटा पूजा करते हैं. कुछ भी हो जाए...."

उनकी बात को कोरोबोरेट करने के लिए पास बैठे उनके दांयें बोल पड़े; "एकदम सही कह रहे हैं. रंजीत को आप देखेंगे तो लगेगा ही नहीं कि यही रंजीत हैं. जरा भी घमंड नहीं."

सुनकर अनुमान लगा सका कि इस आदमी के विनय का अहंकार कितना बड़ा है.

सफलता की कहानी बताते-बताते अपने बिजनेस मॉडल पर पहुंचे. बोले; "खर्चा निकाल कर इतना बच जाता है कि क्या कहें? सोनभद्र है भी तो नक्सली इलाका. अब समझ लीजिये कि एक करोड़ का ठेका है तो कम से कम सत्तर लाख तक का प्रोफिट है. साटिफिकेट ही तो लेना है."

यह बिजनेस का सरकारी मॉडल है. प्रोफिट मार्जिन इतनी कि बड़ी-बड़ी अमेरिकेन कंपनियों के सी ई ओ को शर्म आ जाए और वे तीन दिन तक यह सोचते हुए पेप्सी न पीयें कि; "पढाई-लिखाई करके हमने क्या किया?" कुछ सी ई ओ के तो डिप्रेशन में चले जाने का चांस बना रहेगा.

मैं तो कहता हूँ कि भारतीय ठेकेदारों के बिजनेस मॉडल को दुनियाँ भर की बड़ी कंपनियों के सी ई ओ को एक बार ज़रूर देखना चाहिए. उन्हें यह विचार करने की ज़रुरत है कि केलोग्स और एम आई टी में पढ़कर उन्होंने क्या किया? ऐसी पढाई करके क्या फायदा अगर वे भारतीय ठेकेदारों की एफिसिएंसी तक नहीं पंहुच सकते?

वे आगे बोले; "लेकिन बड़ी मेहनत भी की है चाचाजी."

मेहनत वाली उनकी बात सुनकर विचार मन में आया कि बन्दे ने इतना बड़ा बिजनेस खड़ा किया तो मेहनत तो किया ही होगा. लेकिन अगले ही क्षण जब उन्होंने अपनी मेहनत की कहानी सुनाई तो मेरा विचार धराशायी हो गया. वे बोले; "पास में पैसा नहीं था उस समय. किसी का क्रेडिट कार्ड लेकर, किसी से उधार लेकर, इधर से उधर से करके आठ लाख रुपया जुटाया. एक एक्जक्यूटिव इंजिनियर को दे दिया. बात यह हुई थी कि वह ठेका दिलवाएगा. पैसा लेकर स्साला बैठ गया. समझ में यही आया कि अब पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं है. अब या तो हम मर जायेंगे या फिर वो मरेगा. एक दिन शाम को बाज़ार में निकला. पुलिसवाले साथ थे. छोटे भाई ने गोली चला कर वहीँ पर ढकेल दिया. (ढकेल दिया से उनका मतलब जान से मार दिया.)

आगे बोले; "तीसरे दिन छोटे ने कोर्ट में सलिंडर कर दिया. जेल में गए तो वहाँ नक्सली नेता गिरजा से मुलाकात हुई. वो बोला कि जितना काम करना हो करो. जितना ठेका लेना हो लो. बस दस परसेंट मुझे चाहिए. वो दिन है और आज का दिन है एक बार भी तकलीफ नहीं हुई. उसका हिस्सा उसके पास पहुँचा देते हैं.... बाद में जज को साधा गया. वो मुकदमा अभी भी चल रहा है लेकिन उसके बाद छोटे मर्डर के और किसी केस में नहीं फँसा. अब तो...."

मैंने कहा; "यह बढ़िया है. एक मर्डर कर दिया और धाक जमा ली."

बोले; "ऐसी बात नहीं है गुरूजी. ऐसा नहीं कि उसके बाद मर्डर नहीं किये. हाँ, लेकिन फंसे नहीं."

आगे बोले; "और अब पैसा भी तो दुसरे-दुसरे धंधे में लगा रहे हैं. एक इस्कूल खोल दिए हैं और अब दूसरे की तैयारी है. बड़ा पैसा है शिक्षा में......"

सफलता की उनकी कहानी सब बड़े ध्यान से सुन रहे थे. उनमें कुछ ऐसे भी थे जो न जाने कितनी बार सत्यनारायण भगवान की कथा की तरह वह कहानी सुन चुके होंगे लेकिन चेहरे पर भाव ऐसे कि पहली बार सुन रहे थे. ठेकेदार के श्रोता बने हुए हैं. समय बीतते उनमें कुछ और जुड़ जाते हैं. उनकी कहानी भी उनके बिजनेस की तरह चली जा रही है.