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Thursday, March 20, 2008

दुर्योधन की डायरी- पेज १९९८


@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी- पेज १९९८Tweet this (ट्वीट करें)!

काकेश जी ने कल अपने ब्लॉग पर मेरे लिए एक डिमांड रखी थी. डिमांड ये थी कि मैं दुर्योधन जी की डायरी से उनके होली पर लिखे गए पेज को प्रस्तुत करूं. जैसा की आपको ज्ञात है, डायरी इतनी पुरानी है कि पेज बिखरे पड़े हैं. बहुत खोजने के बाद ये पेज मिला. काकेश जी के साथ आपलोग भी पढ़िए.

दुर्योधन की डायरी- पेज ३३६७

कल होली है. अभागे मेरे जैसे ही होते हैं. सबसे बड़ा भाई होने का सबसे बड़ा डिसएडवान्टेज ये है कि भौजाई की कमी खलती है. जेठ होना होली के मौके पर बहुत दुःख देता है. पांडवों को अज्ञातवास नहीं दिया होता तो भी होली के मौके पर देवर बनने का चांस रहता.

जैसा कि एक महान गीतकार ने लिखा है;'गिले शिकवे भूल कर दोस्तों, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं...' तो एक दिन दुश्मनी भूलकर द्रौपदी भाभी के साथ ही होली खेल आता. लेकिन क्या करूं, दुविधा वहाँ भी रहती. हो सकता है वहाँ भी होली नहीं खेल पाता क्योंकि भाभी को कन्फ्यूजन रहता कि मुझे देवर समझे या जेठ.आख़िर जहाँ वे युधिष्ठिर भइया की पत्नी हैं, वहीं दूसरी तरफ़ नकुल और सहदेव की पत्नी भी वही हैं.

जबसे इनलोगों को अज्ञातवास का टिकट थमाया है, होली के मौके पर जरूर याद आ जाते हैं ये लोग. लेकिन क्या कर सकता हूँ, होली खेलता भी हूँ तो कर्ण के साथ. वो भी कर्ण की होली बहुत बोरिंग होती है. ठंडाई में भंग मिलाने ही नहीं देता. पता नहीं ऐसा क्यों है?

फिर सोचता हूँ, वैसे भी इन्द्र का पुत्र होता तो इन्द्र की आदतें रहतीं इसके अन्दर. लेकिन ये तो ठहरा सूर्य-पुत्र इसलिए हमेशा तना रहता है. बोर आदमी है. बोर क्या महाबोर है. आता है और अबीर-गुलाल लगाते हुए गले मिलकर चला जाता है. रुकने के लिए कहता हूँ तो एक ही बहाना बनाकर निकल भागता है. कहता है धनुष बाण साफ करना है और बाण चलाने की प्रैक्टिस करनी है. पता नहीं कब युद्ध शुरू हो जाए.

राजमहल से बाहर निकल कर लोगों को होली खेलते हुए देखने की बड़ी इच्छा होती है. लेकिन राजपुत्र होने का भी अपना डिसएडवांटेज है. लोगों के बीच में जाकर होली भी नहीं खेल सकता. कई बार संजय को फुसलाया कि हस्तिनापुर में खेली जानेवाली होली का लाईव टेलीकास्ट ही दिखा दे. लेकिन वो तो पिताश्री को छोड़कर किसी की बात ही नहीं मानता. कहता है उसके चैनल पर होनेवाले हर टेलीकास्ट का एक्सक्लूसिव राईट्स पिताश्री के पास है.

पिछले साल दु:शासन भेष बदलकर लोगों की भीड़ में घुस गया था और अपने सेल फ़ोन के कैमरे से फोटो खींच लाया था.
दो-चार फोटो देखने को मिली थी. इस साल तो ये भी नहीं हो सकेगा. भीम ने ऐसी धुनाई की है कि अब बाहर निकलने से डरता है.

लेकिन क्या किया जा सकता है. ऐसे ही दरबार में रहना पड़ेगा और हास्य कवि सम्मेलन में 'कवियों' के चुटकुले सुनकर होली मनानी पड़ेगी. मजे की बात ये है कि ये लोग पिछले दस सालों से एक ही चुटकुला सुनाते आ रहे हैं. ऊपर से कहते हैं कि कविता सुना रहे हैं. कोई-कोई कवि एकाध बार कविता भी सुना बैठता है. परसों के कवि सम्मेलन में किसी कवि ने ये कविता सुनाई थी. मुझे अच्छी लगी. लिख देता हूँ, आख़िर कलियुग में कोई ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर डायरी छापेगा तो ये कविता भी छप जायेगी. कवि का नाम तो याद नहीं क्योंकि मैं भंग के नशे में था लेकिन कविता यूं थी...

क्या फागुन की ऋतु आई है
डाली-डाली बौराई है
हर और सृष्टि मादकता की
कर रही फ्री में सप्लाई है

धरती पर नूतन वर्दी है
खामोश हो गई सर्दी है
कर दिया समर्पण भौरों ने
कलियों में गुंडागर्दी है

मनहूसी मटियामेट लगे
खच्चर भी अप टू डेट लगे
फागुन में काला कौवा भी
सीनियर एडवोकेट लगे

फागुन पर सब जग टिका लगे
सेविका परम प्रेमिका लगे
बागों में सजी-धजी कोयल
टीवी की उदघोषिका लगे

जय हो कविता कालिंदी की
जय रंग-बिरंगी बिंदी की
मेकप में वाह तितलियाँ भी
लगती कवियित्री हिन्दी की

पहने साड़ी वाह हरी-हरी
रस भरी रसों से भरी-भरी
नैनों से डाका डाल गई
बंदूक दाग गई धरी-धरी

हर और मची हा-हा, हू-हू
रंगों का भीषण मैच शुरू
साली की बालिंग पर देखो
जीजा जी हैं एल बी डब्ल्यू

भाभी के रन पक्के पक्के
हर ओवर में छ छ छक्के
कोई भी बाल न कैच हुआ
सब देवर जी हक्के-बक्के

गर्दिश में वही बेचारे हैं
बेशक जो बिना सहारे हैं
मुंह उनका ऐसा धुआं-धुआं
ज्यों अभी इलेक्शन हारे हैं

क्या फागुन की ऋतु आई है
मक्खी भी बटरफिलाई है
कह रहे गधे भी सुनो-सुनो
इंसान हमारा भाई है

16 comments:

  1. वाह वाह जी क्या मस्त पन्ना निकाल कर लाये हैं. कविता तो माशाअल्लाह कमाल है ही... और कुछ पन्ने हों तो वो भी निकालिये.

    डिमांड आधी पूरी करने का शुक्रिया. पूरी डिमांड भी पूरी करें. :-)

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  2. १. लगता है पाण्डव दुर्योधन को द्रौपदी से होली खेल लेने देते तो युद्ध नहीं होता।
    २. द्वापर में भी बहुत मॉडर्न कवि हुआ करते थे। यह ज्ञानवर्धन के लिये बहुत शुक्रिया। हम तो व्यास जी को ही एक मात्र कवि मानते थे, जिनको बिना शब्दकोश या टीका के पढ़ना दुरुह था! :)

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  3. क्या फागुन की ऋतु आई है
    मक्खी भी बटरफिलाई है
    कह रहे गधे भी सुनो-सुनो
    इंसान हमारा भाई है

    वाह क्या धुन सुनाई है
    शिव भाई का टैंपो हाई है
    दुर्यो धन का पता नही
    शिव भाई ने होली खुब मनाइ है

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  4. वाह जी वाह, शिव भाई क्या मस्त लिखा है वैसे ज्ञान जी के नंबर १ प्वांइट में वजन नजर आता है।

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  5. शिव भाई! होली का राम राम!
    ये दुर्योधन की डायरी आप ने कब्जा तो ली, पर ये पीछा नहीं छोड़ने की आप का। अभी तो होली पर डिमांड आई थी, आप ने पूरी कर दी। आगे और भी त्यौहार आ रहे हैं, सब के पृष्ठ तलाश कर रक्खो।
    कविता जिस भी कवि ने लिखी हो, थोड़ा उल्लूपना उस में है, वैसे भी होली पर सभी में थोड़ा-थोड़ा आ ही जाता है। काले कव्वे को गरिमा प्रदान करने के चक्कर में सीनियर एडवोकेट की शान बढ़ा दी।
    जरूर गधे उस कवि के पीछे पड़ गए होंगे कि हमने ऐसा कब कहा कि, इन्सान हमारा भाई है।

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  6. सर जी बहुत बढ़िया. पूरा मूडिया गए हैं बुझाता है होली खेलने को. आ जाइए हमहूँ तैयार बैठे हैं. का कविता लिखे हैं ... वाह ! ठंढई का परबंध किए हैं त कहिये हमहीं आ जाते है.

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  7. जमाये रहियेजी।

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  8. मजा आ गया!
    क्या पन्ना निकाले हो ढूंढ के!!
    होली की बधाई व शुभकामना आपको भी

    छोड़ना नई ठाकुर इस डायरी को ;)

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  9. बहुत शानदार पन्ना..
    हम भी काकेशजी से सहमत हैं... आधी डिमांड ही पूरी हुई, इसे पूरी करें।
    होली की शुभकामनायें

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  10. आहाहा हा कविराज - क्या छापे हैं - खूब - ठंडाईई की कमी दूर -
    "ये बात जहाँ से आई है
    उसकी तो बड़ी बड़ाई है
    दुर्योधन के पीछे छुपकर
    क्या भीम पिचक लिखवाई है " -
    होली मजे से खेलें - सभी स्वजनों को शुभकामनाएं - मनीष

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  11. धरती पर नूतन वर्दी है
    खामोश हो गई सर्दी है
    कर दिया समर्पण भौरों ने
    कलियों में गुंडागर्दी है।

    धांसू है। लगे रहें। होली चलती रहे। ब्रेक ले ले के।

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  12. बढिया है ,आपको भी होली की शुभकामनाएं !!

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  13. पहले तो होली की बधाई.
    रही बात रचना की तो वह तो लाजवाब है. लगता है दुर्योधन के बहाने आपने अपना ही दर्द उकेरा है. एक बात और, फागुन ही एक ऐसा महीना है जिसमें बाबा भी देवर लगने लगते है. लिहाजा मायूस मत होइए. अगर बाबा देवर हो सकते हैं तो जेठ का हक तो तुलनात्मक रूप से ज्यादा ही बनता है. दे मारिये पिचकारी जहाँ कहीं भी मौका मिल जाए.

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  14. HOLI KI BAHUT-BAHUT BADHAI.
    AAPKE SATH-SAATH DURYODHAN KO BHI HLOI MUBARAK.
    BAHUT BADHIYA AUR DHANSU LIKH MAAREY HAIN.
    DHANYA HO.

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  15. Bum Bum Bhole Shivjee,
    Ghonto Bhang, Peeyo Thandai, kas ke lo tum poora Dum,
    Bolo Jai, Jai Bhole jai, bolo Shivjee, bum bhole bum,
    Aya mausam Holi ka , aaye nasha to kya karen hum,
    Karana hai masti, nahin jo sasti, kya hain ham kisi se kam.

    Lagata hai Calcutta mein aas-pas hi kahin Drapadijee (Roopa Gangulijee) ka nivas hai. Aap madam ko blog ke madham se rijhane bidha uthaye hain, aur phir unhne jal-krida ke liye taiyar karenge. Iske liye hi Duryodhan ka khal pahana hai. Khair, Duryodhanjee ke aglee holi ka jikra bhi aap kar hi daliye. Jismein vo Hidimba Bhabhi (no confusion) ke saath holi khele, khele to the sirf gadadhari bheem ko chidhane ke liye, lekin gadadhari bheemjee bhang ke nashe mein dhut aur pahale hi chadhe huye the, bakaul chidhe nahin, Albatta Ghatotkach (aapke pichhli post ka hero) jo man ke pet mein tha, avashya chidh gaya. Nateejan, Duryodhanjee ke chatarafa band bajane ki than lee usne pet mein he. Isee holi ke karan, mahabharat mein karn-ghatokach yudh huaa, aur karn ka arjun ke liya rakha amogh astra ghtokach ke liye kharch ho gaya. Bakaul is holi ke duryodhan ki mahabharat mein mahan parajay huyee, anyatha itihas kuchh aur hi kahane kah raha hota. So, kahani ka sar: holi soch-samajh kar khelna chahiye, aur khaskar, jajputron ko to bahut hi sochne samajhne ki jarurat hoti hai.
    Kya Duryodhanjee ne in shurveer Pandvon (aur Kauravon) ki next generation ke naam-kaam ka bhi jikra kiya hai, Abhimanyu aur Ghatokach ke alava.
    Ek aur holi kavita:
    Baje dhol, baje mridang, gao gane le le siskari,
    aaye rakhi, aaye vipasha, neha, mallika, sang hain muraree,
    bhago-bacho, hai yah kya, nikalee kanhiya ne apni pichkari,
    malo abeer, lagao gulal, bhiga do choli, bhiga dalo sari.
    Jogira sarraaraa..
    Ek aur mashhoor shayar ki pareshani:
    Pahan ke nikale hain vo aaj surkh choli main, (Vajan ke liye yah line do-teen baar kahiya).
    Karnge jane kiska halal, aaj holi main.
    Vaah, vaah,... bahut khub, ek aur, ek aur,..
    Ab munh band bhi rakho, time nahin hai. Sirf holi khelte rahte ho. Yah aavaj aaye hai kahin peechhe se. Ab kya bataun ki Holi ka to sirf bahana hai, apna aim to unke rang ko unse hi churana hai, pahle malke rang lagana hai, aur phir kaske rang chhudhana hai. Shayad holi ka to bahan hai, agar aisa hai to kya koi jurmana hai.

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  16. बंधू
    होली का समापन आज आप की पोस्ट पढने के बाद ही हुआ...कुछ कमी लग रही थी इसबार होली में आज पूरी हो गयी...दुर्योधन जी की जय सार्वजनिक रूप से बोलने को दिल कर रहा है...जाने किस महान कवि की कविता उन्होंने ने अपनी डायरी में लिखी है अगर नाम पता लिखा होता तो उनको भी नमन कर लेते...
    क्या फागुन की ऋतु आई है
    मक्खी भी बटरफिलाई है
    कह रहे गधे भी सुनो-सुनो
    इंसान हमारा भाई है
    कमाल है उस युग के गधे कितने उदार दिल के थे... इंसान जैसे को अपना भाई मानने को नहीं सकुचा रहे...वाह
    नीरज

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय