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Monday, November 24, 2008

मुफ्ती साहेब, कभी कोई धाँसू फतवा सुनाईये. ...समथिंग डिफरेंट टाइप


@mishrashiv I'm reading: मुफ्ती साहेब, कभी कोई धाँसू फतवा सुनाईये. ...समथिंग डिफरेंट टाइपTweet this (ट्वीट करें)!

मुफ्ती साहेब बेचारे परेशान हो रहे होंगे. चेले, चमचे वगैरह ये कहते हुए शिकायत करते होंगे कि; "क्या हमेशा बुर्का, निकाह, तलाक वगैरह पर ही फतवा सुनाते रहते हैं? कभी कोई धाँसू फतवा सुनाईये. कुछ हटकर. समथिंग डिफरेंट टाइप. "

बस, मुफ्ती साहेब ने फतवा सुना दिया. बोले; "मधुशाला अनइस्लामिक है. इसको पढ़ना इस्लाम के ख़िलाफ़ है."

हाय, इनकी समझदारी पर कुर्बान जाऊं. तिहत्तर साल हो गए. शिक्षाविद, दीक्षाविद, बुद्धिजीवी, छात्र, अध्यापक, सारे पढ़-पढ़कर पक गए. समझते रहे. शोधग्रंथ लिखते रहे. डाक्टरेट लिया, ज्ञान दिया लेकिन ये नहीं बता सके कि मधुशाला अनइस्लामिक है.

वहीँ मुफ्ती साहेब हैं कि दस नवम्बर को किताब थामा और सोलह नवम्बर तक निष्कर्ष पर पहुँच गए कि मधुशाला अनइस्लामिक है. उन्हें डर है कि "ऐसी किताब पढ़ने से नौजवान बरबाद हो जायेंगे. शाराब का सेवन बढ़ जायेगा."

कल मुफ्ती साहेब कह सकते हैं कि; "बच्चन साहब ने दारू का विज्ञापन करने के लिए मधुशाला लिखी थी." ये भी कह सकते हैं कि दारू ट्रेडिंग असोसिएशन वालों ने उन्हें पैसा देकर किताब लिखवा लिया. और चूंकि बिगड़ने का काम नौजवानों ने अपने कन्धों पर लाद रखा है, सो पैसा खिलाकर कोर्स में लगवा दिया.

अपनी बात साबित करने के लिए किताब से ही बच्चन साहब का लिखा हुआ कोट कर सकते हैं कि;

मैं कायस्थ कुलोद्भव, मेरे पुरखों ने इतना ढाला
मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला

कह सकते हैं कि वे ख़ुद ही स्वीकार किए थे कि उनके तन के लोहू में पचहत्तर प्रतिशत हाला ही था. हीमोग्लोबिन, आरबीसी, डब्लूबीसी वगैरह बाकी के पचीस प्रतिशत में था. अब ऐसा आदमी तो चाहेगा ही कि बाकी दुनियाँ भी शराबी हो जाए.

समझदार मुफ्ती साहेब का अगला फतवा कहीं दिनकर जी की किसी किताब पर न हो जाए. देखेंगे कि विश्वविद्यालय के कोर्स में उर्वशी पढ़ाया जाना तय हुआ तो साहेब बोल सकते हैं कि ये अनइस्लामिक है. किताब में जिनके बारे में लिखा गया है वे सारे काफिर हैं. कुछ भी कह सकते हैं.

शराब ने नौजवानों को बिगाड़ रखा है. अधेड़ भी शराब की वजह से बिगड़े हुए हैं और पीकर सड़कों पर सोये हुए लोगों के ऊपर गाड़ी-वाड़ी चढ़ा लेते हैं. मधुशाला पढ़कर बहक गए होंगे. आए दिन शराब पीकर जहाँ-तहां हंगामा करते रहते हैं. अनइस्लामिक कहीं के. एक ठो फतवा मारिये न, ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ भी.

अगला नंबर कहीं गालिब का तो नहीं जिन्होंने लिखा था;

कहाँ मयखाने का दरवाजा गालिब और कहाँ वाईज
बस इतना जानते हैं.....

या फिर दाग के ख़िलाफ़ जिन्होंने लिखा था;

जाहिद शराब पीने दे, मस्जिद में बैठकर

किसके-किसके ऊपर फतवा झाडेंगे साहेब? ऐसा करने जायेंगे तो आधा उर्दू काव्य और पूरे उर्दू शायर फतवा का शिकार हो जायेंगे. आपके इस कदम के बारे में शायर बाबू को पता हो चला था इसीलिए उन्होंने लिखा;

मयकदा छोड़कर कहाँ जाएँ
है ज़माना ख़राब ऐ शाकी

मतलब ये कि मयकदा ही ऐसी जगह है, जहाँ फतवा भी नहीं पहुँचने वाला. कारण ये कि वहां फतवा सुनानेवाले बैठते हैं. कोई फतवा वहां जाना भी चाहेगा तो सुनाने वालों को देखकर लौट आएगा. ये कहते हुए कि; "अरे वे तो वहीँ बैठे हैं, जिस जगह को गाली देते हैं."

और फिर किन-किन शायरों को फतवा की गोली मारेंगे? आपकी देख-रेख में जो मुशायरे होते रहते हैं, वहां क्या सुनाया जायेगा फिर? बेचारे सारे शायर फतवा का शिकार हो जायेंगे. क्या गालिब और क्या जौक, क्या दाग और क्या मीर, कोई नहीं बचेगा.

बड़ा लफड़ा है. कह सकते हैं बड़ा फतवा है. अब कविताओं पर फतवा सुनाया जाने लगा है. बुद्धिजीवियों कहाँ हो?
कुछ कहते क्यों नहीं? क्या कहा? सर्दी की वजह से गला ख़राब है?

पहुँची यहाँ भी शेख व ब्राह्मण की गुफ्तगू
अब मयकदा भी सैर के काबिल नहीं रहा

30 comments:

  1. बिलकुल सही बात कही है. चर्चा में रहने के लिए किसी पर भी फतवा लाद देते हैं ये लोग. अब इनके फतवों सतवों का असर तो होता नहीं, बेचारे खुंदक खाए पड़े रहते हैं.

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  2. बेचारे सारे शायर फतवा का शिकार हो जायेंगे. क्या गालिब और क्या जौक, क्या दाग और क्या मीर, कोई नहीं बचेगा.
    बहुत सही कहा आपने ! अगर सरदी की वजह से गला ज्यादा दिन खराब रहा तो सब कुछ फतवामय ही समझिये !
    बहुत सामयीक और सटीक रचना ! शुभकामनाएं !

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  3. कहाँ मयखाने का दरवाजा गालिब और कहाँ वाईज
    बस इतना जानते हैं.....कल वो जाता था कि हम निकले

    अधूरा क्यों छोडते हैं इतने अच्छे शेर को ?

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  4. मयकदा ही ऐसी जगह है, जहाँ फतवा सुनानेवाले बैठते हैं.

    यह है असली पंच. कसम से नशा हो गया.

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  5. कहीं फतवा देने के पहले दारू तो नहीं पी ली थी

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  6. इस ब्लॉग पर फतवा जारी हो उससे पहले मुझे अपना नाम-गांव इस पर से उतार लेना चाहिये?! :-)

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  7. हाँ हाँ उतार क्यों नहीं लेंगे नाम गाम, ऐसी ही दोस्ती है कलयुग की . जब इनाम मिलता है तो आधा चाहिए . जब पोस्ट लिखनी हो तो "तू लिख दे." :):)

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  8. "बच्चन साहब ने दारू का विज्ञापन करने के लिए मधुशाला लिखी थी." ये भी कह सकते हैं कि दारू ट्रेडिंग असोसिएशन वालों ने उन्हें पैसा देकर किताब लिखवा लिया. 'Thank you for Smoking' फ़िल्म याद आ गई इन लाइनों से... बाकी तो धांसू है ही !

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  9. जो नेता मंत्री रह कर बेटी को ही अगवा करा दें, वो जो न करे कम है। अब मुफ्ती साहब ठहरे मुफ्त का मज़ा लेने वाले, गद्दी छिन गई तो फतवा ही सही। किसी तरह न्यूज़ में रहना है ना भाई!!!!!!!!!

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  10. बहुत खूब जनाब... फ़तवो के चक्कर में जो कलम थोडी बहुत आजाद बची है उस पर भी अंकुश लगाने की साजिश रची जा रही है..

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  11. बच् के रहना शिव भैया कही आपके खिलाफ ना फतवा जारी कर दे,वैसे सुरेश चिपलूणकर का नँबर पहले लगेगा.

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  12. यदि इस पोस्ट का उद्देश्य आनंद और मनोरंजन है तो मैं भी आपके साथ हूँ अन्यथा ऐसे दो कौडी के मुल्ला इस योग्य नहीं हैं कि उनपर गंभीरता से कुछ विचार किया जा सके. सम्पूर्ण अरबी, फ़ारसी और उर्दू शायरी शराब की चर्चा से भरी पड़ी है किंतु साधारण मुल्ला इसके खुमार से वंचित हैं.क्योंकि उनका आध्यात्मिक जगत में कभी प्रवेश नहीं हुआ.

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  13. बहुत गजब गजब फतवे आते है... शायद इस हफ्ते कुछ नहीं रहा होगा तो मधुशाला पर ही सही..

    इस्लाम को मजा़क बना दिया इन मौलानाओ ने..

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  14. बहुत गजब गजब फतवे आते है... शायद इस हफ्ते कुछ नहीं रहा होगा तो मधुशाला पर ही सही..

    इस्लाम को मजा़क बना दिया इन मौलानाओ ने..

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  15. मौलाना ने फतवा जारी करने में देर कर दी,
    बच्चन जी नहीं रहे,
    वैसे वे रोज जारी करें फतवे हजार
    परवाह कौन करता है?
    बस फतवे के नाम पे अखबार में
    नाम मौलाना का छपता है।

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  16. पुसदकर जी से सहमत, एक फ़तवा और आता ही होगा कि जेट एयरवेज में सफ़र करना भी "अन-इस्लामिक" है, क्यों? यह भी बताना पड़ेगा क्या? अरे भई मालिक है दारू किंग विजय माल्या और ऊपर से कैलेण्डर पर नंगी-पुंगी लड़कियों की फ़ोटो भी छापता है यानी दोहरा "अन-इस्लामीकरण" :) :) :) :)

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  17. जेट और किंगफ़िशर में टाय-अप हो गया है ना? या मैंने "दारू की झोंक" में जेट को किंगफ़िशर समझ लिया? यदि फ़िलहाल दोनों कम्पनियाँ अलग-अलग हैं तो नरेश गोयल से माफ़ी के साथ अपने शब्द वापस लेता हूं… :) :) नरेश गोयल के लिये फ़तवा थोड़ा और सोच कर देंगे :)

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  18. मौलाना ने फतवा कभी उन आतंकवादियो के नाम क्यो नही दिया जो इस्लाम को बदनाम करने पर तुले है?

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  19. बंधू बहुत गज़ब की पोस्ट लिखी है आपने..गज़ब की माने बहुत ही गज़ब की...जो पोस्ट हमारी समझ में आ जाए वो ग़ज़ब के अलावा कुछ हो ही नहीं सकती...और शेर भी खूब सुनाएँ है...आप की याददास्त को सलाम...मुफ्ती साहेब को छोडिये अब उनके कहने से क्या शराब बिकनी बंद हो जायेगी...? गुजरात में जितने पियक्कड़ हैं शायद आपको पंजाब में भी न मिलें...जोर जबरदस्ती से कोई लत छूटती है क्या?
    नीरज

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  20. सभी धर्मोँ के लिये हमेँ आदर है -
    जो इस तरह के आदेश
    सीरीयसली लेते हैँ
    उन्हेँ वही मुबारक !
    - लावण्या

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  21. बहुत सटीक...पढ लें तो फतवा जारी करना बंद कर दें.

    आनन्द आ गया इतना बेहतरीन पंच देखकर.

    बधाई.

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  22. और त सब ठीक है लेकिन देख लो भाई अपने ज्ञान भैया के अंदज! भरोसे काबिल नहीं लगते!

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  23. लगता है खुमार आप पर चढ़ गया तभी तो शाकी और साकी में फर्क न कर सके
    हिन्दी साहित्य में अपने फतवा सुनाने वाले बैठे हैं तो फ़िर साहित्य से इतर लोगों के फतवे कौन सुनेगा.

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  24. क्या साहब कौन कहता है मयकशीं हराम है-

    जाम पीता हूँ तो मुंह से कहता हूँ बिस्मिल्लाह,
    कौन कहता है कि रिन्दों को खुदा याद नहीं.

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  25. गला तो आजकल हमारा भी खराब है इसलिये हम भी अपने को बुद्धिजीवी मानने का जुर्म करते है !!
    तो उनके लिये बस इतना ही कहेंगे

    मंदिर मस्जीद भेद कराते
    मेल कराती मधुशाला !!

    नोट: बुद्धिजीवीयो की बात पर भरोसा नही करना चाहिये क्योकि बुद्धिजीवी जिस बात के पक्ष मे बोल रहा है कल उसके विपक्ष मे भी बोल सकता है। क्यो?क्योकि वह बुद्धिजीवी है !!

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  26. वाह शिवभाई क्या फतवा पढ़्वाया है,लेकिन आपको थोड़ा गंभीरता से सोंचना चाहिये,आखिर नानसेन्स भी तो कुछ होता है?बाकी हम सब तो वैसे भी क़ाफिर हैं।

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  27. ताऊ ने ठीक कहा है. गालिब, जौक, दाग और मीर भी जायेंगे. रसखान, जायसी, और खानखाना जैसे तो शायद पकी काफिर ही रहे होंगे.

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  28. बात तो आपकी सोलहों आने सही है, लेकिन बुद्धिजीवियों को इसमें घसीटना ठीक नहीं। अब क्‍या है कि वे कुछ खास मौकों पर इतना गला फाड़ लेते हैं कि बाकी समय तर करने से ही फुरसत नहीं मिलती। अब ये बात सरे आम तो कहेंगे नहीं..इसलिए आप से कह दिया कि सर्दी में गला खराब है।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय