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Friday, November 7, 2008

जनता एक बार मेहनत करके अपना नेता चुनेगी क्या?


@mishrashiv I'm reading: जनता एक बार मेहनत करके अपना नेता चुनेगी क्या?Tweet this (ट्वीट करें)!

इस्तीफा देने वाले नेता बड़े त्यागी होते हैं. इस्तीफा देकर जो त्याग करते हैं, उसका उन्हें फल भी मिलता है. उनका नाम इतिहास में अमर हो जाता है. इस्तीफा देकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करवाकर नेता महान बन जाता है. इतिहास भी अपने इस्तीफा अध्याय में नेता का नाम पाकर धन्य हो लेता है.

शास्त्री जी को लोग कुशल प्रशासक के रूप में कम और रेलमंत्री के रूप में दिए गए उनके इस्तीफे की वजह से ज्यादा याद करते हैं. कई बार सोचता हूँ कि बिल क्लिंटन ने बेवकूफी की. मोनिका लेविंस्की के मामले में अगर इस्तीफा दे देते तो महान हो जाते. और क्लिंटन ही क्यों, हिटलर को भी इस्तीफा देकर अमर हो जाना चाहिए था. आत्महत्या करने की क्या ज़रूरत थी? लेकिन फ़िर सोचता हूँ ये सब नेता इतने इंटेलिजेंट होते तो उनकी ऐसी दुर्गति होती?

नेता तो जी हमारे देश के हैं. एक से बढ़कर एक इंटेलिजेंट नेता. सांसद की कुर्सी के लिए जनता को कुर्बान करने के लिए तत्पर और जनता के वोट लिए सांसद की कुर्सी कुर्बान करने पर उतारू. ख़ुद वीपी सिंह जी न जाने कितनी बार इस्तीफा देकर इस्तीफाकार की कुर्सी पर कब्ज़ा कर चुके हैं. उन्हें प्रधानमंत्री न होकर इस्तीफा मंत्री होना चाहिए था. वे इस्तीफा मंत्री के रूप में खूब जंचते.

आज सुना कि बिहार के जेडीयू सांसद इस्तीफा दे कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा आए. जेडीयू माने जनता दल यूनाईटेड. सोचिये जरा. जनता दल वो भी यूनाईटेड! देश का बड़े से बड़ा राजनीति का ज्ञाता भी आसानी से नहीं बता सकता कि ये जनता दल की कौन सी शाखा है. इतनी बार टूट चुका है ये दल कि आख़िर में भाई लोगों को लगा होगा कि और नहीं टूट सकते इसलिए अब यूनाईटेड हो जाते हैं. अब ये लोग इस्तीफा-इस्तीफा खेल रहे हैं.

ये लोग बता रहे थे कि इनलोगों को मुम्बई में बिहार के लोगों के साथ हुई घटनाओं पर बहुत क्रोध आया. ये इतने क्रोधित हुए कि इस्तीफा दे दिया. क्रोध में आदमी का दिमाग काम नहीं करता तो नेता की क्या बिसात? आदमी अगर क्रोध में अंट-संट काम कर सकता है तो नेता तो पता नहीं क्या करेगा. इसी मुद्दे पर लालू जी भी क्रोधित हैं. वे भी अपने दल-बल सहित इस्तीफा देने के लिए तैयार बैठे हैं. क्यों न दें, जनहित का मामला है.

जनहित में इस्तीफा देना विकट कठिन काम है. बड़ा कलेजे वाला नेता चाहिए. अब चूंकि इन नेताओं का कलेजा मज़बूत है तो वे कलेजे पर पत्थर रखकर इस्तीफा दे रहे हैं. उन्हें कठिन काम करने की आदत है. सामान्य काम करना वे जानते ही नहीं. बिहार के लोगों के साथ मुम्बई में जो कुछ हुआ उसके लिए तो इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं लेकिन बिहार में बिहार के लोगों के साथ वे जो कुछ करते रहते हैं, उसपर इस्तीफा नहीं दे सकते. अपनी करतूतों पर इस्तीफा देना बड़ा टुच्चा किस्म का काम होता है. भ्रष्टाचार और हत्या के मामले में पकड़े जाते हैं तो यह कहकर इस्तीफा देने से मना कर देते हैं कि अदालत ने उन्हें अभी तक दोषी नहीं माना है.

ये शायद चाहते हैं कि बिहार में बिहार के लोगों के साथ जो कुछ भी होता है उसके लिए इस्तीफा देने का काम बंगाल के सांसद करें.

नेता मेहनती होते हैं. वे मेहनत करके अपनी जनता खोज लेते हैं. जनता मेहनती नहीं होती. वो अपना नेता नहीं खोज पाती. यही कारण है कि हिन्दुओं के नेता, मुसलमानों के नेता, दलितों के नेता, किसानों के नेता, आदिवासियों के नेता, बनवासियों के नेता, बिहारियों के नेता, मराठियों के नेता वगैरह तो मिल जाते हैं लेकिन जनता का नेता नहीं मिलता. ये बिहारियों के नेता हैं इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं. जनता के नेता होते तो विकास, आतंकवाद, सुधार, वगैरह की मांग पर इस्तीफा देते.

जनता एक बार मेहनत करके अपना नेता चुनेगी क्या?

20 comments:

  1. अब इस्तीफा जबरन लिया जाता है मिश्रा जी .....आदमी भी सोचता है की बस बटोर लूँ जितना बटोर सकता हूँ..अगली बार मौका मिले ना मिले .वैसे दो चीजे जनता की खास है...एक तो याददाश्त की कमजोर होती है दूसरे ...वोट स्थल पर आते आते अपने जात वाले की हो जाती है

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  2. जूता भींगा-भींगा कर मारे हैं आप.. :)

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  3. सटक लिया जाय! इस्तीफा-इस्तीफा तो वज्र कलेजे वाला ही खेल सकता है। :)
    यहां तो "हम भी इस्तीफा दें, तुम भी इस्तीफा दो, इस्तीफियाती रहे जिन्दगी" का गायन कर रहे हैं बड़े लोग!

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  4. जय गंगा मैया की!
    गंगा तो मैली भई,
    इस्तीफा गंगा स्नान हो गया।

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  5. खूब कही बंधू...जनता पिछले साठ सालों में ढंग का नेता ना चुन पायी अब क्या चुनेगी....जनता तमाशबीन है छाँट छाँट के नेता चुनती है और फ़िर आराम से बैठी तमाशा देखती है... दिवा स्वप्न देखना छोडो..
    नीरज

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  6. जानते हुए भी कि इस्तीफे का सिर्फ नाटक हो रहा है, अगली बार देखियेगा, यही लोगों को खोज-खाज कर जनता वोट देगी और कहेगी कम से कम उसने इस्तीफा तो दिया।
    बाकी लोग तो वह भी नहीं देते।
    अच्छी पोस्ट।

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  7. कहा से ढुंढेगे जी वो नेता भी तो हमारे बीच से ही पैदा होता है जैसी प्रजा वैसा राजा !

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  8. सही है-इस्तीफा देने मेँ भी बहुत मेहनत लगी होगी..तभी तो इतने दिन से देना चाहते चाहते अब दे पाये. आप भी अपनी मेहनत कर चुके लिखकर. अब जनता की ,मेहनत की बारी है.

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  9. बिहार के लोगों के साथ मुम्बई में जो कुछ हुआ उसके लिए तो इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं लेकिन बिहार में बिहार के लोगों के साथ वे जो कुछ करते रहते हैं, उसपर इस्तीफा नहीं दे सकते. अपनी करतूतों पर इस्तीफा देना बड़ा टुच्चा किस्म का काम होता है. भ्रष्टाचार और हत्या के मामले में पकड़े जाते हैं तो यह कहकर इस्तीफा देने से मना कर देते हैं कि अदालत ने उन्हें अभी तक दोषी नहीं माना है.

    बहुत सच्ची बात कही आपने ! धन्यवाद !

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  10. बिलकुल सही कहा आप ने, धन्यवाद

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  11. यहाँ तो टुकडों में ही राजनीति होती है... कभी इंसानों की लाश, कभी रोटी के , कभी संप्रदाय के , कभी धर्म , कभी जाति, कभी नैतिकता तो.. कभी अनैतिकता.....कुल मिलाकर देश के टुकड़े.....पर . एक मिसाल खूब दी जाती रही कि रेल एक्सीडेंट होने पर तत्कालीन रेल मंत्री शास्त्री ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया था.....फ़िर पता नहीं किस किस बात पर इस्तीफा माँगा गया...और किस-किस बात पर इस्तीफा दिया..गया. कलमकारों का नजर हमेशा इन पर तिरछी रही फ़िर भी.... अजी छोडिये.....कौन किस बात पर क्या कर रहा...?? नेताओं के आदर्श आचरण...पर मैं भी ...एक सिलसिलेवार.".नेताजी का मोबाइल.".पोस्ट " मनोरथ-- http://manorath-sameer.blogspot.com/ " में लिख रहा हूँ.

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  12. रेल की दुर्घटनाएं न हो इस पर कार्य करना कठीन काम है, इस्तिफा दे कर महान बनना आसान है. हम भी तो इस्तीफा देने वाले को ही काम करने वाले से ज्यादा महान मानते है.

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  13. वाह क्या धांसु लेख लिख मारा है.. ब्लॉग जगत से भी लोगो ने इस्तीफ़े लिए है.. पर वापस आ गये.. और ब्लॉगरो के सामने इन नेताओ की क्या बिसात.. ?

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  14. ६० साल में यह जनता सही से नेता चुनना नहीं सीख पाई . इसी कारण नेता रूपी जीव आज भी इसी जनता का रुधिरपान कर रहा है और जनता इनको अपना आदर्श मानती है

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  15. वाह ! वाह ! वाह ! जियो बचवा,क्या खूब लिखा है....बहुत बहुत बढ़िया......एकदम करारा,धाँसू......
    ऐसे ही व्यंग्य के तलवार से सबको कलम करते चलो.

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  16. अरे ज्ञानदत्त जी ने नया फोटो कब लगा दिया ? मतलब वो ऐक्टिव हैं साझे में ? हमें तो पता ही नहीं चला . इतनी बडी गलती पर तो कल तक ब्लॉगिंग से इस्तीफा देना बनता ही है . दे दूँ ?

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  17. चुनाव करीब हो तो इस्तीफा देने का अपना ही मज़ा है. शहीद होने के लिए बदन पर लाल रंग भी नहीं लगाना पड़ता है - खून की तो बात ही क्या है.

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  18. हमेशा की तरह बढ़िया व्यंग्य। बधाई।

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  19. अब ये लोग इस्तीफा-इस्तीफा खेल रहे हैं.
    अपनी करतूतों पर इस्तीफा देना बड़ा टुच्चा किस्म का काम होता है. भ्रष्टाचार और हत्या के मामले में पकड़े जाते हैं तो यह कहकर इस्तीफा देने से मना कर देते हैं कि अदालत ने उन्हें अभी तक दोषी नहीं माना है.
    मार्मिक और सजीव चित्रण .
    लेकिन आप तो लगता है चाहते ही नहीं कि देश तरक्की करे और अगली बार ओलम्पिक में इस्तीफे के खेल में गोल्ड मैडल लाये

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय