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Monday, August 23, 2010

The Rozabal Line (द रोज़ाबल लाइन)


@mishrashiv I'm reading: The Rozabal Line (द रोज़ाबल लाइन)Tweet this (ट्वीट करें)!

किताब पढ़ना शुरू ही किया था और मैंने आश्विन से पूछा; "आश्विन, आपको नहीं लगता कि एक कश्मीरी के लिए राशिद-बिन-इशार थोड़ा कम कश्मीरी नाम है?"

मेरी बात पर उन्होंने हँस कर कहा; "मैं मानता हूँ लेकिन क्या तुमने पूरी किताब पढ़ी? पूरी पढ़ोगे तो पता चलेगा कि हर नाम के पीछे एक कारण है."

मैंने उनसे कहा; "मुझे पूरी किताब पढ़े बिना यह स्ट्युपिड सवाल नहीं पूछना चाहिए था."

मेरी इस बात पर उन्होंने कहा; "कोई सवाल स्ट्युपिड नहीं होता."

शायद उनके कहने का मतलब था सवाल स्ट्युपिड नहीं होता हाँ, आदमी होता है.

खैर, उसके बाद मैंने किताब पढ़ी. मेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ कि किसी फिक्शन को पढ़ते हुए मैं जैसे-जैसे आगे बढ़ता मुझे लगता कि किताब में जो कुछ लिखा हुआ है वह अगले एक-दो साल में होकर रहेगा. अगले एक-दो साल की बात इसलिए क्योंकि किताब की कहानी का समय साल २०१२ है और जहाँ तक उसमें लिखी गई बातों के सच होने की बात है तो वह इसलिए कि अश्विन सांघी की स्टोरी टेलिंग ही ऐसी है.

अब मैं आपको किताब का नाम बताता हूँ. किताब का नाम है The Rozabal Line (द रोज़ाबल लाइन) और इसके लेखक हैं अश्विन सांघी. मैंने डैन ब्राउन की प्रसिद्द किताब The Da Vinci Code (द डा विंची कोड) तो नहीं पढ़ी लेकिन जिनलोगों ने दोनों किताबें पढ़ी हैं उनमें से बहुत से लोगों का कहना है कि अश्विन सांघी की यह किताब डैन ब्राऊन की किताब से ज्यादा पेंचीदा और डरावनी है.

और हो भी क्यों न? जरा सोचिये. पाँच हज़ार सालों के इतिहास को तथ्यपरक तरीके से रखना और उसके साथ एक ऐसी कहानी को जोड़ देना जिसे पढ़कर पाठक को लगे कि जिस फिक्शन को किताब में नैरेट किया गया है वह किसी भी ऐंगेल से फिक्शन नहीं है. अगर पाठक को यह लगने लगे कि अगले दो साल में वह सबकुछ सच होनेवाला है जो उपन्यास में लिखा गया है तो यह लेखक और उसकी स्टोरी टेलिंग की सफलता है.

उपन्यास है ईशा मसीह के बारे में.

ईशा मसीह के बारे में हम जितना जानते हैं क्या वह पूरा है? किताब न केवल यह सवाल उठाती है बल्कि तथ्यों को आगे रखते हुए यह बताती भी है कि ईशा के बारे में हम जितना जानते हैं, या कह सकते हैं जितना बताया गया है वह पूरा नहीं है. ईशा की मृत्यु सूली पर नहीं हुई थी यह तो हम सभी जानते हैं लेकिन उनका फिर से जिन्दा हो जाना उस धार्मिक कथा का हिस्सा है जिसे सुनाकर ईशा मसीह को भगवान साबित किया गया है.

लेकिन क्या कहानी यहीं तक है?

शायद नहीं. यह किताब हमें आगे की कहानी बताती है. ऐसा नहीं है कि ईशा के बारे में आगे की कहानी सुनाने वाली यह अकेली किताब है. तमाम और किताबें लिखी गई हैं. हाँ, उन किताबों और इस किताब के बीच अंतर है. जहाँ और किताबें केवल इतिहास के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई हैं वहीँ अश्विन की यह किताब इतिहास के साथ एक फिक्शन को बड़े करीने से जोड़ देती है. कितने लोगों को पता है कि सूली पर चढ़ने और वहाँ से बचने के बाद ईशा मसीह भारत आ गए थे? भारत आने के बाद वे कश्मीर में रहे? कश्मीर में ही उन्होंने अपना बाकी जीवन बिताया और वहीँ उनकी मृत्यु भी हुई? कश्मीर के श्रीनगर में उनकी समाधि है? रोज़ाबल उसी समाधि को कहते हैं?

मुझे तो नहीं पता था. यह अलग बात है कि इसके ऊपर तमाम लेखकों और विद्वानों ने शोधपूर्ण तरीके से किताबें लिखी हैं. न जाने ऐसी कितनी किताबों और घटनाओं का जिक्र करते हुए आश्विन ने अपना यह उपन्यास लिखा है. वह भी अद्भुत तरीके से.

कल्पना कीजिये कि आप एक कहानी पढ़ रहे हैं जिसका समय साल २०१२ है. आप पढ़ रहे हैं उस समय में होनेवाली एक साजिश के बारे में और अचानक लेखक आपको ईशा पूर्व ७६५ ईसवी में ले जाता है. सोचिये कि एक कहानी साल २०१२ में अमेरिका के एक नगर में चल रही हो और अचानक लेखक आपको ईशा पूर्व ३१२७ में भारत के मथुरा में ले जाता है और बताता है कृष्ण का जन्म ईशा पूर्व ३१२७ में १३-१४ जुलाई को हुआ था. एक कालखंड से दूसरे में पहुँच जाने को अगर हम सफ़र मान लें तो हर सफ़र की दूरी तय करते हुए आप कन्विंश होते रहेंगे कि अगर तीन हज़ार वर्ष पहले नहीं जाते तो साल २०१२ में जो कहानी चल रही है उसे ठीक से समझ ही न पाते. जरा सोचिये कि लेखक साल २०१२ में होने वाली एक आतंकवादी साजिश को नैरेट कर रहा है और उसी समय वह आपको ईशा के साल २९ में ले जाता है. क्यों? केवल इसलिए नहीं कि इतिहास खुद को दोहराता है बल्कि इसलिए भी कि आज की कहानी लगभग दो हज़ार साल पहले की कहानी से जुडी हुई है.

कहानी आज की दुनियाँ के बारे में है. एक आम इंसान होने के नाते और अपने जीवन की तमाम मुश्किलों में उलझे रहने के कारण हमें यह सोचने का समय नहीं मिलता कि हम जिस दुनियाँ में रहते हैं उसे कौन कण्ट्रोल कर रहा है? उस दुनियाँ पर अपरोक्ष रूप से राज करने के लिए कौन से लोग और संस्थाएं सक्रिय हैं? सोवियत संघ के विघटन के बाद 'न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' क्या वैसा ही है जैसा दिखाई देता है? शायद नहीं.

उपन्यास में एक तरफ है अमरीकियों द्वारा बनाई गई एक संस्था इल्यूमिनाटी है जिसमें दुनियाँ भर में तमाम क्षेत्रों के, जैसे राजनीति, उद्योग, विज्ञान, स्पोर्ट्स के लोग हैं जो दुनियाँ पर राज करना चाहते हैं और दूसरी तरफ वेटिकेन का एक सीक्रेट कल्ट है जो दुनियाँ भर में न केवल ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहता है बल्कि बाइबिल में लिखी गई बातों को सच साबित करने पर तुला है. एक तरफ इल्यूमिनाटी आतंकवादियों को इसलिए सपोर्ट करता है जिससे तमाम और शक्तियों को कंट्रोल किया जा सके वहीँ ईसाई धर्म का प्रसार करने वाले आतंकवादियों को इसलिए सपोर्ट करते हैं जिससे बाइबिल में की गई भविष्यवाणियों को सच साबित किया जा सके.

माडर्न डे वर्ल्ड ऑर्डर कितना पेंचीदा है इस बात का अनुमान इससे लगाइए कि जिन लोगों के बारे में हम यह समझते हैं कि वे चर्च और वेटिकेन को सपोर्ट करते ही होंगे वही लोग आतंकवादियों को इसलिए सपोर्ट करते हैं ताकि वेटिकेन को कंट्रोल में रखा जा सके.

धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए रोमन कैथोलिक्स द्वारा किये गए अत्याचार से इतिहास भरा पड़ा है. ईसाई धर्म के प्रचारकों ने बाहर से आकर न केवल हिन्दुओं और मुसलमानों के ग्रन्थ नष्ट किये, मंदिर और मस्जिद को तोड़ा बल्कि कपड़े और परिधान तक को बदल डाला. जिन लोगों ने विरोध किया उन्हें ख़त्म कर दिया गया. परन्तु धर्म के प्रचार/प्रसार के लिए उनदिनों किये गए किये अत्याचार ही सबसे घिनौने कृत्य थे? शायद नहीं.

धर्म के प्रचार/प्रसार में अत्याचार की शायद कोई लिमिट नहीं है.

उपन्यास की कहानी में तेरह लोगों का एक ग्रुप जो लश्कर-ए-तैयबा का ही एक ब्रांच है और जिसे लश्कर-ए-तलाश्तार के नाम से जाना जाता है वह वर्ष २०१२ के हर महीने में बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम देता है जो देखने से बाइबिल में की गई भविष्यवाणियों से मिलता है. लेकिन इन बड़ी आतंकवादी घटनाओं से भी बड़ी एक घटना होनेवाली है जिसके बारे में वेटिकेन के एक कार्डिनल को पता है. कार्डिनल वैलेरियो खुद वहाँ के एक सीक्रेट कल्ट का हेड है और वह आतंकवादियों को इसलिए सपोर्ट कर रहा है कि वे जो तबाही मचानेवाले हैं वह बाइबिल में की गई भविष्यवाणी से मिलती है. वहीँ दुनियाँ में और भी लोग हैं जिन्हें लश्कर-ए-तलाश्तार के लीडर की तलाश है.

उपन्यास पढ़ते-पढ़ते माडर्न डे वर्ल्ड ऑर्डर को समझा जा सकता है. आये दिन हम सुनते रहते हैं कि धार्मिक संस्थाएं तमाम देशों में पैसे के बल पर क्या-क्या करती रहती हैं. यहाँ तक की कई देशों की मीडिया से लेकर सामाजिक अनुष्ठानों पर भी अपरोक्ष रूप से उनका राज है. उपन्यास में ये सारी बातें बहुत अच्छी तरह से उभर कर आती हैं. पाँच महाद्वीपों में फैली कहानी, करीब पाँच हज़ार वर्षों का इतिहास लिए हुए. उपन्यास माडर्न डे वर्ल्ड ऑर्डर के सभी खिलाड़ियों के रोल को अद्भुत ढंग से सामने रखता है. कहानी में ओसामा बिन लादेन है तो अब्दुल कादिर खान भी हैं, अमेरिका के राष्ट्रपति हैं तो उत्तरी कोरिया का न्यूक्लीयर प्रोग्राम भी है, रूस के सीक्रेट सर्विस का एजेंट है तो इसराइल वाले भी हैं.

वही दूसरी तरफ इतिहास भी है. बारहवीं शताब्दी में मुसलमान योद्धा सलादीन है तो उसके कब्ज़े से येरुसलम को निकालने के लिए ईसाइयों द्वारा भेजा गया 'रिचर्ड, द लायनहार्ट' भी है. एक तरफ पाइथागोरस के प्रमेय के बारे में जिक्र है तो दूसरी तरफ उस भारतीय ऋषि का भी जिक्र है जिसने पाइथागोरस से पहले ही वह सिद्धांत दिया था. नास्त्रेदमस का जिक्र है तो माया सभ्यता का भी जिक्र है जिसके अनुसार साल २०१२ में दुनियाँ ख़त्म होनेवाली है. प्राचीन नागा राजाओं का जिक्र है तो दूसरी इस बात का जिक्र भी है कि ये नागा राजा और उनसे जुडी हुई बातें प्राचीन अमेरिकी कल्चर का भी हिस्सा थीं. मिडिल-ईस्ट में आज से तीन हज़ार वर्ष पहले कुछ अनुष्ठानों का जिक्र है जो हिंदु धर्म के अनुष्ठानों से मिलता-जुलता है. बौद्ध धर्म का और ईसाई धर्म में बौद्ध धर्म की तमाम पद्धतियों की बातें हैं.

पढ़ते हुए हम इस बात पर सोचने लगेंगे कि यशोदा, यशोधरा और यीशु जैसे ऐतिहासिक चरित्रों के नाम में समानता क्या महज एक संयोग है? ईशा मसीह के ऊपर बौद्ध धर्म का कितना प्रभाव था? मगध से मेरी मगद-लेन का कोई सम्बन्ध है? सेंट साराह जिन्हें साराह-ला-काली भी कहा जाता है, उनका सरस्वती, लक्ष्मी और काली से कोई सम्बन्ध है क्या? ईसाईयत में जिस स्टार को माना जाता है उसका हिंदु धर्म के स्वास्तिक से कोई सम्बन्ध है क्या?

किताब ऐसे ही न जाने कितने सवाल खड़ा करती है. जवाब भी देने की कोशिश करती है. लेकिन किताब का सबसे बड़ा आकर्षण है उसमें वर्णित फिक्शन. जबरदस्त तरीके का 'पाट-बायलर' है. एक पाठक के तौर मुझे तो यही समझ में आया. मैंने किताब की समीक्षा नहीं की है. मेरा लिटरेरी सेन्स वैसा नहीं है कि मैं इतनी बड़ी किताब की समीक्षा कर सकूँ. हाँ, एक पाठक की हैसियत से मुझे जो समझ में आया वह मैंने लिखा. समीक्षा का काम प्रोफेशनल क्रिटिक करते हैं.

कोई ज़रूरी नहीं कि मैं किताब के बारे में कुछ लिखूँ ही लेकिन पढ़कर मुझे इतनी प्रसन्नता हुई कि मैंने सोचा कि इसपर एक पोस्ट लिखी जाय. हाँ, यह बात मन में अवश्य आई कि तथाकथित हिंदी-पट्टी में विद्वान् तो बहुत बड़े-बड़े हैं जो इतिहास, भूगोल और यहाँ तक कि भाषा के बारे में हज़ार पृष्ठ रंग देते हैं लेकिन क्या आधुनिक दुनियाँ के बारे में इस तरह की किताब लिख सकते हैं?

अश्विन सांघी ने पहली बार यह किताब सन २००७ में शान हैगिंस के नाम से लिखी थी और एक अमेरिकी पब्लिशर ने पब्लिश की थी. बाद में वेस्टलैंड-टाटा ने २००८ में किताब को अश्विन संघी के नाम से पब्लिश की.अश्विन उद्योगपति हैं और येल यूनिवर्सिटी में पढ़े हैं. अश्विन सांघी और किताब के बारे में आप उनके ब्लॉग पर जाकर पढ़ सकते हैं.

11 comments:

  1. जब तक आपकी आश्विन से बात चल रही थी, अपने को यही लगा कि यह भी एक सीरियसली ह्यूमरस पोस्ट है। आगे बढ़े तो वास्तविकता मालूम चली।
    ’द विंची कोड’ पढ़ रखी है और पसंद भी आई थी, लेकिन जिस फ़िक्शन के लिये आपने अपनी परंपरागत शैली छोड़कर एक पूरी पोस्ट लिखी, बिना पढ़े कह सकता हूँ कि एक मास्टरपीस है यह। पढ़े बिना कह तो दिया है लेकिन पढ़े बिना रहा नहीं जायेगा।
    शिव भैया, आपका बहुत बहुत आभारी हूँ।

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  2. द रोजबल लाईन के बारे में आपने अच्छी जानकारी दी ..किताब पढने लायक लग रही है ..पहले तो समझा अप इन दिनों चल रहे रोजा के बारे में कुछ बताने वाले हैं :)
    आपकी पठनीयता अभिरुचि तो बहुत रिफायिंड है ....

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  3. और हाँ एक सिफारिश मेरी भी -जितना जल्दी हो पीपली लाईव देख आईये ...

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  4. इसामशीह के जीवन के बारे मे बहुत सी कहानिया है ! कुछ तो इस हद टक कहते है कि इसा मसीह नामका कोइ व्यक्ति हुहा ही नही था. यहाँ देखे (http://en.wikipedia.org/wiki/Jesus_myth_hypothesis)
    इस के पिछे कारण यहाँ है कि इसा के बारे जो भी कुछ लिखा गया वहा उनकी मौत के १५० साल से २०० साल बाद लिखा गया. दूसरा कारण यह भी है कि इसा के जन्म के समय और अन्तिम ३ वर्षहो के बारे मे लिखा गया है लेकिन बीच के वर्षो के बारे मे कुछ नही लिखा गया है !
    इसा की कहानी पूराने पैगन देवता , ग्रीक देवताओ की कहानी से काफी मीलती है
    http://en.wikipedia.org/wiki/Bible_conspiracy_theory

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  5. रहस्य और रोमांच के साथ भूतकाल का शायद चोली-दामन का साथ है। (तभी हिन्दी में भूत की बात रोंगटे खड़े कर देने वाली है!)

    इतनी सफल समीक्षा ठेली है कि पुस्तक पढ़े बगैर नहीं रहा जायेगा।

    शान हैगिंस के नाम से पुस्तक छापना? अश्विन को प्रतिक्रिया का भय था या प्रतिक्रिया न होने का भय?

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  6. कुल जमा यह कि पैसे खर्चने पड़ेंगे अब :)

    ईसा के कश्मीर सम्बन्ध के बारे में जानकारी थी. ईसा का बचपन भी भारत में गुजरा था, इसका जिक्र भी बाइबल में नहीं हैं.

    ईसाई धर्म प्रचारक (धर्मानतरणकर्ता) भारतीयों को मूर्ख बता कर वास्तव में ईशा के गुरूओं को मूर्ख बता रहे हैं.

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  7. अतिरोचक परिचर्चा/समीक्षा !!!
    अब तो पढ़े बिना न रहा जायेगा...

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  8. द रोजबल लाईन के बारे में आपने अच्छी जानकारी दी,
    आभार....

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  9. पहले ये बताइये कि २ दिन पहले ही कैसे ये पोस्ट रीडर में आ गयी थी :)
    झूठ नहीं बोलूँगा की पढने ही जा रहा हूँ... अभी दर्जन भर किताबें पढने को बची हैं तो इसे क्यु में डालता हूँ. बाकियों को निपटाने के बाद इसको पढूंगा. बहुत रोचक लग रही है तो आज ना कल पढ़ ही डालूँगा.

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  10. डैन ब्रॉउन की तो सारी किताबें पढ़ डाली। अब यह पढ़नी पड़ेगी।

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  11. आपके ब्लॉग की इस पोस्ट का ये निरीह पाठक क्षमा प्रार्थी है क्यूँ कि उसने इस महान ग्रन्थ को अभी तक नहीं पढ़ा है...ये तुच्छ पाठक अभी भी डा. ज्ञान चतुर्वेदी को पढ़ कर अपना जीवन धन्य समझता है...और ईशा के पूर्व की किसी घटना में कोई दिलचस्पी नहीं लेता अर्थात मूर्ख - अज्ञानी है... अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने के लिए एक बार "दा विन्ची कोड" फिल्म समझने की बहुत कोशिश की थी लेकिन नतीजा शून्य निकला अतः थक हार कर शपथ ली के वो ही किताब पढ़ी जाये जो समझ में आ जाये...आप लाख इस पुस्तक की सफाई में पोस्ट लिख लिख कर विद्वान कहलायें लेकिन हमें इसे पढने को नहीं उकसा सकते...हमारे पर आपका ये पासा उल्टा पड़ेगा...
    इतनी मुश्किल किताब पढने से तो हम मूर्ख ही भले...
    नीरज

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय